| Answer» कविता : भक्ति पदकवइत्री : मीरा बाई
 जीवनकाल : सन् 1498 सन् 1573
 प्रसिद्ध रचना : मीराबाई पदावली विशेषताएँ : कृष्णोपासक कवियों में प्रसिद्ध, माधुर्य भाव के प्रयोग में पटु।
 मीरा बाई ने अपने पदों में गुरु की महिमा का वर्णन बहुत ही अच्छे ढंग से किया है।मीरा ने गुरु के द्वारा राम नाम रूपी रत्न पाया है। यह रत्न अमूल्य धन है।गुरु ने कृपा करके उसे यह मंत्र दिया है। इसे पाने के लिए उसने सब कुछ खोया है।यह महा मंत्र जन्म – जन्मों का मूल धन है।यह ऐसा धन है जो खर्च करने पर भी खर्च नहीं होता।इसे चोर भी लूट नहीं सकता। यह दिन – ब – दिन बढ़ता ही जाता है।सत्य को नाव बनाकर, गुरु को केवट बनाकर भव रूपी सागर पार किया जाता है।मीरा कहती है कि प्रभु गिरिधारी आप बहुत चतुर हैं।मैं प्रसन्नता के साथ आप के यश का गान कर रही हूँ।
 |