InterviewSolution
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भारत के उत्तर में स्थित हिमालय पर्वत की बनावट कैसी है? इस प्रदेश का भौगोलिक वर्णन कीजिए।याहिमालय के कोई दो महत्त्व लिखिए। हिमालय पर्वत से होने वाले कोई पाँच लाभ लिखिए।याहिमालय पर्वतों की तीन समान्तर शृंखलाओं के नाम लिखिए और प्रत्येक की एक-एक विशेषता लिखिए। याभारत के हिमालय पर्वतीय प्रदेश का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए-(क) स्थिति एवं विस्तार, (ख) धरातलीय संरचना, (ग) जल-प्रवाह। |
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Answer» हिमालय पर्वत की संरचना भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत चाप के आकार में तथा पश्चिम में सिन्धु नदी के मोड़.से पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी • के मोड़ तक 2,500 किमी की लम्बाई में चन्द्राकार रूप में फैले हैं। इसकी औसत चौड़ाई 150 से 400 किमी के बीच है। हिमालय; भारत और तिब्बत (चीन) के मध्य एक अवरोध के रूप में स्थित है। मुख्य हिमालय में विश्व की सर्वोच्च पर्वत-चोटियाँ पायी जाती हैं, जिनकी औसत ऊँचाई 6,000 मीटर से भी अधिक है। एशिया महाद्वीप में 97 ऐसी ज्ञात चोटियाँ हैं, जिनकी ऊँचाई 7,500 मीटर से अधिक है। इनमें से 95 चोटियाँ भारत के इसी पर्वतीय प्रदेश में स्थित हैं। हिमालय की ये पर्वत-श्रेणियाँ सदैव बर्फ से ढकी रहती हैं, इसलिए इस पर्वतमाला का नाम हिमालय रखा गया है। इसका क्षेत्रफल लगभग 5 लाख वर्ग किमी है। भौगोलिक दृष्टि से हिमालय पर्वतीय प्रदेश को निम्नलिखित उपविभागों में बाँटा जा सकता है– 1. महान् या वृहद् हिमालय– हिमालय की यह पर्वत-श्रेणी सबसे ऊँची है, जिन्हें हिमाद्रि या वृहत्तर हिमालय भी कहा जाता है। इस पर्वत-श्रेणी की औसत ऊँचाई 6,000 मीटर से अधिक होने के कारण यह वर्षभर बर्फ से आच्छादित रहती है। इस पर्वत-श्रेणी की लम्बाई सिन्धु नदी के मोड़ से अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक 2,500 किमी तथा औसत चौड़ाई 25 किमी है। इस क्षेत्र में गंगोत्री, जेमू तथा मिलाम जैसे विशाल हिमनद (Glaciers) पाये जाते हैं, जिनकी लम्बाई 20 किमी से भी अधिक है। माउण्ट एवरेस्ट, कंचनजंगा, मकालू, धौलागिरि, नंगा पर्वत, गॉडविन-ऑस्टिन, त्रिशूल, बदरीनाथ, नीलकण्ठ, केदारनाथ आदि इस क्षेत्र के प्रमुख पर्वत-शिखर हैं। इन। पर्वत-श्रेणियों का निर्माण ग्रेनाइट, नीस, शिस्ट आदि कठोर और प्राचीन शैलों से हुआ है। माउण्ट एवरेस्ट (नेपाल देश में स्थित) विश्व की सर्वोच्च पर्वत-श्रेणी है, जिसकी ऊँचाई 8,848 मीटर है। महान् हिमालय में अनेक दरें पाये जाते हैं जिनमें शिपकीला, थांगला, नीति, लिपुलेख, बुर्जिल, माना, नाथुला तथा जैलेपला आदि मुख्य हैं। इन्हीं दरों के मार्ग द्वारा भारत की सीमा के पार जाया जा सकता है। महान् हिमालय की पूर्वी सीमा पर ब्रह्मपुत्र तथा पश्चिमी सीमा पर सिन्धु नदियाँ गहरी एवं सँकरी घाटियों से होकर प्रवाहित होती हैं। वृहद् हिमालय और श्रेणियों के मध्य दो प्रमुख घाटियाँ हैंकाठमाण्डू की घाटी (नेपाल) और कश्मीर की घाटी (भारत)। 