1.

निम्नांकित गद्यांशों में रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या और तथ्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजियेजब परमेश्वर तक बात का प्रभाव पहुँचा हुआ है तो हमारी कौन बात रही? हम लोगों के तो ‘गात माँहि बात करामात है।’ नाना शास्त्र, पुराण, इतिहास, काव्य, कोश इत्यादि सब बात ही के फैलाव हैं जिनके मध्य एक-एक बात ऐसी पायी जाती है जो मन, बुद्धि, चित्त को अपूर्व दशा में ले जानेवाली अथच लोक-परलोक में सब बात बनानेवाली है। यद्यपि बात का कोई रूप नहीं बतला सकता कि कैसी है पर बुद्धि दौड़ाइये तो ईश्वर की भाँति इसके भी अगणित ही रूप पाइयेगा। बड़ी बात, छोटी बात, सीधी बात, खोटी बात, टेढ़ी बात, मीठी बात, कड़वी बात, भली बात, बुरी बात, सुहाती बात, लगती बात इत्यादि सब बाते ही तो हैं।(1)  गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।(2) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।(3) “गात माँहि बात करामात है।” का क्या तात्पर्य है?(4) कौन-सी बात चित्त, मन और बुद्धि को अपूर्व दिशा की ओर अग्रसर करती है?(5) ‘बड़ी बात’, ‘छोटी बात’ एवं ‘सीधी बात’ मुहावरे का क्या अभिप्राय है?

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1.सन्दर्भ  प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक हिन्दी गद्य में संकलित पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित ‘बात’ शीर्षक पाठ से उद्धत किया गया है। इसमें लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है कि बात का प्रभाव मनुष्य तक नहीं, बल्कि ईश्वर तक भी है।

2.रेखांकित अंशों की व्याख्या इन पंक्तियों में लेखक बात की महत्ता दिखाते हुए कहता है कि बात का प्रभाव मनुष्य तक ही सीमित नहीं, परमेश्वर तक इसके प्रभाव से बच नहीं पाये। यद्यपि परमेश्वर के विषय में कहा गया है कि उसकी न वाणी है, न हाथ हैं, न पैर हैं, बल्कि वह तो निराकार निरंजन है तथापि उसे बिना वाणी का वक्ता कहा गया है। जब निराकार ब्रह्म पर भी बात को प्रभाव होता है तो फिर हम शरीरधारी मनुष्यों का तो कहना ही क्या है? हमारे शरीर में तो बात (भाषण शक्ति अथवा वायु) का ही चमत्कार है। अनेक शास्त्र, पुराण, इतिहास, काव्य, कोष आदि जितना भी साहित्य है, वह सब बात का ही विस्तार है। इन विविध प्रकार के ग्रन्थों में एक से बढ़कर एक बातें पायी जाती हैं। एक-एक बात ऐसी अमूल्य है कि जो हमारे मन, बुद्धि और चित्त को अपूर्व आनन्दमयी दशा में पहुँचा देती है। इन ग्रन्थों की बातें ही लोक तथा परलोक की सब बातों का ज्ञान कराती हैं। लेखक कहता है कि बात का रूप-रंग नहीं होता। कोई कह नहीं सकता कि अमुक बात ऐसी है परन्तु यदि बुद्धि से विचार कर देखा जाय तो हम पायेंगे कि जैसे भगवान् के अनेक रूप होते हैं, उसी प्रकार बात के भी अनेक रूप होते हैं, जैसे बड़ी बात, छोटी बात, सीधी बात, टेढ़ी बात, मीठी, कड़वी, भली, बुरी, सुहाती और लगती बात आदि कैसी भी हों ये सब बात के ही रूप हैं।

3.“गात माँहि बात करामात है।” का तात्पर्य है कि हमारे शरीर में तो बात का ही चमत्कार है।

4.नानाशास्त्र, पुराण, इतिहास काल आदि की बातें चित्त, मन और बुद्धि को अपूर्व दिशा की ओर अग्रसर करती है।

5.‘बड़ी बात’, ‘छोटी बात’ एवं ‘सीधी बात’ मुहावरे का अभिप्राय बात का स्वरूपगत वैभिन्नता को दर्शाना है।



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