InterviewSolution
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महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्याएँ।मैंने मन में कहा, ठीक। बाजार आमन्त्रित करता है कि आओ मुझे लूटो और लूटो। सब भूल जाओ, मुझे देखो। मेरा रूप और किसके लिए है? मैं तुम्हारे लिए हैं। नहीं कुछ चाहते हो तो भी देखने में क्या हरज है। अजी आओ भी। इस आमन्त्रण में यह खूबी है कि आग्रह नहीं है आग्रह तिरस्कार जगाता है। लेकिन ऊँचे बाजार का आमन्त्रण मूक होता है और उससे चाह जगती है। चाह मतलब अभाव। चौक बाजार में खड़े होकर आदमी को लगने लगता है कि उसके अपने पास काफी नहीं है। और चाहिए, और चाहिए। मेरे यहाँ कितना परिमित है और यहाँ कितनी अतुलित है। ओह! कोई अपने को न जाने तो बाजार का यह चौक उसे कामना से विकल बना छोड़े। विकल क्यों पागल। असन्तोष, तृष्णा और ईष्र्या से घायल कर मनुष्य को सदा के लिए बेकार बना डाल सकता है। |
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Answer» कठिन शब्दार्थ-आमन्त्रित करना = बुलाना। हरज = नुकसान, हानि। तिरस्कार = अपमान। मूक = गूंगा, शब्दहीन। चाह = इच्छा। काफी = पर्याप्त, अधिक। परिमित = सीमित, कम। अतुलित = अधिक। सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘सृजन’ में संकलित ‘बजार दर्शन’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक जैनेन्द्र कुमार हैं। लेखक कहता है कि कुछ लोग अनाप-शनाप खरीदारी करते हैं। अनावश्यक चीजें खरीदने का दोष वे अपनी पत्नी के सिर पर मढ़ देते हैं। फिजूलखर्ची उनकी आदत होती है। खरीदारी में पास में खूब पैसा होने का भी योगदान रहता है। इसके लिए बाजार भी प्रेरक होता है। ये तीनों तत्व ही फिजूलखर्ची के लिए उत्तरदायी होते हैं। व्याख्या-लेखक को उसके मित्र ने बताया कि बाजार में सजी हुई चीजें देखकर उनको खरीदने के लोभ से वह बच न सका और ढेर सारा सामान खरीद लाया। लेखक भी इस विषय में उससे सहमत हुआ। बाजार क्रेता को बुलाता है। चीजें खरीदने की लिए निमन्त्रण देता है। वह कहता है आकर मुझे लूटो, खूब लूटो। यहाँ आकर सब कुछ भुलाकर मुझे देखो। मेरा सुन्दर रूप तुम्हारे देखने के लिए ही बना है। यदि मुझसे किसी चीज की जरूरत नहीं है तब भी मुझे देखने में कोई हानि नहीं है। इस प्रकार बाजार का आकर्षण ग्राहक को बुलाता है। इस बुलाने की एक विशेषता यह है कि इसमें आग्रह का भाव नहीं होता। आग्रह में अपमान छिपा होता है। ऊँचे बाजार में ग्राहक को पुकार कर नहीं बुलाया जाता। वह उसको मौन रहकर ही आकर्षित करता है, बुलाता है। मौन बुलावा ग्राहक में इच्छा पैदा करता है। उसको लगता है कि बाजार में अनेक चीजें ऐसी हैं जो उसके पास नहीं हैं। चौक बाजार में खड़ा आदमी सोचता है कि उसके पास बहुत सी चीजें नहीं हैं उसको और चीजों की जरूरत है। बाजार में अपार सामान भरा पड़ा है किन्तु उसके पास बहुत कम सामान है। उसको और अधिक सामान की जरूरत है। बाजार का प्रबल आकर्षण उसको अपनी जेब खाली करने को बाध्य करता है। जिस मनुष्य को अपनी आवश्यकता का ठीक और सही पता नहीं होता, वह बाजार के आकर्षण, आमन्त्रण से बच नहीं पाता। उसके मन में चीजें खरीदने की प्रबल इच्छा उत्पन्न करके बाजार उसको व्याकुल ही नहीं व्यग्र कर देता है। वह उसको पागल कर देता है। बाजार में प्रदर्शित चीजों का आकर्षण उसकी सोच को विकृत कर देता है। वह उसके मन में नई-नई अनेक चीजों को पाने की लालसा पैदा कर देता है। जिनके घर में खूब सामान है उनके प्रति उसके मन में जलन की भावना पैदा हो जाती है। इस बाजार का प्रबल आकर्षण मनुष्य को असन्तुलित करके उसमें असंयम जगाता है तथा उसको सदा के लिए बेकार बना देता है। विशेष- |
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