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उत्तर भारत में चीनी उद्योग के स्थानीयकरण के प्रमुख तीन कारणों की समीक्षा कीजिए। मध्य भारत में इस उद्योग के लगाने में प्रमुख दो बाधाओं पर प्रकाश डालिए।

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उत्तर भारत में चीनी उद्योग के स्थानीयकरण के कारण

  • कच्चे माल के रूप में गन्ने का पर्याप्त उत्पादन।
  • अनुकूल जलवायु
  • शक्ति के संसाधनों की उपलब्धता।
  • सस्ते एवं कुशल श्रम की बहुलता।
  • परिवहन के सस्ते साधनों की उपलब्धता।
  • व्यापक बाजार।

मध्य भारत में चीनी उद्योग स्थापित करने में आने वाली बाधाएँ मध्य भारत में चीनी उद्योग को स्थापित करने में आने वाली दो प्रमुख बाधाएँ निम्नलिखित हैं

1. श्रमिकों की अनुपलब्धता – गन्ने की एक फसल 10-12 महीनों में तैयार होती है। गन्ने के लिए खेत तैयार करने, बोने, निराई-गुड़ाई करने तथा उन्हें काटकर मिलों तक पहुँचाने के लिए सस्ते एवं कुशल श्रमिकों की पर्याप्त संख्या में आवश्यकता होती है। इसी कारण से गन्ना सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों में ही उगाया जाता है। मध्य भारत के अन्तर्गत आने वाले राज्यों में भौगोलिक स्थितियों के कारण जनसंख्या अत्यधिक विरल है, अतः श्रमिकों की अनुपलब्धता है, जो कि इस उद्योग के स्थापित होने में प्रमुख रूप से बाधक है।

2. उपयुक्त मृदा की अनुपलब्धता – गन्ने की खेती के लिए उपजाऊ दोमट तथा नमीयुक्त गहरी– चिकनी मिट्टी उपयुक्त होती है। यह मिट्टी से अधिक पोषक तत्त्व भी ग्रहण करता है। इसलिए इसे अतिरिक्त खाद की भी आवश्यकता होती है। मध्य भारत के अन्तर्गत आने वाले राज्यों में न तो गन्ने की उपज के लिए अनुकूल उपजाऊ मृदा उपलब्ध है और न ही खादों की आपूर्ति सुगम है। यही कारण इस उद्योग के स्थापित होने में बाधक हैं।। उपर्युक्त दोनों कारणों से भी अधिक गन्ने की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु, परिवहन के साधन, समुचित वर्षा, सिंचाई के साधनों का अभाव आदि मध्य भारत में इस उद्योग को स्थापित करने में प्रमुख रूप से बाधक हैं।



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