1.

निम्नांकित गद्यांशों में रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या और तथ्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजिये‘मर्द की जबान’ (बात का उदय स्थान) और गाड़ी का पहिया चलता-फिरता ही रहता है। आज जो बात है कल ही स्वार्थान्धता के वश हुजूरों की मरजी के मुवाफिक दूसरी बातें हो जाने में तनिक भी विलम्ब की सम्भावना नहीं है। यद्यपि कभी-कभी अवसर पड़ने पर बात के अंश का कुछ रंग-ढंग परिवर्तित कर लेना नीति-विरुद्ध नहीं है। पर कब? जात्युपकार, देशोद्धार, प्रेम-प्रचार आदि के समय न कि पापी पेट के लिए।(1) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(3) लेखक ने किसे नियमों का उल्लंघन नहीं माना है?(4) ‘मर्द की जबान’ के चलते-फिरते रहने से क्या तात्पर्य है?(5) बात के ढंग का कुछ रंग-ढंग परिवर्तित कर लेना किस प्रकार नीति विरुद्ध नहीं है?

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1.सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ के ‘बात’ पाठ से उद्धृत है। इसके लेखक पं० प्रतापनारायण मिश्र हैं। पं० प्रतापनारायण मिश्र ने प्रस्तुत गद्यांश में यह बताया है कि प्राचीन काल में हमारे यहाँ के लोग बात के पक्के होते थे, किन्तु आजकल स्वार्थ में अन्धे लोग तुरन्त बात बदल देते हैं। |

2.रेखांकित अंश की व्याख्या – लेखक का कथन है कि आजकल के भारत के अनेक कुपुत्रों ने यह तरीका अपना रखा है कि आदमी की जवान और गाड़ी का पहिया तो चलते ही रहते हैं अर्थात् गाड़ी का पहिया जिस प्रकार स्थिर नहीं रहता उसी प्रकार जबाने की स्थिर रहना या बात का पक्का होना आवश्यक नहीं है। यह कथन उन्हीं स्वार्थी लोगों का है जिनके लिए जाति, देश और सम्बन्धों का कोई महत्त्व नहीं होती। ऐसे लोगों की आज की जो बात है कल ही वह स्वार्थवश मालिक के मन के अनुसार बदलने में थोड़ी भी देर नहीं लगाते हैं।

लेखक आगे कहता है कि किसी महान् उद्देश्य की साधना या समय आने पर बात के रंग-ढंग या कहने का तरीका बदल लेने में किसी नियम का उल्लंघन नहीं है। ऐसा मानव जाति की भलाई के समय, देशोद्धार के समय और प्रेम-प्रसंग में ही करना चाहिए अर्थात् यदि बात बदलने से मानव जाति की भलाई होती है, देश का कल्याण होता है या प्रेम-प्रसंग में प्रेमी-प्रेमिका का हित छिपा है तो कोई नियम विरुद्ध कार्य नहीं है। स्वार्थ या पापी पेट को भरने के लिए कभी भी बात नहीं बदलनी चाहिए।

3.यदि बात बदलने से मानव जाति की भलाई होती है, देश का कल्याण होता है या प्रेम-प्रसंग में प्रेमी-प्रेमिका को हितं छिपा है तो कोई नियम विरुद्ध कार्य नहीं है।

4.‘मर्द की जबान’ के चलते-फिरते रहना का तात्पर्य है स्वार्थवश बात बदलने में विलम्ब न लगना है।

5.जाति उपकार और देशोद्धार के लिए अवसर पड़ने पर बात के कुछ रंग-ढंग को परिवर्तित कर लेना नीति विरुद्ध नहीं है।



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