InterviewSolution
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दूर के ढोल सुहावने होते हैं; क्योंकि उनकी कर्कशता दूर तक नहीं पहुँचती। जब ढोल के पास बैठे। हुए लोगों के कान के पर्दे फटते रहते हैं, तब दूर किसी नदी के तट पर, संध्या समय, किसी दूसरे के कान में वही शब्द मधुरता का संचार कर देते हैं। ढोल के उन्हीं शब्दों को सुनकर वह अपने हृदय में किसी के विवाहोत्सव का चित्र अंकित कर लेता है। कोलाहल से पूर्ण घर के एक कोने में बैठी हुई किसी लज्जाशीला ‘नव-वधू की कल्पना वह अपने मन में कर लेता है। उस नव-वधू के प्रेम, उल्लास, संकोच, आशंका और विषाद से युक्त हृदय के कम्पन ढोल की कर्कश ध्वनि को मधुर बना देते हैं; क्योंकि उसके साथ आनन्द का कलरव, उत्सव व प्रमोद और प्रेम का संगीत ये तीनों मिले रहते हैं। तभी उसकी कर्कशता समीपस्थ लोगों को भी कटु नहीं प्रतीत होती और दूरस्थ लोगों के लिए तो वह अत्यन्त मधुर बन जाती है।(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।(स)⦁ प्रस्तुत अंश में ‘दूर के ढोल’ और ‘नव-वधू’ में साम्य और वैषम्य बताइए।⦁ ढोल की आवाज किसके लिए कर्कश होती है और किसके लिए मधुर ?⦁ ढोल की कर्कश ध्वनि को कौन मधुर बना देता है और क्यों ?⦁ दूर के ढोल सुहावने क्यों होते हैं ?[ ढोल = एक प्रकार का वाद्य। सुहावना = अच्छा लगने वाला। कर्कशता = कर्णकटुता। कोलाहल = शोरगुल। आशंका = सन्देह। कलरव = (चिड़ियों की) मधुर ध्वनि।] |
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Answer» (अ) प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘गद्य-खण्ड में संकलित तथा श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी द्वारा लिखित ‘क्या लिखें ?’ शीर्षक ललित निबन्ध से उद्धृत है। (ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का कथन है कि दूर के ढोल इसलिए अच्छे लगते हैं क्योंकि उनकी कर्णकटु ध्वनि बहुत दूर तक नहीं पहुँचती है। जब वे बज रहे होते हैं तो समीप बैठे हुए लोगों के कान के पर्दे फाड़ रहे होते हैं जब कि दूर किसी भी नदी के किनारे सन्ध्याकालीन समय के शान्त वातावरण में बैठे हुए लोगों को अपने मधुर स्वर से प्रसन्न कर रहे होते हैं। द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का कथन है कि ढोल की कर्कश ध्वनि दूर बैठे किसी व्यक्ति को प्रसन्न इसलिए करती है; क्योंकि वह अपने मन में कोलाहल से पूर्ण किसी घर के कोने में शादी के कारण लज्जाशील युवती की भी कल्पना करने लगता है। शादी की मधुर कल्पना, प्रेम, उल्लास (हर्ष), संकोच, सन्देह और दुःख से युक्त हृदय के कम्पन उस ढोल के कर्णकटु शब्दों को मधुर बना देते हैं। इसका कारण यह है कि उस नव-विवाहिता के हृदय में आनन्द का मधुर राग, उत्सव, विशेष प्रसन्नता और प्रेम का संगीत-ये तीनों तत्त्व एक साथ अवस्थित रहते हैं। कहने का भावे यह है कि यदि विवाह होने की प्रसन्नता, जीवन की मधुर कल्पनाएँ और प्रिय के प्रति प्रेम की भावना न हो तो नव-विवाहिता को भी विवाहोत्सव में बजने वाला ढोल सुहावना न लगे। (स) |
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