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1.

गुट-निरपेक्षता की प्रेरक शक्तियों का उल्लेख कीजिए।

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गुटनिरपेक्षता की प्रेरक शक्तियाँ
गुट निरपेक्षता की प्रेरक शक्तियाँ निम्नलिखित हैं-

⦁    गुट निरपेक्षता की प्रमुख प्रेरक-शक्ति राष्ट्रवाद की भावना है। राष्ट्रवाद तथा गुट-निरपेक्षता के मध्य सहयोग से स्पष्ट है कि नवोदित राष्ट्रों के नेता अपनी गुट-निरपेक्षता के समर्थन में राष्ट्रवाद का सहारा लेते रहे हैं।
⦁    गुट-निरपेक्षता की दूसरी प्रेरक-शक्ति उपनिवेशवाद का विरोध करना है। बाण्डंग सम्मेलन में इस तथ्य को स्वीकार किया गया था कि यदि किसी राष्ट्र को सैनिक-संगठन में सम्मिलित होने को बाध्य करने वाली कोई स्थिति नहीं है, तो उपनिवेश विरोधी भावना उसे गुट-निरपेक्षता की दिशा में प्रेरित करेगी।
⦁    गुट-निरपेक्षता की तीसरी प्रेरक-शक्ति नवोदित राज्यों की अर्द्ध-विकसित अवस्था है। इन राष्ट्रों की रुचि शास्त्रों की प्रतियोगिता से बचकर आर्थिक पुनर्निर्माण में अधिक है और केवल गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाकर ही ये राष्ट्र शक्तिशाली गुटों से आर्थिक सहायता प्राप्त कर सकते हैं। गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों का तर्क है कि उन्हें जो भी सहायता विकसित राष्ट्रों से प्राप्त हो रही है वह उनका अधिकार है, न कि उन पर कोई अहसान।
⦁    गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाने का एक कारण जातीय तथा सांस्कृतिक पहलू भी है। इस नीति के समर्थक मुख्यत: अफ्रीकी तथा एशियाई देश हैं, जिनका यूरोपीय राष्ट्रों द्वारा आर्थिक शोषण किया गया था और इन पर राजनीतिक प्रभुत्व रहा। ये गुट-निरपेक्ष राष्ट्र अश्वेत हैं और जातीय तथा सांस्कृतिक दृष्टि से उनमें बहुत कुछ समानता है। वे समान रूप से किसी बड़ी शक्ति के अधीन नहीं रहना चाहते हैं।

2.

गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में भारत के योगदान का परीक्षण कीजिए।

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गुट-निरपेक्षता में भारत का योगदान
गुट-निरपेक्षता के विकास में भारत का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। भारत की विदेश नीति का प्रमुख सिद्धान्त ही गुट-निरपेक्षता है। सर्वप्रथम भारत ने ही एशिया तथा अफ्रीका के नवोदित स्वतन्त्र राष्ट्रों को परस्पर एकता और सहयोग के सूत्र में बाँधने का प्रयास किया था। ‘बांडुंग सम्मेलन’ में भारत के प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू ने बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस प्रकार भारत गुट-निरपेक्षता का अग्रणी रहा है। पं० जवाहरलाल नेहरू का कथन था कि “चाहे कुछ भी हो जाए, हम किसी भी देश के साथ सैनिक सन्धि नहीं करेंगे। जब हम गुट-निरपेक्षता का विचार छोड़ते हैं तो हम अपना संसार छोड़कर हटने लगते हैं। किसी देश से बँधना-आत्म-सम्मान का खोना तथा अपनी बहुमूल्य नीति का अनादर करना है।’ पं० नेहरू के बाद श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने गुट-निरपेक्षता के विकास को अग्रसरित किया। प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने सातवें सम्मेलन (1983) में नई दिल्ली में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की अध्यक्षता ग्रहण की थी। श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने अपने एक भाषण में कहा था कि “गुट-निरपेक्षता अपने आप में एक नीति है। यह केवल एक लक्ष्य ही नहीं, इसके पीछे उद्देश्य यह है कि निर्णयकारी स्वतन्त्रता और राष्ट्र की सच्ची भक्ति तथा बुनियादी हितों की रक्षा की जाए।

प्रधानमन्त्री श्री राजीव गाँधी भी गुट-निरपेक्ष आन्दोलन को प्रभावशाली बनाने के लिए कृतसंकल्प थे। 15 अगस्त, 1986 को श्री राजीव गाँधी ने कहा था कि “भारत की गुट-निरपेक्षता की नीति के कारण ही भारत का विश्व में आदर है। भारत बोलता है तो वह आवाज सौ करोड़ लोगों की होती है। गुट-निरपेक्षता के मार्ग पर चलकर भारत आज बिना किसी दबाव के बोलता है। उसके साथ संसार के दो-तिहाई गुट-निरपेक्ष देशों की आवाज होती है।”

