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‘तुम कभी भी नहीं आओगे सूखे बरगद को हरीतिमा देने’ का भावार्थ समझाइए।

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कवि का जीवन सूखे बरगद की भाँति चेतना – शून्य हो गया है। फिर भी वह अपने जीवन में नएपन की उम्मीद लगाए बैठा है। जबकि उसे मालूम है कि उसके शुष्क जीवन में नयापन कभी नहीं आनेवाला है।



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