2. लघु या मध्य हिमालय- यह पर्वत-श्रेणी महान् हिमालय के दक्षिण में उसके समानान्तर फैली हुई है, जो 80 से 100 किमी तक चौड़ी है। इस श्रेणी की औसत ऊँचाई 2,000 से 3,500 मीटर तक है। तथा अधिकतम ऊँचाई 4,500 मीटर तक पायी जाती है। इस भाग में नदियाँ ‘वी’ (V) अकार की घाटियाँ तथा गहरी कन्दराएँ बनाकर बहती हैं, जिनकी गहराई 1,000 मीटर तक है। महान् और लघु हिमालय के मध्य कश्मीर, काठमाण्डू, काँगड़ा एवं कुल्लू की घाटियाँ महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। शीत-ऋतु में तीन-चार महीने यहाँ हिमपात होता है। ग्रीष्म ऋतु में ये पर्वतीय क्षेत्र उत्तम एवं स्वास्थ्यवर्द्धक जलवायु तथा मनमोहक प्राकृतिक सुषमा के कारण पर्यटन के केन्द्र बन जाते हैं। कश्मीर की जास्कर और पीर पंजाल इसकी महत्त्वपूर्ण श्रेणियाँ हैं, जो अनेक भुजाओं वाली हैं। इस श्रेणी की ऊँचाई 4,000 मीटर है। चकरौता, शिमला, मसूरी, नैनीताल, रानीखेत, दार्जिलिंग आदि स्वास्थ्यवर्द्धक पर्वतीय नगर लघु हिमालय में ही स्थित हैं, जहाँ प्रति वर्ष लाखों पर्यटक सैर के लिए जाते हैं। इस श्रेणी के उत्तरी ढाल मन्द, हैं, जब कि दक्षिणी ढाल तीव्र। इस पर्वतीय क्षेत्र में उपयोगी कोणधारी वृक्ष तथा ढालों पर घास उगती है। घास के इन मैदानों को कश्मीर में मर्ग (गुलमर्ग, खिलनमर्ग, सोनमर्ग) तथा उत्तराखण्ड में बुग्याल और पयार (गढ़वाल एवं कुमाऊँ हिमालय) के नाम से पुकारते हैं। इस भाग की संरचना में अवसादी शैलों की प्रधानता है, जिनमें अधिकांश चूने की चट्टानें विस्तृत क्षेत्र में फैली हैं। 3. उप-हिमालय या शिवालिक श्रेणियाँ अथवा बाह्य हिमालय- हिमालय की सबसे निचली तथा दक्षिणी पर्वत-श्रेणियाँ इसके अन्तर्गत आती हैं, जिन्हें बाह्य हिमालय या शिवालिक श्रेणियों के नाम से भी पुकारते हैं। यह हिमालय का नवनिर्मित भाग है, जो पंजाब में पोतवार बेसिन के दक्षिण से आरम्भ होकर पूर्व में कोसी नदी अर्थात् 87° देशान्तर तक विस्तृत है। इन पर्वत-श्रेणियों का निर्माण-काल बीस लाख वर्ष से दो करोड़ वर्ष के मध्य माना जाता है। शिवालिक श्रेणियों का निर्माण नदियों द्वारा लायी गयी अवसाद में मोड़ पड़ने से हुआ है, इसलिए इन पर अपरदन की क्रियाओं का विशेष प्रभाव पड़ा है। तिस्ता और रायडॉक के निकट 50 किमी की चौड़ाई में इन पहाड़ियों का लोप हो जाता है। इनकी औसत चौड़ाई पश्चिम में 50 किमी और पूरब में 15 किमी है। ये पर्वत औसत रूप से 600 से 1,500 मीटर तक ऊँचे हैं। इस क्षेत्र में अनेक उपजाऊ तथा समतल विस्तृत घाटियाँ हैं, जिन्हें