नवे शिखर सम्मेलन (सितम्बर 1989 ई०) में प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी ने कहा था कि गुट निरपेक्ष आन्दोलन तभी गतिशील रह सकता है, जब यह उन्हीं सिद्धान्तों पर चले, जिन पर चलने का वायदा यहाँ 1961 ई० में प्रथम सम्मेलन में सदस्यों ने किया था। ग्यारहवें शिखर सम्मेलन में भारत ने दो बातों के प्रसंग में महत्त्वपूर्ण सफलता प्राप्त की। भारत ने आणविक शस्त्रों पर आणविक शाक्तियों के एकाधिकार का विरोध किया। बारहवें सम्मेलन में भारत और पाकिस्तान की आणविक विस्फोट के लिए आलोचना की गयी। सम्मेलन में सम्मेलन के अध्यक्ष नेल्सन मण्डेला द्वारा कश्मीर समस्या का उल्लेख किये जाने पर भारत द्वारा कड़ी आपत्ति की गयी। भारत की आपत्ति को दृष्टि में रखते हुए नेल्सन मण्डेला ने अपना वक्तव्य वापस ले लिया। तेरहवें शिखर सम्मेलन में प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता हेतु भी पहल की। प्रधानमन्त्री वी०पी० सिंह भी गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के प्रबल समर्थक रहे हैं और तत्पश्चात् प्रधानमन्त्री चन्द्रशेखर भी। इस आन्दोलन को सफल बनाने के लिए प्रयत्नशील थे। प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव ने भी इसी नीति को जारी रखा। इसके बाद प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार देश की सुरक्षा और अखण्डता के मुद्दे पर समयानुसार विदेश नीति निर्धारित करने के लिए दृढ़ संकल्प थी। वर्तमान में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी भी इसी नीति को जारी रखे हुए हैं।

3.

गुट-निरपेक्षता तथा तटस्थता के मध्य अन्तर बताइए।

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कुछ विद्वान गुट-निरपेक्षता को तटस्थता की स्थिति मानते हैं, परन्तु यह तटस्थता से बिल्कुल पृथक् नीति है। तटस्थता तथा गुट-निरपेक्षता की यदि गम्भीरता से तुलना की जाए तो निम्नलिखित अन्तर सामने आते हैं-

⦁    तटस्थता दो आक्रामकों तथा उनके मध्य संघर्ष के प्रति उदासीनता के दृष्टिकोण का दावा करता है। गुट-निरपेक्षता ऐसा कुछ नहीं करती है। इसके विपरीत, यह प्रत्येक समस्या का उसके गुण के आधार पर न्याय करती है तथा अपने स्वतन्त्र मत की घोषणा करती है।
⦁    तटस्थता से आशय एकाकीपन की अवस्था से है, जबकि गुट-निरपेक्षता विकासशील देशों की जनता को अपना भविष्य निर्मित करने में सहायता देती है। न तो वह स्विट्जरलैण्ड या स्वीडन की स्थायी तटस्थता है और न अमेरिका का सकारात्मक एकाकीपन है।
⦁    गुट-निरपेक्षता तटस्थता नहीं है, क्योंकि वह अपने दृष्टिकोणों तथा विचारों में सकारात्मक है। गुट-निरपेक्षता से आशय अन्तर्ग्रस्त होने से मुक्ति नहीं है, बल्कि यह अन्तर्ग्रस्त होने की अपरिहार्यता से उत्पन्न होती है।
⦁    स्विस सरकार के लिए विपरीत गुट-निरपेक्ष राष्ट्र बिना गुट का निर्माण किए हुए विश्व की समस्याओं पर सहयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, कांगो, स्वेज, क्यूबा, खाड़ी युद्ध संकट आदि।
⦁    तटस्थता में जहाँ नकारात्मक प्रवृत्ति दृष्टिगोचर होती है और यह केवल एक वास्तविक युद्ध की अवधि तक ही सीमित है, वहाँ गुट-निरपेक्षता का विचार सक्रिय, सकारात्मक तथा निश्चित है।

तटस्थता का परिवर्तनशील सिद्धान्त गुट-निरपेक्षता के विचार को शीतयुद्ध अथवा परमाणु सन्धि की अवधि में ही अपने अन्तर्गत समाहित किए हुए है। संक्षेप में, गुट-निरपेक्षता एक सकारात्मक तटस्थता ही है।

4.

गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

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⦁    शक्तिशाली गुटों से पृथक् रहना तथा सैन्य गुटों में सम्मिलित न होना तथा
⦁    शान्ति की नीति का पालन करना।

5.

गुट-निरपेक्षता की त्रिमूर्ति में कौन-कौन लोग थे?यागुट-निरपेक्ष आन्दोलन के दो संस्थापक नेताओं के नाम बताइए। यागुट-निरपेक्ष आन्दोलन के किसी एक संस्थापक का नाम लिखिए। 

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भारत के प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू, यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति मार्शल टोटो तथा मिस्र के राष्ट्रपति कर्नल नासिर।

6.

प्रथम गुट-निरपेक्ष शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था- (क) काहिरा, 1964 में(ख) हवाना, 1979 में(ग) बेलग्रेड, 1961 में(घ) लुसाका, 1970 में

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सही विकल्प है  (ग) बेलग्रेड, 1961 में