1.

महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्याएँ।उस बल को नाम जो दो, पर वह निश्चय उस तल की वस्तु नहीं है जहाँ पर संसारी वैभव फलता-फूलता है। वह कुछ अपर जाति का तत्व है। लोग स्पिरिचुअल कहते हैं, आत्मिक, धार्मिक, नैतिक कहते हैं। मुझे योग्यता नहीं कि मैं उन शब्दों में अन्तर देखें और प्रतिपादन करूं। मुझे शब्द से सरोकार नहीं। मैं विद्वान नहीं कि शब्दों पर अटकें; लेकिन इतना तो है कि जहाँ तृष्णा है, बटोर रखने की स्पृहा है-वहाँ उस बल का बीज नहीं है। बल्कि यदि उसी बल को सच्चा बल मानकर बात की जाय तो कहना होगा कि संचय की तृष्णा और वैभव की चाह में व्यक्ति की निर्बलता ही प्रमाणित होती है। निर्बल ही धन की ओर झुकता है। वह अबलता है। वह मनुष्य पर धन की और चेतन पर जड़ की विजय है। 

Answer»

कठिन शब्दार्थ-तल = संसार। वैभव = ऐश्वर्य। अपर = दूसरी, अन्य। स्पिरिचुअल = आध्यात्मिक। प्रतिपादन = स्थापना। सरोकार = मतलब। अटकू = उलझना। तृष्णा = लालच। स्पृहा = कामना, इच्छा। संचय = जोड़ना, इकट्ठा करना। अबलता = निर्बलता। चेतन = बौद्धिकता। जड़ = विचारशून्य।

सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘सृजन’ से संकलित ‘बाजार दर्शन’ शीर्षक विचारात्मक निबन्ध से उद्धृत है। इसके लेखक जैनेन्द्र कुमार हैं। धन में व्यंग्य की प्रबल शक्ति होती है। किन्तु चूरन वाले भगत जी पर उसका वश नहीं चलता, वह उससे अप्रभावित रहकर बाजार से केवल जरूरत की चीजें ही खरीदते हैं। उनके मन के बल के सामने धन का यह व्यंग्य बल अप्रभावी रहता है।

व्याख्या-लेखक कहता है कि उस बल को किसी भी नाम से पुकार सकते हैं। परन्तु वह इस संसार की चीज नहीं है। इस संसार में धन-ऐश्वर्य का मान होता है। उसे पाने के लिए लोग ललचाते हैं, कर्म, अकर्म करते हैं। वह बल किसी अन्य वर्ग से सम्बन्धित है। इस तत्व को आध्यात्मिक कहा जाता है। इसको आत्मिक, धार्मिक, नैतिक आदि नामों से पुकारा जाता है। लेखक शब्दों के झमेले में पड़ना नहीं चाहता वह कहता है कि शब्दों में अन्तर देखने तथा उनको स्थापित करने की योग्यता उसमें नहीं है। वह विद्वान नहीं है कि शब्दों में उलझे। परन्तु इतनी बात तो निश्चित ही मानने योग्य है कि जिस व्यक्ति में धन के प्रति लालसा और संग्रह की भावना होती है, उसमें उसकी शक्ति की उपेक्षा की ताकत नहीं होती। अगर इस नैतिक बल को सच मानें तो धन संग्रह की लालसा और ऐश्वर्य पाने की इच्छा से सिद्ध होता है कि वह व्यक्ति कमजोर है। आत्मिक बल के अभाव में कमजोर मनुष्य ही धन के पीछे दौड़ता है। यह मनुष्य की निर्बलता है। यह मनुष्य पर धन की जीत है। यह बौद्धिकता पर विचारहीनता की जीत है।

विशेष-
1. धन के मनुष्य पर प्रभाव को लेकर लेखक ने गम्भीर आत्मचिन्तन किया है।
2. जिनमें नैतिक बल होता है, वही धन के आकर्षण से बच पाते हैं। धन के पीछे दौड़ना मनुष्य की निर्बलता है।
3. भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ अंग्रेजी पर्याय का प्रयोग है। वाक्य छोटे तथा प्रभावशाली हैं।
4. शैली चिन्तन तथा विचारप्रधान है। सूक्ति कथन शैली भी प्रयुक्त हुई है।



Discussion

No Comment Found

Related InterviewSolutions