दून और द्वार कहते हैं; जैसे-देहरादून, पूर्वादून, कोठड़ीदून, पाटलीदून, हरिद्वार, कोटद्वार आदि। भौगोलिक महत्त्व/लाभ हिमालय पर्वत ने हमारे देश के भौतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक स्वरूप का निर्माण किया है। इनके भौगोलिक महत्त्व/लाभ का वर्णन निम्नलिखित है 1. ये पर्वत साइबेरिया और मध्यवर्ती एशिया की ओर से आने वाली बर्फीली, तूफानी और शुष्क हवाओं से भारत की रक्षा करते हैं। 2. हिमालय की ऊँची-ऊँची हिमाच्छादित चोटियाँ उत्तरी भारत के तापमान एवं आर्द्रता (वर्षा) को | प्रभावित करती हैं। इसी के फलस्वरूप हिमालय में हिम नदियाँ, सदावाहिनी नदियाँ प्रारम्भ होती हैं, जो उत्तरी मैदान को उपजाऊ बनाती हैं। 3. हिमालय के हिमाच्छादित शिखरों और नैसर्गिक दृश्यों के कारण इन पर्वतों का पर्यटकों के लिए महत्त्व बढ़ गया है। 4. हिमालय की घाटी में जैसे ही वृक्षों की सीमा समाप्त होती है, वहाँ छोटे-छोटे चरागाह पाये जाते हैं, जिन्हें मर्ग कहते हैं; जैसे—गुलमर्ग, सोनमर्ग आदि। यहाँ कश्मीरी गड़रिये भेड़-बकरियाँ चराते हैं। 5. हिमालय पर्वत से निकलने वाली सदावाहिनी नदियाँ अपने प्रवाह-मार्ग में प्राकृतिक जल-प्रपातों की . रचना करती हैं। ये जल-प्रपात जल-विद्युत शक्ति के उत्पादन में सहायक सिद्ध हुए हैं। 6. शीत ऋतु में उत्तरी ध्रुवीय प्रदेश से ठण्डी एवं बर्फीली पवनें दक्षिण की ओर चला करती हैं। हिमालय | पर्वतमाला इन पर्वतों के मार्ग में बाधा बनकर भारत को ठण्ड से बचाती है। 7. हिमालय पर्वत पर पर्याप्त मात्रा में कोयला, पेट्रोल तथा अन्य खनिज पदार्थ प्राप्त होने की सम्भावना | व्यक्त की गयी है, जिससे इसका आर्थिक महत्त्व और अधिक बढ़ गया है। 7. हिमालय पर्वतमाला भारत के उत्तर में पहरेदार की भाँति एक अभेद्य दीवार के रूप में खड़ी है, जो आक्रमणकारियों से भारत की रक्षा करती है। 8. हिमालय की कश्मीर घाटी को फलों का स्वर्ग कहा जाता है। यहाँ सेब, अखरोट, आड़, खुबानी, अंगूर व नाशपाती आदि फल उगाये जाते हैं। पर्वतीय ढालों पर चाय, सीढ़ीदार खेतों में चावेल व आलू की खेती भी की जाती है। 9. हिमालय पर्वत के दोनों ढालों पर उपयोगी वनों का बाहुल्य है। इन वनों से विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चे माल, उपयोगी इमारती लकड़ियाँ आदि प्राप्त होती हैं। 10.हिमालय पर्वतमाला से अनेक जड़ी-बूटियाँ प्राप्त होती हैं, जो अनेक रोगों की चिकित्सा में काम आती हैं। इसके अतिरिक्त हिमालय के वनों से शहद, आँवला, बेंत, गोंद, लाख, कत्था, बिरोजा आदि प्राप्त होते हैं, जो मानव की विविध आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। हिमालय के अनेक पर्वतीय नगर ग्रीष्म-ऋतु में पर्यटकों के भ्रमण के लिए आकर्षण के केन्द्र बन जाते हैं। |
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