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महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्याएँ।पैसे की व्यंग्य-शक्ति की सुनिए। वह दारुण है। मैं पैदल चल रहा हूँ कि पास ही धूल उड़ाती निकल गई मोटर। वह क्या निकली मेरे कलेजे को कौंधती एक कठिन व्यंग्य की लीक ही आर-से-पार हो गई। जैसे किसी ने आँखों में उँगली देकर दिखा दिया हो कि देखो, उसका नाम है मोटर, और तुम उससे वंचित हो! यह मुझे अपनी ऐसी विडम्बना मालूम होती है कि बस पूछिए नहीं। मैं सोचने को हो आता हूँ कि हाय, ये ही माँ-बाप रह गए थे जिनके यहाँ मैं जन्म लेने को था। क्यों न मैं मोटरवालों के यहाँ हुआ। उस व्यंग्य में इतनी शक्ति है कि जरा में मुझे अपने संगों के प्रति कृतघ्न कर सकती है।

Answer»

कठिन शब्दार्थ-दारुण = भयंकर। लीक = लकीर। विडम्बना = दुर्भाग्य। कृतघ्न = अहसान फरामोश, आभार न मानने वाला।

सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘सृजन’ में संकलित ‘बाजार दर्शन’ शीर्षक निबन्ध से उद्धृत है। इसके लेखक जैनेन्द्र कुमार हैं। लेखक बता रहा है कि धन में प्रबल व्यंग्य शक्ति होती है। वह मनुष्य को तुरन्त प्रभावित करता है। भगत जी जैसे कुछ लोग ही धन की व्यंग्य शक्ति के प्रहार से अपनी रक्षा कर पाते हैं।

व्याख्या-लेखक धन की व्यंग्य शक्ति को उदाहरण देकर समझाता है। वह कहता है कि धन की व्यंग्य शक्ति भयंकर होती है। वह कहता है कि वह रास्ते में पैदल चल रहा है। तभी एक मोटर धूल उड़ाती हुई उसके पास से निकल जाती है। मोटर का उसके पास से तेजी से निकलना उसको ऐसा प्रतीत हुआ जैसे व्यंग्य की एक लकीर उसके हृदय को बेधती हुई आर-पार निकल गई हो। जैसे किसी ने उसकी आँख में उँगली डालकर उसे खोलकर दिखाया हो कि देखो इसको मोटर कहते हैं, यह मोटर तुम्हारे पास नहीं है। अपने पास मोटर न होना लेखक अपना दुर्भाग्य मानता है। वह तुरन्त सोचता है कि क्या उसे इन्हीं माँ-बाप के घर पैदा होना था। उसका जन्म किसी मोटरवाले के घर क्यों नहीं हुआ। यह व्यंग्य इतना शक्तिशाली है कि व्यक्ति थोड़ी ही देर में अपने सगे-सम्बन्धियों के प्रति कृतज्ञता को भुला देता है और पराया हो जाता है।

विशेष-
1. पैसे में प्रबल व्यंग्य शक्ति होती है। वह मनुष्य को गहराई तक प्रभावित करती है।
2. एक मामूली मोटर लेखक को कृतघ्न बना देती है उसके परिवार के साथ अपनत्व नहीं रह जाता।
3. भाषा गम्भीर तथा विषयानुकूल है।
4. विचारात्मक तथा उद्धरण शैली है।



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