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“गठबन्धन की राजनीति के इस दौर में राजनीतिक दल विचारधारा को आधार मानकर गठजोड़ नहीं करते हैं।” इस कथन के पक्ष या विपक्ष में आप कौन-कौन से तर्क देंगे?

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वर्तमान युग में गठबन्धन की राजनीति का दौर चल रहा है। इस दौर में राजनीतिक दल विचारधारा को आधार बनाकर गठजोड़ नहीं कर रहे बल्कि अपने निजी स्वार्थी हितों की पूर्ति के लिए गठजोड़ करते हैं। वर्तमान समय में अधिकांश राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय हित की चिन्ता नहीं रहती, बल्कि वे सदैव इस प्रयास में रहते हैं कि किस प्रकार अपने राजनीतिक हितों को पूरा किया जाए, इसी कारण अधिकांश राजनीतिक दल विचारधारा और सिद्धान्तों के आधार पर गठजोड़ न करके स्वार्थी हितों की पूर्ति के लिए गठजोड़ करते हैं।

पक्ष में तर्क-गठबन्धन की राजनीति के भारत में चल रहे नए दौर में राजनीतिक दल विचारधारा को आधार मानकर गठजोड़ नहीं करते। इनके समर्थन में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं-

(1) सन् 1977 में जे०पी० नारायण के आह्वान पर जो जनता दल बना था उसमें कांग्रेस के विरोधी प्रायः सी०पी०आई० को छोड़कर अधिकांश विपक्षी दल जिनमें भारतीय जनसंघ, कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी, भारतीय क्रान्ति दल, तेलुगू देशम, समाजवादी पार्टी, अकाली दल आदि शामिल थे। इन सभी दलों को हम एक ही विचारधारा वाले दल नहीं कह सकते।
(2) जनता दल की सरकार गिरने के बाद केन्द्र में राष्ट्रीय मोर्चा बना जिसमें एक ओर जनता पार्टी के वी०पी० सिंह तो दूसरी तरफ उन्हें समर्थन देने वाले सी०पी०एम० वामपन्थी और भाजपा जैसे तथाकथित हिन्दुत्व समर्थक गांधीवादी राष्ट्रवादी दल भी थे। कुछ महीनों बाद वी०पी० सिंह प्रधानमन्त्री नहीं रहे तो केवल सात महीनों के लिए कांग्रेस ने चन्द्रशेखर को समर्थन देकर प्रधानमन्त्री बनाया। चन्द्रशेखर वही नेता थे जिन्होंने इन्दिरा गांधी के आपातकाल के दौरान श्रीमती गांधी का विरोध किया था और श्रीमती गांधी ने चन्द्रशेखर और मोरारजी को कारावास में डाल दिया था।
(3) कांग्रेस की सरकार, सन् 1991 से सन् 1996 तक नरसिंह राव के नेतृत्व में अल्पमत होते हुए भी इसलिए चलती रही क्योंकि उसे अनेक दलों का समर्थन प्राप्त था।
(4) अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में जनतान्त्रिक गठबन्धन (एन०डी०ए०) की सरकार लगभग 6 वर्ष तक चली लेकिन उसे जहाँ एक ओर अकालियों ने तो दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस, बीजू पटनायक कांग्रेस, कुछ समय के लिए समता दल, जनता पार्टी आदि ने भी सहयोग और समर्थन दिया।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि राजनीति में किसी का कोई स्थायी शत्रु नहीं होता। अवसरवादिता हकीकत में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।

विपक्ष में तर्क-उपर्युक्त कथन के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं-
⦁    गठबन्धन की राजनीति के नए दौर में भी वामपन्थ के चारों दल अर्थात् सी०पी०एम०; सी०पी०आई०, फारवर्ड ब्लॉक, आर०एस० ने भारतीय जनता पार्टी से हाथ नहीं मिलाया, वे उसे अब भी राजनीतिक दृष्टि से अस्पर्शीय पार्टी मानती है।
⦁    समाजवादी पार्टी, वामपन्थी मोर्चा, डी०पी०के० जैसे क्षेत्रीय दल किसी भी उस प्रत्याशी को खुला समर्थन नहीं देना चाहते जो एन०डी०ए० अथवा भाजपा का प्रत्याशी हो क्योंकि उनकी वोटों की राजनीति को ठेस पहुँचती है।
⦁    कांग्रेस पार्टी ने अधिकांश मोर्चों पर बीजेपी विरोधी और बीजेपी ने कांग्रेस विरोधी रुख अपनाया है।



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