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‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के सप्तम (अन्तिम) सर्ग की कथा लिखिए।

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सप्तम सर्ग में द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी तथा जापान की पराजय की चर्चा की गयी है। संसार में सुख-दु:ख और जय-पराजय का चक्र चलता रहता है। अंग्रेजों का पलड़ा धीरे-धीरे भारी होने लगा। आजाद हिन्द फौज की भी जय के बाद पराजय होने लगी। अंग्रेजों ने बर्मा (अब म्यांमार) में आकर अपना स्वत्व स्थापित कर लिया। अगस्त 1945 ई० में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नगरों पर अमेरिका द्वारा अणुबम गिराकर सर्वनाश कर दिया गया। जापान ने मानवता की रक्षा के लिए जनहित में अमेरिका के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। सुभाष ने स्थिति अनुकूल न जानकर आजाद हिन्द फौज के आत्मसमर्पण करने का भी निर्णय किया। उन्होंने सेना के वीरों को बधाई देते हुए पुन: आकर उचित समय पर स्वतन्त्रता का बीड़ा उठाने का आश्वासन दिया। वे विमान द्वारा टोकियो में जापान के प्रधानमन्त्री  हिरोहितो से मिलने जाना चाहते थे। 18 अगस्त, 1945 ई० को ताइहोक में विमान आग लगने से दुर्घटनाग्रस्त हो गया और सुभाष भी नहीं बच सके। इस दु:खद समाचार को सुनकर हर मनुष्य रो पड़ा। भारत में बहुतों के मन में अब तक यही धारणा है कि सुभाष आज भी जीवित हैं। जब तक सूर्य, चन्द्र और तारे रहेंगे, भारत के घर-घर में सुभाष अपने यश के रूप में अमर रहेंगे। उनकी यशोगाथा नवयुवकों को त्याग, देशप्रेम और बलिदान की प्रेरणा देती रहेगी।



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