InterviewSolution
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Write the summary of 'ममता'. |
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Answer» पाठ का सार बेटी के लिए पिता की चिंता : चूड़ामणि रोहतास दुर्ग के मंत्री हैं। दुर्ग पर शेरशाह अधिकार करना चाहता है। चूड़ामणि का मंत्रीपद उनसे छिननेवाला है। उन्हें अपनी बेटी ममता के भविष्य की चिंता है। ममता विधवा है। चूड़ामणि उसके भविष्य को सुरक्षित करना चाहते हैं। ममता को उत्कोच स्वीकार नहीं : चतुर शेरशाह चूड़ामणि को चाँदी के थालों में सोना भरकर उत्कोच (रिश्वत) देता है। चूड़ामणि चाहते हैं कि ममता इसे अपने पास रख ले, पर ममता इसे स्वीकार नहीं करती। वह इसे अनर्थ मानती है। चूड़ामणि ममता को मूर्ख मानता है। दुर्ग पर शेरशाह का अधिकार : अगले ही दिन डोलियों में महिलाओं के रूप में बैठकर शेरशाह के सैनिक रोहतास दुर्ग में प्रवेश करते हैं। चूड़ामणि द्वारा विरोध करने पर उनका वध कर दिया जाता है। चूड़ामणि की पुत्री ममता किसी तरह वहाँ से बच निकलती है। वह काशी के उत्तर में स्थित एक स्तूप के खंडहर में आश्रय लेती है। अनचाहा अतिथि : एक रात दीपक के प्रकाश में ममता गीता का पाठ कर रही थी। उसी समय एक भीषण और हताश व्यक्ति उसकी झोंपड़ी के द्वार पर आकर खड़ा हुआ। वह मुगल बादशाह हुमायूँ था। चौसा के युद्ध में शेरशाह से पराजित होकर वह जान बचाने के लिए भाग निकला था। वह बहुत प्यासा और थका हुआ था। ममता ने पानी पिलाकर उसके प्राण बचाए। आश्रय की मांग : हुमायूँ ने ममता से रातभर के लिए उसकी कुटी में आश्रय माँगा। ममता ने ‘अतिथिदेवो भव’ के आदर्श का पालन किया। हुमायूँ को अपनी झोंपड़ी में आश्रय देकर वह पास की टूटी हुई दीवारों के पीछे चली गई। ‘मिरज़ा उसका घर बनवा देना’ : अगले दिन सुबह हुमायूँ के साथी उसे खोजते हुए वहाँ आ पहुँचे। हुमायूँ झोंपड़ी से निकलकर बाहर आया। उसने ममता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने की इच्छा की, पर ममता तो दिनभर मृगदाव में छिपकर बैठी रही। हुमायूँ ने चलते समय अपने साथी मिरज़ा से कहा, “मिरज़ा, उस स्त्री को मैं कुछ दे न सका। उसका घर बनवा देना, क्योंकि मैंने विपत्ति में यहाँ विश्राम पाया है।” चिर-विश्रामगृह में जाना : सैंतालीस साल बीत गए। ममता सत्तर साल की हो चुकी थी। उसके जीवन का अंतभाग आ गया था। उस समय मिरज़ा के बनाए हए चित्र के आधार पर एक घुड़सवार ममता की झोंपड़ी के पास पहँचा। उसे बादशाह अकबर ने उस जगह का पता लगाने के लिए भेजा था, क्योंकि वहाँ एक रात उसके पिता ने विश्राम किया था। ममता ने उस घुड़सवार को अपने पास बुलाया और कहा “तुम यहाँ मकान बनवाओ या महल, मैं तो अब अपने चिरविश्रामगृह में जा रही हूँ।” . अष्टकोण मंदिर : बाद में ममता की झोंपड़ी की जगह एक अष्टकोण मंदिर बना। उसमें हुमायूँ का नाम था, जिसकी याद में वह बनवाया गया था और शहंशाह अकबर का नाम था, जिसने उसे बनवाया |
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