InterviewSolution
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‘ममता’ शीर्षक कहानी का सारांश लिखिए। |
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Answer» परिचय-‘ममता’ प्रसाद जी की प्रसिद्ध ऐतिहासिक कहानी है। इसमें काव्यात्मक भाषा में एक कर्तव्यपरायण और त्यागी नारी का चित्रण किया गया है। युवती ममता-रोहतास के किले में एक कमरे में युवती ममता बैठी हुई शोण नदी का प्रवाह देख रही थी। वह विधवा थी। चूड़ामणि उसके पिता थे। वह कमरे में आए किन्तु ममता का ध्यान भंग नहीं हुआ तो लौट गए। वह अपनी पुत्री के लिए चिन्तित थे। कुछ समय बाद वह पुन: लौटे। उनके साथ दस नौकर चाँदी के बड़े-बड़े थाल लेकर आए। उनमें मूल्यवान सोना भरा था। चूड़ामणि रोहतास-दुर्ग के स्वामी के मंत्री थे। शेरशाह उस पर अधिकार करना चाहता था। उसने यह धन उत्कोच के रूप में मंत्री को दिया था। ममता ने पिता से उसे लौटा देने को कहा। उसने कहा- वे ब्राह्मण हैं, उनको इतने धन की जरूरत नहीं है। दुर्ग का त्याग-दूसरे दिन डोलियों की कतारें किले के द्वार से अन्दर आ रही थीं। चूड़ामणि ने उनका पर्दा खुलवाना चाहा। साथ चल रहे पठान सैनिक तैयार नहीं हुए। बात बढ़ी तो उन्होंने मंत्री चूड़ामणि की हत्या कर दी। डोलियों में छिपे सैनिक बाहर निकले। उन्होंने दुर्ग पर अधिकार कर लिया। किला शेरशाह के अधिकार में जा चुका था। सैनिकों ने ममता को तलाश किया परन्तु वह दुर्ग छोड़कर पहले ही जा चुकी थी। ममता की झोपड़ी काशी में एक बिहार का खंडहर था। उसमें ममता ने झोपड़ी बना ली थी। वह अपनी झोपड़ी में बैठी धार्मिक पाठ कर रही थी। दीपक के मंदप्रकाश में उसने झोपड़ी के द्वार पर एक अत्यन्त हताश और थके-माँदे व्यक्ति को देखा। वह उठकर दरवाजा बन्द करना चाहती थी परन्तु उस व्यक्ति ने उससे आश्रय की याचना की। परिचय पूछने पर उसने बताया कि वह मुगल हुमायूँ था। शेरशाह से चौसा युद्ध में हारकर रास्ता भटक गया था। उसके सैनिक छूट गए थे। ममता का भय और शंका-ममता को भय लगा। वह विधर्मी था। शेरशाह ने बलपूर्वक उसके पिता की हत्या कर रोहतास दुर्ग पर अधिकार कर लिया था। वह भी ऐसा ही कर सकता है। उसने आश्रय देने से मना कर दिया। छल की शंका से व्यथित हुमायूँ जाने लगा तो ममता को अपना अतिथि सरकार का धर्म याद आया। उसने हुमायूँ को रोका और झोपड़ी में विश्राम करने को कहा। वह बाहर चली गई। खंडहर में छिपी ममता–सबेरा हुआ। खंडहर में छिपी ममता. ने एक दरार से देखा कि वहाँ अनेक सैनिक घूम रहे थे। वे किसी को तलाश रहे थे। वह भयभीत होकर छिपने के लिए मृगदाब में चली गई। मुगल हुमायूँ झोपड़ी से बाहर आया। उसने एक सैनिक से ममता को तलाश करने के लिए कहा। बाद में घोड़े पर सवार होते हुए उसने कहा-मिरजा, मैं उस स्त्री को कुछ दे न सका। उसने मुझे आश्रय दिया था। तुम यह स्थान याद रखना। उसका घर बनवा देना। इसके बाद वे सब वहाँ से चले गए। वृद्धा ममता-ममता अब बूढ़ी हो गई थी। वह सत्तर साल की थी। सर्दी के दिन थे। खाँसी आती तो पूरा शरीर हिल उठता था। गाँव की स्त्रियाँ ममता की सेवा में लगी थीं। ममता जीवन भर सबके सुख-दुख की साथी रही थी। प्यास लगने पर एक स्त्री ने उसे पानी पिलाया। अश्वरोही का आना-तभी वहाँ एक घुड़सवार आया। वह कह रहा था—मिरजा ने जो चित्र दिया वह तो इसी स्थान का है। सैंतालीस साल हो गए। वह स्त्री बूढ़ी होकर मर गई होगी। अब किससे पूछु कि मुगल सम्राट हुमायूँ ने किस झोपड़ी में विश्राम किया था। ममता ने सुना तो उसको बुलवाया। उसने उसे बताया कि वह नहीं जानती कि वह साधारण मुगल था या सम्राट। उसने यहाँ पर ही रात बिताई थी। अब वह यह संसार छोड़कर जा रही है। तुम यहाँ मकान बनाओ या महल। इतना कहते ही ममता के प्राणपखेरू उड़ गए। अष्टकोण मन्दिर-उस स्थान पर एक भव्य अष्टकोण का भवन बनाया गया। उस पर शिलालेख लगा था-इस स्थान पर मुगल सम्राट हुमायूँ ने विश्राम किया था। उनके पुत्र अकबर ने इसी स्मृति को स्थायी रखने के लिए इस भव्य मंदिर का निर्माण कराया। इस शिलालेख में ममता का कोई उल्लेख नहीं था। |
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