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1.

दिए गए पद्यांशों को फ्ढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिएबीती विभावरी जाग री ।अम्बर-पनघट में डुबो रही-तारा-घट ऊषा-नागरी ।खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा,किसलय को अंचल डोल रहा,लो यह लतिका भी भर लायी—मधु-मुकुल नवल रस-गागरी ।अधरों में राग अमन्द पिये,अलकों में मलयज बन्द किये–तू अब तक सोयी है आली !आँखों में भरे विहाग री।।(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(iii) प्रस्तुत पंक्तियों में किस समय का सुन्दर वर्णन किया गया है?(iv) कौन आकाशरूपी पनघट पर तारारूपी घड़े को डुबो रहा है? ।(v) ‘खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा’ पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?

Answer»

(i) प्रस्तुत गीत महाकवि श्री जयशंकर प्रसाद के ‘लहर’ नामक कविता-संग्रह से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘गीत’ शीर्षक रचना से उद्धत है।
अथवा
शीर्षक का नाम-
 गीत।
कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-इस गीत में मानवीकरण द्वारा प्रात:काल की शोभा का सुन्दर चित्रण किया गया है। एक सखी दूसरी सखी से कहती है कि हे सखी! रात बीत चुकी है। अब तू उठ। आकाशरूपी पनघट पर ऊषारूपी चतुर नारी तारारूपी घड़ा डुबो रही है; अर्थात् तारे एक-एक करके छिपते चले जा रहे हैं।
(iii) प्रस्तुत पंक्तियों में प्रात:काल की शोभा का सुन्दर वर्णन किया गया है।
(iv) उषारूपी चतुर नारी आकाशरूपी पनघट पर तारारूपी घड़े को डुबो रही है।
(v) अलंकार-अनुप्रास, रूपक।

2.

दिए गए पद्यांशों को फ्ढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिएसमर्पण लो सेवा का सारसजल संसृति का यह पतवार;आज से यह जीवन उत्सर्गइसी पद तल में विगत विकार।(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(iii) श्रद्धा किसकी जीवनसंगिनी बनकर सेवा करना चाहती हैं?(iv) किसका समर्पण मनु की जीवन-नौका के लिए पतवार के समान सिद्ध होगा?(v) ‘सजल संसृति का यह पतवार।’ पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?

Answer»

(i) प्रस्तुत पद्यांश श्री जयशंकर प्रसाद के ‘कामायनी’ महाकाव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘श्रद्धा-मनु’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम-
 श्रद्धा-मनु।
कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-श्रद्धा मानवता को सफल और समृद्ध बनाने के लिए मनु के समक्ष आत्मसमर्पण करती है और कहानी है कि यह मेरा आत्मसमर्पण संसार-सागर में निरुद्देश्य भटकने वाली तुम्हारी जीवन-नौका के लिए पतवार के समान सिद्ध होगा अर्थात् तुम्हारे जीवन को निश्चित दिशा देगा। आज से तुम्हारे चरणों में बिना किसी स्वार्थभावना के मैं अपने जीवन को न्योछावर करती हूँ।
(iii) श्रद्धा मनु की जीवनसंगिनी बनकर उनकी सेवा करना चाहती हैं।
(iv) श्रद्धा का समर्पण मनु की जीवन-नौका के लिए पतवार के समान सिद्ध होगा।
(v) अनुप्रास अलंकार।

3.

दिए गए पद्यांशों को फ्ढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिएडरो मत अरे अमृत सन्तानअग्रसर है। मंगलमय वृद्धिपूर्ण आकर्षण जीवन-केन्द्रखिंची आवेगी सकल समृद्धि!(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(iii) मनु ने संसार और जीवन को क्या मान लिया था?(iv) श्रद्धा मनु को किसकी संतान बताकर उत्साहित करती हैं?(v) कब सकल समृद्धि पास खिंची चली आएगी?

