1.

दुःख की छाया को हटाने के लिए व्यक्ति किन बलों का उपयोग करता है? और कैसे?

Answer»

प्रत्येक प्राणी होश सँभालते ही अपने चारों ओर दुःखपूर्ण संसार रच लेता है। इसको क्रमश: अपने ज्ञान-बल से तथा कुछ बाहुबले से सुखमय बनाता है। क्लेश और बाधा को वह जीवन का सामान्य हिस्सा तथा सुख को उसका अपवाद समझता है। धीरे-धीरे मनुष्य की आयु बढ़ती है और उसके ज्ञान तथा शारीरिक शक्ति की वृद्धि होती है। उसके परिचय-क्षेत्र का विस्तार होता है तथा उसके ज्ञान की भी वृद्धि होती है। पहले वह अपने माता-पिता के सम्पर्क में आता है तथा धीरे-धीरे परिवार तथा बहुत से लोग उसके सामने प्रतिदिन आते हैं। वह जान लेता है कि ये लोग उसको सुख पहुँचाएँगे, दु:ख नहीं देंगे। धीरे-धीरे उसकी झिझक खुलती जाती है। उसका ज्ञान बढ़ता जाता है। उसका आत्मबल तथा शारीरिक बल भी बढ़ता जाता है। तब वह :ख से मुक्त होने के लिए तथा सुख पाने के लिए उनका उपयोग करता है।

अपने आस-पास के लोगों, पशुओं, विश्वासों आदि से दु:खी होने का जो भय उसके मन में रहता है वह धीरे-धीरे दूर होता है। शारीरिक बल की वृद्धि भी उसमें आत्म-विश्वास पैदा करती है तथा उसको दु:ख सहने तथा उसे हटाकर सुख पाने की अपनी शक्ति पर विश्वास हो जाता है। यह सब धीरे-धीरे विकास के सामान्य नियम के अनुसार होता है।



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