| 
                                   
Answer»  द्विदलीय प्रणाली जब एक देश की राजनीति में केवल दो ही प्रमुख राजनीतिक दल होते हैं, तो उसे द्विदलीय प्रणाली कहते हैं। द्विदलीय प्रणाली वाले राज्यों में दो से अधिक राजनीतिक दलों के गठन पर कोई वैधानिक प्रतिबन्ध नहीं होता, दो से अधिक राजनीतिक दल हो सकते हैं, लेकिन वे इतने छोटे होते हैं कि राजनीति पर उनका विशेष प्रभाव नहीं होता और उन्हें शासन में भागीदारी प्राप्त नहीं होती। उदाहरणार्थ, इंग्लैण्ड में अनुदार दल और श्रमिक दल दो प्रमुख राजनीतिक दल हैं, इनके अतिरिक्त लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी और स्कॉटलैण्ड तथा वेल्स के राष्ट्रवादी दल भी हैं, लेकिन उनका राजनीति पर कोई विशेष प्रभाव नहीं है। इस प्रकार अमेरिका में द्विदलीय प्रणाली है और यहाँ के दो प्रमुख राजनीतिक दल (रिपब्लिक दल और डेमोक्रेटिक दल) हैं। द्विदलीय प्रणाली के लाभ/गुण द्विदलीय प्रणाली के समर्थकों में लॉस्की, हरमन, फाइनर, ब्राइस आदि विद्वान प्रमुख हैं। इन विद्वानों द्वारा द्विदलीय प्रणाली के प्रमुख रूप से निम्नलिखित लाभ बताये जाते हैं- 1. वास्तविक प्रतिनिधि सरकार की स्थापना – प्रजातन्त्र का वास्तविक अभिप्राय यह है कि जनता के द्वारा ही सरकार का निर्माण किया जाये। लेकिन बहुदलीय व्यवस्था के अन्तर्गत सरकार का निर्माण जनता द्वारा नहीं वरन् राजनीतिक दलों के पारस्परिक समझौतों द्वारा होता है। केवल द्विदलीय प्रणाली के अन्तर्गत ही सरकार जनता की इच्छाओं का प्रत्यक्ष परिणाम होती है। इसके अन्तर्गत वही दल शासन का संचालन करता है जिसे मतदाताओं का बहुमत प्राप्त हो। स्वाभाविक रूप से यह व्यवस्था प्रजातान्त्रिक धारणा के अनुकूल होती है। 2. सरकार का निर्माण – संसदीय शासन वाले देश में यदि केवल दो ही राजनीतिक दल हों तो मन्त्रिमण्डल का निर्माण सरलता से किया जा सकता है। बहुमत दल को सरकार के निर्माण का कार्य सौंपा जाता है और जब यह दल अविश्वसनीय हो जाता है या आगामी चुनावों में हार जाता है तो शासन की शक्ति उस दल के हाथ में आ जाती है जो पहले विरोधी दल के रूप में कार्य कर रहा था। 3. शासन में स्थायित्व और निरन्तरत – शासन का सबसे अधिक आवश्यक तत्त्व सुदृढ़ एवं स्थायी शासन होता है और इन गुणों को द्विदलीय प्रणाली के अन्तर्गत ही प्राप्त किया जा सकता है। मन्त्रिमण्डल को व्यवस्थापिका में एक शक्तिशाली दल का समर्थन प्राप्त होता है और इस समर्थन के आधार पर मन्त्रिमण्डल दृढ़तापूर्वक शासन कार्य का संचालन कर सकता है। ऐसी व्यवस्था के अन्तर्गत सामान्यतया सरकारें स्थायी होती हैं और इनके द्वारा अपने कार्यक्रम और नीति को विश्वासपूर्वक कार्यरूप में परिणित किया जा सकता है। अमेरिका में अध्यक्षात्मक शासन की सफलता का रहस्य भी द्विदलीय प्रणाली में ही निहित है। 4. संवैधानिक गतिरोध की आशंका नहीं – बहुदलीय व्यवस्था के अन्तर्गत अनेक बार ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि कोई भी राजनीतिक दल अकेले या पारस्परिक समझौते के आधार पर सरकार का निर्माण नहीं कर पाता और संवैधानिक गतिरोध की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। लेकिन द्विदलीय प्रणाली में कभी भी संवैधानिक गतिरोध पैदा नहीं होता, क्योंकि प्रत्येक समय विरोधी दल वर्तमान शासन का अन्त कर शासन-व्यवस्था पर अधिकार प्राप्त करने के लिए तत्पर रहता है। 5. शासन में एकता और उत्तरदायित्व की व्यवस्था – शासन कार्य सफलतापूर्वक करने के लिए ‘सत्ता का एकत्रीकरण’ नितान्त आवश्यक होता है और शासन-व्यवस्था में इस प्रकार की एकता द्विदलीय प्रणाली के अन्तर्गत ही सम्भव है। इसके अतिरिक्त द्विदलीय प्रणाली में शासन की कुशलता-अकुशलता का उत्तरदायित्व आसानी से स्थापित किया जा सकता है। 