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| 1. | नागार्जुन का जीवन-परिचय देते हुए उनकी भाषा-शैली का उल्लेख कीजिए।यानागार्जुन का जीवन वृत्त लिखकर उनके साहित्यिक योगदान का उल्लेख कीजिए।यानागार्जुन के साहित्यिक अवदान एवं रचनाओं पर प्रकाश डालिए।यानागार्जुन का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए तथा उनके काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए। | 
| Answer» (नागार्जुन) जन्म – सन् 1910 ई०, तरौनी (जिला दरभंगा (बिहार)। जीवन-परिचय – श्री नागार्जुन का जन्म दरभंगा जिले के तरौनी ग्राम में सन् 1910 ई० में हुआ था। आपका वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र है। आपका आरम्भिक जीवन अभावों का जीवन था। जीवन के अभावों ने ही आगे चलकर आपके संघर्षशील व्यक्तित्व का निर्माण किया व्यक्तिगत दुःख ने आपको मानवता के दु:ख को समझने की क्षमता प्रदान की है। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा स्थानीय संस्कृत पाठशाला में हुई। सन् 1936 ई० में आप श्रीलंका गये और वहाँ पर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। सन् 1938 ई० में आप स्वदेश लौट आये। राजनीतिक कार्यकलापों के कारण आपको कई बार जेल-यात्रा भी करनी पड़ी। आप बाबा के नाम से प्रसिद्ध हैं तथा घुमक्कड़ एवं फक्कड़ किस्म के व्यक्ति हैं। आप निरन्तर भ्रमण करते रहे। सन् 1998 ई० में आपका निधन हो गया। रचनाएँ – युगधारा, प्यासी-पथराई आँखें, सतरंगे पंखोंवाली, तुमने कहा था, तालाब की मछलियाँ, हजार-हजार बाँहोंवाली, पुरानी जूतियों का कोरस, भस्मांकुर (खण्डकाव्य) आदि। उपन्यास – बलचनमा, रतिनाथ की चाची, नयी पौध, कुम्भीपाक, उग्रतारा आदि। सम्पादन-दीपक, विश्व-बन्धु पत्रिका। मैथिली के ‘पत्र – हीन नग्न-गाछ’ काव्य-संकलन पर आपको साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिल चुका है। काव्यगत विशेषताएँ नागार्जुन के काव्य में जन भावनाओं की अभिव्यक्ति, देश-प्रेम, श्रमिकों के प्रति सहानुभूति, संवेदनशीलता तथा व्यंग्य की प्रधानता आदि प्रमुख विशेषताएँ पायी जाती हैं। अपनी कविताओं में आप अत्याचार-पीड़ित, त्रस्त व्यक्तियों के प्रति सहानुभूति प्रदर्शित करके ही सन्तुष्ट नहीं होते हैं, बल्कि उनको अनीति और अन्याय का विरोध करने की प्रेरणा भी देते हैं। व्यंग्य करने में आपको संकोच नहीं होता। तीखी और सीधी चोट करनेवाले आप वर्तमान युग के प्रमुख व्यंग्यकार हैं। नागार्जुन जीवन के, धरती के, जनता के तथा श्रम के गीत गानेवाले कवि हैं, जिनकी रचनाएँ किसी वाद की सीमा में नहीं बँधी हैं। भाषा – शैली–नागार्जुन जी की भाषा-शैली सरल, स्पष्ट तथा मार्मिक प्रभाव डालनेवाली है। काव्य-विषय आपके प्रतीकों के माध्यम से स्पष्ट उभरकर सामने आते हैं। आपके गीतों में जन- जीवन का संगीत है। आपकी भाषा तत्सम प्रधान शुद्ध खड़ीबोली है, जिसमें अरबी व फारसी के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। अलंकार एवं छन्द – आपकी कविता में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है। उपमा, रूपक, अनुप्रास आदि अलंकार ही देखने को मिलते हैं। प्रतीक विधान और बिम्ब-योजना भी श्रेष्ठ है। | |