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वैवाहिक संस्कार में कन्यादान खुशी का अवसर माना जाता है, पर यहाँ माँ दुखी क्यों थी?

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वैवाहिक संस्कार की रस्मों में कन्यादान पवित्र एवं महत्त्वपूर्ण रस्म है। यह खुशी का अवसर होता है परंतु ‘कन्यादान’ कविता में माँ इसलिए दुखी थी क्योंकि विवाह के उपरांत वह बिलकुल अकेली पड़े जाएगी। वह अपने सुख दुख की बातें अब किससे करेगी। इसके अलावा वह बेटी को पूँजी समझती थी जो आज उससे दूर हो रही है।



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