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ममता महत्वपूर्ण गद्यांशों की सन्दर्भ-प्रसंग सहित व्याख्याएँ।अश्वारोही पास आया। ममता ने रुक-रुककर कहा-‘मैं नहीं जानती कि वह शहंशाह था या साधारण मुगल, पर एक दिन इसी झोपड़ी के नीचे वह रहा। मैंने सुना था कि वह मेरा घर बनवाने की आज्ञा दे चुका था! भगवान ने सुन लिया, मैं आज इसे छोड़े जाती हूँ। अब तुम इसका मकान बनाओ या महल, मैं अपने चिर-विश्राम-गृह में जाती हूँ।’ वह अश्वारोही अवाक् खड़ा था। बुढ़िया के प्राण-पक्षी अनन्त में उड़ गये। वहाँ एक अष्टकोण मन्दिर बना और उस पर शिलालेख लगाया गया ‘सातों देश के नरेश हुमायूँ ने एक दिन यहाँ विश्राम किया था। उनके पुत्र अकबर ने उनकी स्मृति में यह गगनचुम्बी मन्दिर बनाया।’ पर उसमें ममता का कहीं नाम नहीं।

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कठिन-शब्दार्थ-अश्वारोही = घुड़सवार। शहंशाह = बादशाह। चिर विश्राम गृह = परलोक। अवाक् = शांत, बिना कुछ बोले। अनन्त = जिसका अन्त न हो। अष्टकोण आठ कोनों वाला मंदिर भवन। शिलालेख = पत्थर पर लिखी बात। गगनचुम्बी = अत्यन्त ऊँचा।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘सृजन’ में संकलित ‘ममता’ शीर्षक कहानी से उदघृत है। इसके रचयिता जयशंकर प्रसाद हैं।

ममता सत्तर वर्ष की वृद्धा थी। वह बीमार और मरणासन्न थी। उसी समय उसकी झोपड़ी के द्वार पर एक घुड़सवार आया। वह उस स्थान को तलाश रहा था जहाँ कभी हुमायूँ ने रात बिताई थी।

व्याख्या–ममता ने घुड़सवार की बात सुन ली थी। उसने उसको अपने पास बुलाया। घुड़सवार उसके पास आया तो ममता ने अटक-अटक कर उसको बताया कि वह जिस स्थान को तलाश रहा है, वह यही स्थान है। इसी झोपड़ी में कभी एक मुगल सैनिक ने रात में विश्राम किया था। उसको यह नहीं पता कि वह साधारण मुगल था या कोई बादशाह था। उसने सुना था कि उसने ममता का घर बनवाने की आज्ञा दी थी। आज ईश्वर ने उसकी बात सुन ली है। उसका बुलावा आ गया है। वह इस झोपड़ी को छोड़कर जा रही है। अब वे लोग इसका मकान बनाएँ या महल, यह उनकी मर्जी है। वह तो अपने स्थायी निवास स्थान अर्थात् परलोक जा रही है। यह कहते-कहते ममता ने प्राण त्याग दिए। उस स्थान पर एक अत्यन्त ऊँचा आकाश को छूने वाला भव्य आठ कोने वाला भवन बनाया गया। उस पर एक पत्थर लगा था, जिसमें यह लिखा था-यहाँ बादशाह हुमायूँ ने एक रात विश्राम किया था। उस घटना को यादगार बनाने के लिए उसके पुत्र अकबर ने इस आकाश को चूमने वाले ऊँचे भवन को बनवाया है। इस शिलालेख में ममता का नाम कहीं नहीं था।

विशेष-
(i) ममता के अन्त समय का वर्णन है।
(ii) ममता का नाम शिलालेख में न होना उसकी उपेक्षा का सूचक है। भवन बनाने वालों को यह चिन्ता तो है कि हुमायूँ कहाँ रुका था किन्तु ममता की उदारता तथा त्याग का उनको ध्यान भी नहीं आता।
(iii) भाषा संस्कृतनिष्ठ, तत्सम प्रधान तथा प्रवाहपूर्ण है।
(iv) शैली वर्णनात्मक है। अंतिम पंक्ति व्यंग्यपूर्ण है।



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