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“वह अर्थशास्त्र सरासर औंधा है। वह मायावी शास्त्र है। वह अर्थशास्त्र अनीति-शास्त्र है।” -लेखक के इस कथन पर बाजार के सन्दर्भ में टिप्पणी कीजिए।

Answer»

अर्थशास्त्र को बाजार का शास्त्र कहा जाता है क्योंकि वह बाजार का पोषण करता है। वह बताता है कि ग्राहक को आकर्षित करके उसको अनावश्यक वस्तुओं को खरीदने के लिए किस प्रकार प्रेरित किया जाय तथा किस तरह उसका शोषण किया जाय। पूँजीवादी अर्थव्यवस्था बाजार को ग्राहक का शत्रु बना देती है। ऐसे बाजार में ग्राहक के साथ छल-कपट और शोषणपूर्ण व्यवहार होता है। जनता के लिए बाजार की सार्थकता समाप्त हो जाती है। ऐसे बाजार में शैतानी शक्ति होती है। उसका लक्ष्य समाज की आवश्यकता को पूरा करना नहीं अधिक से अधिक धन कमाना बन जाता है। अत: लेखक ने उसको उल्टी सोच वाला, मायावी तथा अनीति-शास्त्र कहा है।



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