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“काश! तुम जानती, दु:ख किसे कहते हैं…. तुम्हारा यह रसीला दुःख तुम्हें न मिले तो जिन्दगी दूभर हो जाए।”

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दिलीप ने झोंपड़ी में बच्चे और उसकी माँ की गरीबी में है उसकी कंगाली का दुःख देखा था। दिलीप को उस दुःख के सामने है अपनी पत्नी हेमा का दुःख नगण्य लगता है। वह सोचता है कि काश!

हेमा ने सच्चा दुःख देखा होता। तब उसे पता चलता कि दुःख क्या होता है। जिसे दुःख मानकर वह तुनककर मायके चली गई है वह दुःख दुःख नहीं कहा जा सकता। ऐसी बातें जीवन में होती रहनेवाली आम बातें हैं।



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