6. संगठित विरोधी दल – राजनीतिक दल, शासन संचालन का कार्य ही नहीं, वरन् शासन को नियन्त्रित रखने का कार्य करते हैं। शासन को नियन्त्रित रखने का कार्य उसी समय भलीभाँति किया जा सकता है जब विरोधी राजनीतिक दल सुसंगठित और पर्याप्त शक्तिशाली हो। द्विदलीय व्यवस्था के अन्तर्गत विरोधी दल सदैव ही इस स्थिति में होता है। वस्तुत: प्रतिनिधि शासन के संचालन के लिए द्विदलीय प्रणाली ही सर्वाधिक उपयुक्त है। द्विदलीय प्रणाली के दोष यद्यपि द्विदलीय प्रणाली शासन व्यवस्था को स्थायित्व और निरन्तरता प्रदान करती है और यही ऐसी व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत शासन में एकता होती है तथा उत्तरदायित्व निश्चित होता है, लेकिन इतना होने पर भी द्विदलीय प्रणाली पूर्णतया दोषमुक्त नहीं है। रैम्जे म्योर (Ramsay Muir) ने अपनी पुस्तक “How Britain is Governed” में द्विदलीय प्रणाली की कटु आलोचना की है। द्विदलीय प्रणाली के प्रमुख दोष निम्नलिखित कहे जा सकते हैं- 1. मतदान की स्वतन्त्रता सीमित – द्विदलीय प्रणाली के अन्तर्गत नागरिकों की मतदान की स्वतन्त्रता बहुत अधिक सीमित हो जाती है। उन्हें दो में से एक दल को अपना मत देना ही होता है, चाहे वे दोनों दलों के उम्मीदवारों या दलों की नीतियों से असहमत ही क्यों न हों। मैकाइवर के शब्दों में, “इस पद्धति में मतदाता की पसन्दगी अत्यधिक सीमित हो जाती है। और यह स्वतन्त्र जनमत के निर्माण में भी बाधक होती है। 2. राष्ट्र का विभाजन – बहुधा ऐसा देखा गया है कि द्विदलीय व्यवस्था के कारण समस्त राष्ट्र ऐसे दो दलों में विभक्त हो जाता है जिसमें समझौते की कोई सम्भावना नहीं रहती, लेकिन बहुदलीय प्रणाली राष्ट्र को आपस में न मिल सकने वाले समूहों में विभाजित नहीं होने देती। लोग अपने सिद्धान्तों के आधार पर ही बिना किसी प्रकार के गम्भीर समझौते किये परस्पर मिल सकते और सहयोग कर सकते हैं। 3. बहुमत की निरंकुशता – द्विदलीय प्रणाली के अन्तर्गत एक ही राजनीतिक दल के हाथ में व्यवस्थापिका और कार्यपालिका सम्बन्धी शक्ति होती है और, इसके परिणामस्वरूप एक ऐसे निरंकुश बहुमत का जन्म होता है जो सदा ही अल्पमत को कुचलता रहता है और उसकी माँग की अवहेलना करता रहता है। 4. व्यवस्थापिका के महत्त्व और सम्मान में कमी – द्विदलीय व्यवस्था के अन्तर्गत व्यवस्थापिका के महत्त्व में कमी हो जाती है, क्योंकि व्यवस्थापिका का बहुमत दल सदैव ही मन्त्रिमण्डल का समर्थन करता रहता है। अतः समष्टि रूप से व्यवस्थापिका की सत्ता सीमित हो जाती है। द्विदलीय व्यवस्था के अन्तर्गत व्यवस्थापिका ‘मात्र लेखा करने वाली संस्था (Recording Institution) और दल के सदस्य कार्यपालिका की इच्छानुसार मत देने वाले यन्त्र मात्र बनकर रह जाते हैं। 5. मन्त्रिमण्डलीय तानाशाही – कुछ विद्वानों का यह मत है कि द्विदलीय प्रणाली से मन्त्रिमण्डल की तानाशाही को विकास होता है। दलीय अनुशासन के कारण व्यवस्थापिका को सदैव ही मन्त्रिपरिषद् का समर्थन करना होता हैं। इसके अतिरिक्त, प्रधानमन्त्री दल का नेता भी होता है और व्यवस्थापिका के साधारण सदस्य दल के नेता की बात का विरोध नहीं कर पाते। दल के सदस्य अपने दल की मन्त्रिपरिषद् को इस कारण भी विरोध नहीं कर पाते हैं। कि कहीं विरोधी दल की सरकार न बन जाये। इंग्लैण्ड में मन्त्रिमण्डल के प्रभाव और सम्मान में वृद्धि और लोक सदन (House of Commons) के सम्मान में कमी होने का एक प्रमुख, कारण यह द्विदलीय प्रणाली ही है। 6. अनेक हित बिना प्रतिनिधित्व के – देश की राजनीति में जब केवल दो ही राजनीतिक दल होते हैं तो अनेक हितों और वर्गों को व्यवस्थापिका में प्रतिनिधित्व ही प्राप्त नहीं हो पाता। यह स्थिति प्रजातन्त्र के लिए उचित नहीं कही जा सकती। 
                                 |