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| 1. | 'गौरा’ शीर्षक रेखाचित्र की विषयवस्तु अपने शब्दों में प्रस्तुत कीजिए। | 
| Answer» ‘गौरा’ महादेवी की छोटी बहिन के घर स्नेह और दुलार में पली बछिया थी। इसलिए वह अन्य गोवत्सों से विशिष्ट थी। छोटी बहिन ने महादेवी से कहा कि तुम पशु-पक्षी पालती हो, एक गाय क्यों नहीं पाल लेतीं । बहिन ने गाय की उपयोगिता से सम्बन्धित भाषण दे डाला। महादेवी की बहिन आत्मविश्वास के साथ जिस बात को कहती उसका प्रभाव दूसरों पर अवश्य पड़ता था। अत: महादेवी पर भी उसका प्रभाव पड़ा और उस बछिया को स्वीकार करना पड़ा। उन्होंने बछिया को ध्यान से देखा। वह स्वस्थ थी। उसके पुष्ट लचीले पैर, भरे पुट्टे, चिकनी भरी पीठ, लम्बी सुडौल गर्दन, निकलते छोटे-छोटे सग, अन्दर की लालिमा की झलक देते हुए कमल की दो अधखुली पंखुड़ियों जैसे कान, लम्बी और काले बालों वाली पूँछ और साँचे में ढला हुआ शरीर आदि ने महादेवी को उसके प्रति आकर्षित कर लिया। वह गौर वर्ण की थी। उसके रोम चमकीले थे। लगता था अभ्रक का चूर्ण मल दिया गया हो क्योंकि प्रकाश में वह अधिक चमकते थे। गौरा जब बँगले पर आई तो उसे देखकर सभी के हृदय में श्रद्धा और हर्ष का समुद्र लहराने लगा। उसका स्वागत किया गया। कमल के पुष्प की माला पहनाई गयी, तिलक लगाया गया, आरती उतारी, गई गौरा को भी यह अच्छा लगा, उसकी आँखों से प्रसन्नता झलक रही थी। एक वर्ष बाद उसने एक वत्स को जन्म दिया, वह लाल रंग का था। उसका नाम लालमणि रखा गया। दुग्ध दोहन का दृश्य बड़ा आकर्षक था। कुत्ते-बिल्ली पंक्तिबद्ध सामने बैठ जाते । सभी को नाप-नापकर दूध दिया जाता । दूध पीकर सभी उछल-कूद करते । गाय परिवार में हिल-मिल गई थी। दुग्ध दोहन की समस्या सामने आई। नौकर दूध दुहने में असमर्थ थे। अतः एक ग्वाले को नियुक्त कर दिया गया। उसने धोखा दिया। कुछ समय बाद गौरा को गुड़ के साथ सुई खिला दी। इसमें उसका स्वार्थ छिपा था। गाय अस्वस्थ रहने लगी। महादेवी ने उसका बहुत उपचार कराया, किन्तु वह प्रतिदिन दुर्बल और शिथिल होती गई और मृत्यु की काली छाया उस पर मँडराने लगी। एक दिन ब्रह्ममुहूर्त में महादेवी के कन्धे पर अपना सिर रखकर प्राण त्याग दिये। महादेवी का हृदय भर आया। जब उसे ले जाया जाने लगा तो महादेवी की करुणा उमड़ पड़ी और वेदना में निकली वाक्य-आह, मेरा गोपालक देश ! सम्पूर्ण रेखाचित्र मानवीय संवेदना से ओतप्रोत है। | |