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Answer» उपयुक्त वेशभूषा व्यक्तिगत सज्जा का मूल आधार है। सुन्दर एवं उपयुक्त वस्त्रों से मनुष्य का बाहरी व्यक्तित्व आकर्षक हो जाता है, आत्मविश्वास में वृद्धि होती है एवं इससे मनुष्य को मानसिक प्रसन्नता होती है। उपयुक्त वस्त्र आयु, लिंग, व्यवसाय, अवसर एवं ऋतुओं के अनुकूल होते हैं। ये मनुष्य को शारीरिक सुख एवं आराम प्रदान करने के साथ-साथ उसके रहन-सहन के स्तर के भी परिचायक होते हैं। अतः संक्षेप में हम कह सकते हैं कि व्यक्तिगत सज्जा व्यक्ति-विशेष के मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, अवसर के अनुकूल एवं रहन-सहन के अपेक्षित स्तर को बनाए रखने व प्रदर्शित करने की प्रभावशाली विधि है। व्यक्तिगत सज्जा का अर्थ उपर्युक्त सामान्य परिचय के आधार पर व्यक्तिगत सज्जा का अर्थ स्पष्ट किया जा सकता है। वास्तव में, व्यक्ति के बाहरी व्यक्तित्व को निखारने एवं आकर्षक बनाने के लिए व्यक्ति द्वारा अपनाए जाने वाले समस्त उपायों एवं साधनों को ही सम्मिलित रूप से व्यक्तिगत सज्जा कहा जाता है। व्यक्तिगत सज्जा के माध्यम से व्यक्ति अपने शरीर अर्थात् व्यक्तित्व के प्रकट रूप को अधिक-से-अधिक आकर्षक, निखरा हुआ तथा प्रभावशाली बनाने का प्रयास करते हैं। व्यक्तिगत सज्जा का मुख्यतम साधन वेशभूषा है। उत्तम वेशभूषा द्वारा व्यक्तिगत सज्जा में विशेष योगदान प्राप्त होता है। वेशभूषा के अतिरिक्त व्यक्ति द्वारा किया जाने वाला श्रृंगार, बाल सँवारने का ढंग, बातचीत करने का ढंग, उठने-बैठने का ढंग तथा व्यक्ति के हाव-भाव व्यक्तिगत सज्जा के महत्त्वपूर्ण कारक हैं। इन सभी कारकों के प्रति जागरूक व्यक्ति निश्चित रूप से उत्तम व्यक्तिगत सज्जा को प्रदर्शित कर सकता है तथा समाज में आकर्षण का केन्द्र बन सकता है। वस्त्रों का चयन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें वस्त्र केवल तन ढकने का ही कार्य नहीं करते वरन् व्यक्ति-विशेष के बाहरी व्यक्तित्व को आकर्षक एवं प्रभावशाली बनाने में भी महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। अत: उपयुक्त वस्त्रों का चयन करते समय उनकी निम्नवर्णित विशेषताओं को दृष्टिगत रखना चाहिए (1) आकर्षक एवं आरामदायक वस्त्र-वस्त्रों का चयन करते समय देखें कि - (क) वस्त्र सही फिटिंग अथवा शारीरिक माप वाले एवं सुन्दर होने चाहिए,
- (ख) वस्त्र न तो बहुत पुराने और न ही आधुनिकतम चलन के हों,
- (ग) रंगों का चयन अवसर, व्यवसाय एवं आयु के अनुरूप हो,
- (घ) चयन का आधार किसी की नकल के अनुसार न होकर अपने कद-काठी व रुचि के अनुसार होना चाहिए।
उपर्युक्त नियमों के अनुरूप चयनित वस्त्र देखने में अच्छे लगते हैं, आरामदायक होते हैं एवं व्यक्ति-विशेष की सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि करते हैं। (2) ऋतुओं के अनुकूल वस्त्र: विभिन्न ऋतुओं में प्रायः उनके अनुकूल ही वस्त्र पहनने चाहिए; जैसे कि ग्रीष्म ऋतु में सूती एवं शरद ऋतु में ऊनी वस्त्र ही आरामदायक रहते हैं। सूती वस्त्र शरीर से निकलने वाले पसीने को सोखकर ठण्डेपन का आभास कराते हैं, जबकि ऊनी वस्त्र शीत ऋतु में शारीरिक ऊष्मा को अन्दर ही रोककर शरीर को गर्म रखते हैं। (3) अवसरानुकूल वस्त्र: घर में सामान्यतः सूती वस्त्र पहनने में हर प्रकार की सुविधा रहती है, परन्तु विशिष्ट अवसरों (विवाह, जन्मदिन व अन्य महत्त्वपूर्ण उत्सव आदि) पर मूल्यवान् व सुन्दर वस्त्र पहनना सामाजिक प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए आवश्यक है; जैसे कि विवाह अथवा जन्मदिन के अवसर पर जरीदार बनारसी साड़ियाँ, रेशमी व कृत्रिम तन्तुओं से निर्मित सुन्दर व आधुनिक फैशन के वस्त्र पहनने से एकत्रित जनसमूह के मध्य सम्मान एवं प्रशंसा प्राप्त होती है। (4) मजबूत व टिकाऊ वस्त्र: प्रायः पक्के रंगों के मजबूत व टिकाऊ वस्त्र खरीदने राहिए। उदाहरण के लिए टेरीकॉट, नायलॉन, टेरीलीन आदि वस्त्र सूती व रेशमी वस्त्रों से अधिक मजबूत व टिकाऊ होते हैं। अतः इनका यथासम्भव अधिक उपयोग आर्थिक दृष्टि से लाभदायक रहता है। (5) सरलता से धुलने वाले वस्त्र: सामान्यतः कृत्रिम तन्तुओं से निर्मित वस्त्रों को धोना सरल होता है, क्योंकि ये न तो सिकुड़ते हैं और न ही सूखने में अधिक समय लेते हैं। मोटे सूती वस्त्रों को धोने में अधिक श्रम की आवश्यकता होती है तथा इन पर लगे दाग व धब्बे भी सहज ही दूर नहीं होते। मूल्यवान ऊनी, रेशमी व जरीदार वस्त्रों की धुलाई कठिन व महँगी होने के कारण इन्हें सावधानीपूर्वक विशिष्ट अवसरों पर ही उपयोग में लाना चाहिए। (6) सिकुड़न व सिलवट मुक्त वस्त्र: वस्त्र खरीदते समय यह अवश्य ध्यान रखें कि धुलाई का उस पर क्या प्रभाव पड़ सकता है। एक उपयोगी वस्त्र न तो धोने पर सिकुड़ना चाहिए और न ही उसमें अनावश्यक सिलवटें पड़नी चाहिए। उदाहरणार्थ टेरीकॉट, टेरीलीन, रेयॉन इत्यादि वस्त्र। इन वस्त्रों पर इस्तरी (प्रेस) करने के श्रम की भी पर्याप्त बचत होती है। (7) आर्थिक क्षमता के अनुरूप वस्त्र: वस्त्र खरीदते समय पारिवारिक बजट का विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि ऐसा न करने पर प्रायः मानसिक क्लेश उत्पन्न होता है तथा पारिवारिक अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होती है। अतः सामान्यतः अपनी आर्थिक क्षमता के अनुरूप वस्त्रों को खरीदना ही विवेकपूर्ण रहता है।
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