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Answer» भारतीय अर्थव्यवस्था में ग्राम उद्योगों की समस्याएँ ग्रामीण उद्योगों की प्रमुख समस्याएँ अग्र हैं - इन उद्योगों के लिए आवश्यक कच्चा माल नहीं उपलब्ध हो पाता। जो माल इन्हें प्राप्त होता है वह अच्छी किस्म का नहीं होता।
- बैंकों से ऋण मिलने की प्रक्रिया इतनी जटिल हैं कि इन्हें मजबूर होकर स्थानीय साहूकारों से ऋण लेना पड़ता है।
- उत्पादित वस्तुओं को बेचने के लिए नियमित बाजार न होने से इन उद्योगों का विकास अवरुद्ध हुआ है।
- ग्रामीण उद्योगों को बड़े उद्योगों में बनी वस्तुओं से प्रतियोगिता करनी पड़ती है, क्योंकि बड़े उद्योगों की वस्तुएँ सस्ती एवं आकर्षक होती हैं, जिससे इन्हें अपनी वस्तुएँ बेचने में कठिनाई होती है।
- इन उद्योगों को चलाने के लिए कुशल प्रबन्धक नहीं मिल पाते।
- इन उद्योगों में काम करने वाले कारीगर आज भी पुराने औजारों एवं पुरानी पद्धतियों के अनुसार कार्य करते हैं जिनसे कम उत्पादन प्राप्त होता है।
- इन उद्योगों के कारीगर इतने गरीब होते हैं कि वे नवीन यन्त्रों और औजारों को नहीं खरीद पाते, जिससे सस्ती एवं अच्छी वस्तु नहीं बन पाती।
- इनमें काम करने वाले शिल्पकारों का कोई सामूहिक संगठन नहीं है, जिससे इनमें सामूहिक सौदेबाजी की शक्ति का अभाव पाया जाता है।
ग्राम उद्योगों की समस्याओं के समाधान के लिए सुझाव ग्रामीण उद्योगों की समस्याओं के समाधान के लिए निम्न सुझाव दिये जा रहे हैं - कच्चे माल की व्यवस्था के लिए पर्याप्त मात्रा में सुख-सुविधाएँ उपलब्ध करायी जाएँ जिसमें सहकारी सहयोग की आवश्यकता होती है।
- शिल्पकारों को सहकारिता के आधार पर संगठित किया जाए, जिससे उनकी सामूहिक क्रयशक्ति में वृद्धि की जा सके।
- तैयार माल के क्रय-विक्रय में इन उद्योगों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
- उत्पादन विधियों में सुधार करने तथा आधुनिक ढंगों को अपनाने के लिए विशिष्ट प्रशिक्षण एवं तकनीकी शिक्षा की अत्यन्त आवश्यकता है।
- कारीगरों को आधुनिक यन्त्रों एवं औजारों को उचित मूल्य पर उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जानी चाहिए।
- सहकारी विपणन समितियों की स्थापना की जाए।
- ग्रामीण उद्योगों को बड़े उद्योगों के साथ प्रतिस्पर्धा से बचना आवश्यक है।
- ग्रामीण उद्योग के विकास की सम्भावनाओं का पता लगाने के लिए व्यापक रूप से सर्वेक्षण कराया जाना चाहिए।
- इन उद्योगों की सुरक्षा के लिए अनेक बोर्डो और निगमों की स्थापना की गयी है; जैसे-अखिल भारतीय खादी एवं ग्रामोद्योग निगम, राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम आदि।
- 2 अप्रैल, 1990 को लघु उद्योगों को ऋण देने के उद्देश्य से भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) की स्थापना की गयी।
- 2000-01 में नयी ऋण नीति में मिश्रित ऋण सीमा को 25 लाख के ऊपर तक बढ़ाया गया। ऋण गारण्टी योजना को लागू किया गया।
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