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महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्याएँ।बाजार से हठ-पूर्वक विमुखता उनमें नहीं है, लेकिन अगर उन्हें जीरा और काला नमक चाहिए तो सारे चौक-बाजार की सत्ता उनके लिए तभी तक है, तभी तक उपयोगी है, जब तक वहाँ जीरा मिलता है। जरूरत भर जीरा वहाँ से ले लिया कि फिर सारा चौक उनके लिए आसानी से नहीं के बराबर हो जाता है। वह जानते हैं कि जो उन्हें चाहिए वह है। जीरा नमक। बस इस निश्चित प्रतीति के बल पर शेष सब चाँदनी चौक का आमन्त्रण उन पर व्यर्थ होकर बिखरा रहता है। चौक की चाँदनी दाएँ-बाएँ भूखी-की-भूखी फैली रह जाती है, क्योंकि भगत जी को जीरा चाहिए वह तो कोने वाली पंसारी की दुकान से मिल जाता है और वहाँ से सहज भाव में ले लिया गया है। इसके आगे आस-पास अगर चाँदनी बिछी रहती है। तो बड़ी खुशी बिछी रहे, भगत जी उस बेचारी का कल्याण ही चाहते हैं।

Answer»

कठिन शब्दार्थ-प्रतीति = विश्वास। चाँदनी चौक = दिल्ली का एक पुराना बाजार। चाँदनी = आकर्षण। भूखी-की-भूखी = प्रभाव डालने में अक्षम। पंसारी = मसाले बेचने वाला।

सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘सृजन’ से संकलित ‘बाजार दर्शन’ शीर्षक विचारात्मक निबन्ध से उद्धृत है। इसके लेखक जैनेन्द्र कुमार हैं। लेखक का पड़ोसी एक सीधा-सरल चूरनवाला भगत है। वह बाजार की बाहरी और दिखावटी चमक-दमक से प्रभावित नहीं होता। बाजार का महत्व उसके लिए इतना ही है कि वहाँ से उसको अपनी आवश्यकता की चीजें मिलती हैं। वहाँ पैसे की जो विचारहीन अमानवीय दौड़ है उससे वह अप्रभावित रहता है।

व्याख्या-लेखक कहता है कि चूरन वाले भगत जी में नैतिक बल है। उनको बाजार की उपयोगिता मालूम है। वह बाजार की जानबूझकर उपेक्षा नहीं करते। उनको जीरा और नमक खरीदना है। वह चौक बाजार में मिलता है। चौक बाजार उनके लिए तभी तक महत्त्वपूर्ण तथा उपयोगी है जब तक वहाँ ये चीजें मिलती हैं। अपनी आवश्यकता के अनुरूप नमक-जीरा खरीदने के बाद चौक बाजार उनके लिए बेकार हो जाता है। भगत जी को पता है कि उनकी आवश्यकता जीरा और नमक है। उनको यह भलीभाँति विदित है। अतः चाँदनी चौक नामक बाजार का आकर्षण उनको प्रभावित नहीं करता। भगत जी उस आकर्षक बाजार से गुजरकर पंसारी की कोने की दुकान पर पहुँचते हैं और अपनी जरूरत का जीरा खरीदते हैं। यह एक स्वाभाविक क्रिया है। इसके बाद चाँदनी चौक का आकर्षण, उसमें प्रदर्शित सुन्दर चीजें भगत जी के लिए अस्तित्वहीन हो जाती हैं। वे उन्हें आकर्षित नहीं करतीं। चाँदनी चौक के समस्त वैभव के प्रति तटस्थ रहते हुए वह उसका भला चाहते हैं।

विशेष-
1. बाजार में अपनी आवश्यकता का ज्ञान होने पर जाना ही फिजूलखर्ची से बचा जा सकता है।
2. लेखक ने भगत जी का उदाहरण देकर बाजार की उपयोगिता बताई है।
3. भाषा बोधगम्य तथा विषयानुकूल है।
4. शैली विचारप्रधान है।



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