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टिप्पणी लिखिए-बाल-अपराधी का मनोवैज्ञानिक उपचार।याबाल अपराध के उपचार में मनोचिकित्सा की क्या भूमिका है?

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बाल-अपराध की उत्पत्ति से सम्बन्धित दो प्रमुख कारक हैं – सामाजिक या परिवेशगत कारक तथा मनोवैज्ञानिक कारक। सामाजिक या परिवेशगत कारकों की वजह से उत्पन्न अवयस्क या बाल-अपराध को सुधार-गृहों तथा प्रवीक्षण कानून द्वारा दूर किया जा सकता है, किन्तु इनके माध्यम से व्यक्गित दोषों का निवारण नहीं हो सकता। यदि कोई बालक बौद्धिक कारणों से, संवेगात्मक अस्थिरता, व्यक्तित्व सम्बन्धी असन्तुलन तथा मानसिक विकारों की वजह से अपराध के लिए प्रवृत्त हुआ है तो उसका उपचार सुधार संस्थाओं या प्रवीक्षण द्वारा करना सम्भव नहीं है। अनेकानेक मनोवैज्ञानिकों के अनवरत अध्ययन तथा अनुसन्धान कार्य से निष्कर्ष प्राप्त हुए हैं कि अधिकांश अपराधी बालक मानसिक अस्वस्थता के शिकार होकर अपराध करते हैं, इनके व्यक्तित्व का समुचित विकास नहीं हो पाता तथा ये विभिन्न मनोवैज्ञानिक दोषों से प्रेरित होते हैं; अतः इन्हें सुधारने के लिए मनोवैज्ञानिक उपायों की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। आजकल सुधार संस्थाओं में मनोवैज्ञानिक उपचार के समुचित साधन उपलब्ध हैं। मनोवैज्ञानिक उपचार का प्रथम सोपान निदान (Diagnosis) अर्थात् अपराध के कारण की खोज है, जिसके लिए मनोवैज्ञानिक विधियो; जैसे—निरीक्षण, परीक्षण, जीवन-वृत्त तथा साक्षात्कार का सहारा लिया जाता है, तत्पश्चात् उपचार की कार्य योजना तैयार की जाती है। बाल-अपराधियों के उपचार के लिए अपनायी जाने वाली मुख्य मनोवैज्ञानिक विधियाँ हैं-क्रीड़ा-चिकित्सा, अंगुलि-चित्रण तथा मनोअभिनय।



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