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ममता महत्वपूर्ण गद्यांशों की सन्दर्भ-प्रसंग सहित व्याख्याएँ।“परन्तु तुम भी वैसे ही क्रूर हो, वही भीषण रक्त की प्यास, वही निष्ठुर प्रतिबिम्ब, तुम्हारे मुख पर भी है! सैनिक! मेरी कुटी में स्थान नहीं। जाओ, कहीं दूसरा आश्रय खोज लो।”“गला सूख रहा है, साथी छूट गये हैं, अश्व गिर पड़ा है-इतना थका हुआ हूँ-इतना!” कहते-कहते वह व्यक्ति धम से बैठ गया और उसके सामने ब्रह्माण्ड घूमने लगा। स्त्री ने सोचा, यह विपत्ति कहाँ से आई। उसने जल दिया, मुगल के प्राणों की रक्षा हुई। वह सोचने लगी- “ये सब विधर्मी दया के पात्र नहीं-मेरे पिता का वध करने वाले आततायी!” घृणा से उसका मन विरक्त हो गया। ..स्वस्थ होकर मुगल ने कहा- “माता! तो फिर मैं चला जाऊँ?”स्त्री विचार कर रही थी-“मैं ब्राह्मणी हूँ, मुझे तो अपने धर्म-अतिथिदेव की उपासना का पालन करना चाहिए। परन्तु यहाँ…..नहीं नहीं ये सब विधर्मी दया के पात्र नहीं। परन्तु यह दया तो नहीं……कर्तव्य करना है। तब?”

Answer»

कठिन-शब्दार्थ- क्रूर = निर्दयी। निष्ठुर = कठोर, निर्दयतापूर्ण। प्रतिबिम्ब = छाया। आश्रय = शरणस्थल। ब्रह्माण्ड = पूरा संसार। विधर्मी = अपने धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म के अनुयायी। आततायी = दुष्ट, अशांति फैलाने वाला। विरक्त = स्नेहहीन। अतिथि देव की उपासना = अतिथि को देवता मानकर उसका सत्कार करना।

सन्दर्भ एवं प्रसंगः-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘सृजन’ में संकलित ममता शीर्षक कहानी से उदधृत है। इसके रचयिता जयशंकर प्रसाद हैं।

मुगल ने ममता से शरण माँगी और उसके झोपड़ी में रात्रि विश्राम करने की अनुमति चाही। उसने बताया कि वह चौसा युद्ध में शेरशाह से परास्त होकर भटक रहा है। वह थका हुआ है तथा किसी सुरक्षित स्थान पर रात बिताना चाहता है।

व्याख्या–ममता ने मुगल की बात सुनकर कहा-किन्तु तुम भी शेरशाह के समान ही निर्दयी लगते हो। तुम्हारे मुख पर वैसी ही निर्दयता की झलक है। तुम भी उसी प्रकार खून के प्यासे हो। यह कहते हुए ममता ने उसको अपनी झोपड़ी में शरण देने से मना कर दिया। उसने कह दिया कि वह कोई दूसरा स्थान तलाश करे। उस मुगल ने बताया कि उसे जोर की प्यास लगी है। उसका गला सूख रहा है। उसके साथी पीछे छूट गए हैं। उसका घोड़ा गिर पड़ा है। वह बहुत ज्यादा थका हुआ है। यह बताते-बताते वह धम्म की आवाज के साथ जमीन पर बैठ गया। समस्त सृष्टि उसको चक्कर काटती हुई प्रतीत हुई। उसको इस दयनीय दशा में देखकर ममता ने सोचा कि उसके सामने यह आपत्ति कहाँ से आ गई। उसने मुगल को पानी पिलवाया तो उसकी जान में जान आई। वह कुछ स्वस्थ हुआ। उसके प्राण बचे।

ममता ने सोचा-वह भी शेरशाह की तरह दूसरे और पराये धर्म को मानने वाला है। इन पर दया नहीं करनी चाहिए। इन दुष्टों ने ही मेरे पिता का वध किया था। उसके मन में घृणा की भावना उत्पन्न हो गई। उस कारण उसके मन से स्नेह का भाव समाप्त हो गया। मुगल कुछ स्वस्थ हुआ तो उसने पूछा-माता! तो मैं चला जाऊँ? ममता ने विचार किया कि वह ब्राह्मण जाति की स्त्री है। उसको अपने अतिथि सत्कार के कर्तव्य से विमुख नहीं होना चाहिए। फिर उसने सोचा कि उसको उन सभी विधर्मियों पर दया नहीं दिखानी चाहिए। वे दया के योग्य नहीं हैं। उसके मन में द्वन्द्व हो रहा था। वह सोच रही थी कि यह दया नहीं है। यह तो अतिथि सत्कार के अपने कर्तव्य का पालन करना है-तब वह क्या करे?

विशेष-

(i) मुगल थका और प्यासा था। उसने ममता से शरण माँगी।
(ii) मुगल विधर्मी था। उसको देखकर ममता को क्रूर शेरशाह का स्मरण हो आया। उसे शरण देना उचित नहीं लगा। परन्तु ममता के मन में शरण देने न देने तथा शरणागत वत्सलता दिखाने या न दिखाने के भावों के बीच संघर्ष होने लगा।
(iii) भाषा संस्कृतनिष्ठ, परिमार्जित तथा प्रवाहपूर्ण है।
(iv) शैली वर्णनात्मक तथा विचारात्मक है।



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