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किशोरावस्था में होने वाले संवेगात्मक विकास का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।

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किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास
(Emotional Development in Adolescence)

किशोरावस्था में संवेगों में तीव्रता से परिवर्तन होते हैं। एक किशोर के लिए अपने संवेगों पर नियन्त्रण करना अत्यन्त कठिन होता है। उसमें प्रेम, दया, क्रोध तथा सहानुभूति आदि संवेग स्थायित्व धारण कर लेते हैं। किसी को दु:खी देखकर वह अत्यन्त भावुक हो उठता है तथा अत्याचार को देखकर एकदम क्रोधित हो उठता है। इस अवस्था में किशोर न तो बालक होता है और न प्रौढ़। ऐसी दशा में उसके अपने संवेगात्मक जीवन में वातावरण से अनुकूलन करने में विशेष कठिनाई होती है। वातावरण में अनुकूलन की असफलता से उसे निराशा होती है।

यह निराशा उसे कभी घर से भागने के लिए प्रेरित करती है तो कभी आत्महत्या के लिए। इस अवस्था के किशोर-किशोरियों में काम-प्रवृत्ति का तीव्र विकास होता है, जिसके कारण उनके संवेगात्मक व्यवहार पर विशेष प्रभाव पड़ता है। वे दिवास्वप्न देखने लगते हैं तथा उनका अधिकांश समय कल्पना लोक में विचरण करने में व्यतीत होता है। प्रत्येक लड़का किसी लड़की के सम्पर्क में आकर भावुक हो उठता है। किशोर का संवेगात्मक विकास बहुत कुछ परिस्थितियों पर निर्भर करता है। अनुकूल परिस्थितियाँ उसे प्रोत्साहित करती हैं तथा प्रतिकूल परिस्थितियाँ उसे निराश करती हैं।



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