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“राजनीतिक दल लोकतन्त्र के प्राण हैं।” इस कथन के प्रकाश में राजनीतिक दलों के दो कार्यों का उल्लेख कीजिए।

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“राजनीतिक दल लोकतन्त्र के प्राण हैं।” इस कथन के प्रकाश में राजनीतिक दलों के दो कार्य निम्नवत् हैं-

1. सरकार का निर्माण – निर्वाचन के बाद राजनीतिक दलों के द्वारा ही सरकार का निर्माण किया जाता है। अध्यक्षात्मक शासन-व्यवस्था में राष्ट्रपति अपने विचारों से सहमत व्यक्तियों की मन्त्रिपरिषद् का निर्माण कर शासन का संचालन करता है। संसदात्मक शासन में जिस राजनीतिक दल को व्यवस्थापिका में बहुमत प्राप्त हो, उसके नेता द्वारा मन्त्रिपरिषद् का निर्माण करते हुए शासन का संचालन किया जाता है। राजनीतिक दलों के अभाव में तो व्यवस्थापिका के सदस्यों द्वारा अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग” का स्वरूप अपनाया जा सकता है, जिसके कारण सरकार का निर्माण और संचालन सम्भव ही नहीं होगा।
2. जनता और शासन के बीच सम्बन्ध – लोकतन्त्र का आधारभूत सिद्धान्त जनता और शासन के बीच सम्पर्क बनाये रखना है और इस प्रकार का सम्पर्क स्थापित करने का सबसे बड़ा साधन राजनीतिक दल ही है। प्रजातन्त्र में जिस दल के हाथ में शासन शक्ति होती है, उसके सदस्य जनता के मध्य सरकारी नीति का प्रचार कर जनमत को पक्ष में रखने का प्रयत्न करते हैं। विरोधी दल शासन के दोषों की ओर जनता को ध्यान आकर्षित करते हैं। इसके अलावा ये सभी दल जनता की कठिनाइयों एवं शिकायतों को शासन के विविध अधिकारियों तक पहुँचाकर उन्हें दूर करने का प्रयत्न करते हैं। लावेल ने ठीक ही कहा है, “राजनीतिक दल ‘विचारों के दलाल’ (Broker of Ideas) के रूप में कार्य करते हैं।”



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