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“मीत सुजान अनीत करौ जिन” छंद में कवि ने सुजान को उपालंभ क्यों दिया है?

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कवि घनानंद ने इस छंद में सुजाने के भावनात्मक अत्याचारों का कड़ा विरोध किया है। जिस प्रेमी ने प्रिय पर अपना सब कुछ लुटा दिया-पद-सम्मान-निवास स्थान वहीं निर्मोही उसे प्रेम के प्यासे को प्यासा मारे तो भी वह चुप रहे ! यह बड़ा अन्याय होगा। ऐसे विश्वासघाती को उपालम्भ (उलाहना) भी न दिया जाए ? यह कवि घनानंद के अति सहनशील प्रेम की उदारता ही है कि वह निष्ठुर सुजान को केवल उलाहना ही दे रहे हैं। वरना प्रेम में दगा के तो गम्भीर दुष्परिणाम देखे जाते हैं।



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