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एकदलीय प्रणाली
जिस देश में केवल एक दल हो और शासन शक्ति का प्रयोग करने वाले सभी सदस्य इस एक ही राजनीतिक दल के सदस्य हों, तो वहाँ की दल प्रणाली को एकदलीय कहा जाता है। साम्यवादी व्यवस्था वाले राज्यों और अन्य भी अनेक राज्यों में एकदलीय व्यवस्था को अस्तित्व रहा है, लेकिन पूर्व सोवियत संघ और पूर्वी यूरोप के अन्य साम्यवादी राज्यों ने अब एकदलीय व्यवस्था का त्याग कर बहुदलीय व्यवस्था को अपना लिया है।

इस एकदलीय प्रणाली को कभी तो संविधान से ही मान्यता प्राप्त होती है, जैसे कि पूर्व सोवियत संघ और अन्य साम्यवादी राज्यों के संविधानों में साम्यवादी दल का उल्लेख करते हुए अन्य दलों के संगठन का निषेध कर दिया गया था। अनेक बार ऐसा होता है कि संविधान के द्वारा तो अन्य राजनीतिक दलों का निषेध नहीं किया जाता, लेकिन शासक दल संविधानेतर (Extraconstitutional) उपायों से अन्य राजनीतिक दलों का दमन कर शासन शक्ति पर एकाधिकार स्थापित कर लेता है। इसके अतिरिक्त, यदि किसी राज्य में एक से अधिक राजनीतिक दल हों, लेकिन राजनीतिक प्रभाव की दृष्टि से अन्य राजनीतिक दलों की स्थिति नगण्य हो अर्थात् वैसी ही हो जैसी स्थिति द्विदलीय प्रणाली वाले राज्यों में दो के अतिरिक्त अन्य राजनीतिक दलों की होती है, तो इसे एकदलीय प्रणाली वाला राज्य ही कहा जाएगी।

एकदलीय प्रणाली को सामान्यतया सर्वाधिकारवादी और जनहित-विरोधी समझा जाता है, किन्तु सदैव ही ऐसा होना आवश्यक नहीं है और उद्देश्य की दृष्टि से भी एकदलीय प्रणाली के विभिन्न रूप हो सकते हैं। हिटलर और मुसोलिनी की एकदलीय प्रणाली का उद्देश्य सत्ता हस्तगत , करना और उस पर अपना अधिकार बनाये रखना ही था, लेकिन टर्की में मुस्तफा कमालपाशा की एकदलीय पद्धति निश्चय ही जन हितैषी थी। वर्तमान समय में मेक्सिको, मैडागास्कर आदि राज्यों की एकदलीय व्यवस्था को इसी श्रेणी में रखा जा सकता है। कमालपाशा का टर्की, मेक्सिको या मैडागास्कर अपवाद हो सकते हैं, लेकिन सामान्यतया एकदलीय व्यवस्था को लोकतन्त्र के अनुकूल नहीं समझा जा सकता है।



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