InterviewSolution
| 1. |
‘जय सुभाष के द्वितीय सर्ग का सारांश (कथानक, कथावस्तु, कथासार) अपने शब्दों में लिखिए।या‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के आधार पर भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में सुभाष के योगदान का वर्णन कीजिए। |
|
Answer» खण्डकाव्य के इस सर्ग में सुभाष के भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने का वर्णन है। भारतवर्ष में अंग्रेजों के अत्याचार और अन्याय को देखकर भारतमाता को परतन्त्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए सुभाष ने अपना जीवन देश को अर्पित कर देने का निश्चय किया। सन् 1921 ई० में महात्मा गाँधी के नेतृत्व में असहयोग आन्दोलन व्यापक रूप से चल रहा था। छात्रों ने विद्यालयों का एवं वकीलों ने न्यायालयों का बहिष्कार करके आन्दोलन को तीव्र बनाया। बंगाल में देशबन्धु चितरंजनदास आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे थे। उन्हीं दिनों देशबन्धु जी ने एक नेशनल कॉलेज की स्थापना की, जिसका प्रधानाचार्य उन्होंने सुभाष को नियुक्त कर दिया। सुभाष ने छात्रों में देशप्रेम और स्वतन्त्रता की भावना जाग्रत की और राष्ट्र-भक्त स्वयंसेवकों की एक सेना तैयार की। इस सेना ने बंगाल के घर-घर में स्वतन्त्रता का सन्देश गुंजा दिया। इस सेना के भय से अंग्रेजी सत्ता डोल उठी, जिसके परिणामस्वरूप सरकार ने देशबन्धु और सुभाष को जेल में बन्द कर दिया। जेल में जाकर उनका साहस व शक्ति और बढ़ गये। जब ये जेल से मुक्त हुए, तब बंगाल भीषण बाढ़ से ग्रस्त था। सुभाष ने तन-मन-धन से बाढ़-पीड़ितों की सहायता की। ये पं० मोतीलाल नेहरू द्वारा स्थापित ‘स्वराज्य पार्टी के प्रबल समर्थक थे। इन्होंने दल के कई प्रतिनिधियों को कौंसिल में प्रवेश कराया। कलकत्ता महापालिका के चुनाव में सुभाष बहुमत से जीते। सुभाष को अधिशासी अधिकारी नियुक्त किया गया। इन्होंने १ 3,000 निर्धारित वेतन के बजाय केवल आधा वेतन लेकर महापालिका का खूब विकास किया। सरकार ने इनकी बढ़ती हुई लोकप्रियता से चिढ़कर इन्हें अकारण ही अलीपुर जेल में डाल दिया। वहाँ से बरहामपुर और माण्डले जेल में भेजकर इन्हें बड़ी यातनाएँ दी गयीं। इस कारण इनका स्वास्थ्य खराब हो गया। दृढ़ स्वर से जनता की माँग के कारण ये जेल से छोड़ दिये गये। कारागार से छूटते ही इन्होंने पुनः संघर्ष आरम्भ कर दिया। इनका अधिकांश जीवन कारागार में ही व्यतीत हुआ। |
|