1.

विरहिणी प्रातःकाल से सायंकाल तक निहारती रहती है(क) अपने भवन के द्वार को(ख) श्रीकृष्ण के चित्र को(ग) वन की दिशा को(घ) अपनी सखी-सहेलियों को

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(ग) वन की दिशा को



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