Answer»

(i) प्रस्तुत पद्यांश श्री जयशंकर प्रसाद के ‘कामायनी’ महाकाव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘श्रद्धा-मनु’ शीर्षक कविता से उद्धत है।
अथवा
शीर्षक का नाम-
 श्रद्धा-मनु।
कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या–प्रसाद जी के ‘कामायनी’ महाकाव्य की नायिका श्रद्धा निवृत्ति पथ पर अग्रसर मनु को प्रवृत्ति पथ पर लाने का प्रयास करती है। मनु ने संसार को निराशा से भरा और जीवन को उपायहीन मान लिया था। श्रद्धा उनमें जीवन के प्रति उत्साह भरती हुई कहती है कि तुम कभी न मरने वाले देवताओं की सन्तान हो; अत: भयभीत क्यों होते हो? तुम्हारे सामने मंगलों की भरपूर समृद्धि है। तुम उसे पाने का साहस तो करके देखो।
(iii) मनु ने संसार को निराशा से भरा और जीवन को उपायहीन मान लिया था।
(iv) श्रद्धा मनु को कभी न मरने वाले देवताओं की संतान बताकर उत्साहित करती हैं।
(v) जब भय समाप्त हो जाएगा और मन के अन्दर जीने का उत्साह पैदा हो जाएगा तब सेब सकल समृद्धि पास खिंची चली आएगी।

4.

दिए गए पद्यांशों को फ्ढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिएशक्ति के विद्युत्कण जो व्यस्तविकल बिखरे हैं, हो निरुपाय;समन्वय उसका करे समस्त ।विजयिनी मानवता हो जाय।(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(iii) इन पंक्तियों में श्रद्धा ने मनु को कौन-सी बात बताई है?(iv) समस्त सृष्टि की रचना किनसे हुई है?(v) श्रद्धा मनु को किस प्रकार मानवता का साम्राज्य स्थापित करने के लिए प्रेरित करती हैं?

Answer»

(i) प्रस्तुत पद्यांश श्री जयशंकर प्रसाद के ‘कामायनी’ महाकाव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘श्रद्धा-मनु’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम-
 श्रद्धा-मनु।।
कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-श्रद्धा मनु से कहती है कि जीवन के प्रति हताशा और निराशा को त्यागकर आपको लोक-मंगल के कार्यों में लगना चाहिए। इसके लिए सबसे महत्त्वपूर्ण और मुख्य कार्य संसार की विभिन्न शक्तियों में पारस्परिक समन्वय स्थापित करना है। विश्व की विद्युत्-कणों के समान जो भी करोड़ों-करोड़ शक्तियाँ हैं, वे सब बिखरी पड़ी हैं, जिस कारण जीवन में उनका कोई भी उपयोग नहीं हो पा रहा है। उन सब शक्तियों को एकत्रित कीजिए और उनमें आया समन्वय स्थापित कीजिए, जिससे उन शक्तियों का अधिक-से-अधिक उपयोग हो सके। इसी में मानवता का कल्याण निहित है। यदि आप यह समन्वय स्थापित करने में सफल हो गए तो सर्वत्र मानवता का साम्राज्य स्थापित हो जाएगा।
(iii) इन पंक्तियों में श्रद्धा ने मनु को मानवता की विजय का उपाय बताया है।
(iv) समस्त सृष्टि की रचना शक्तिशाली विद्युत्-कणों से हुई है।
(v) श्रद्धा ने मनु को बिखरी पड़ी समस्त शक्तियों को एकत्रित करके उनके उपयोग द्वारा मानवता का साम्राज्य स्थापित करने के लिए प्रेरित किया है।

5.

प्रसाद के प्रकृति-चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।

Answer»

प्रसाद ने प्रकृति के सुन्दर रूपों का चित्रण किया है।’झरना’ में प्रेम और सौन्दर्य के साथ प्रकृति के मनोरम रूप का भी चित्रण किया है। इसमें कवि के छायावादी रूप के स्पष्ट दर्शन होते हैं।

6.

‘मुखर हो गया सूना मण्डप’ में कौन-सा अलंकार है?

Answer»

‘मुखर हो गया सूना मण्डप’ में मानवीकरण अलंकार है।

7.

‘पुनर्मिलन’ काव्यांश का भाव लिखिए।

Answer»

रात्रि के समय श्रद्धा अपने पुत्र के साथ यह कहती हुई जा रही थी कि कोई मुझे यह बता दे कि मेरा प्रिय कहाँ है? वह मुझसे रूठकर चला आया था और मैं उसे मना नहीं पायी थी।’ इड़ा’ इन शब्दों को सुनकर उठी और उसने सड़क पर शिथिल शरीर और अस्त-व्यस्त वस्त्रों को पहने हुए श्रद्धा को देखा। उसका पुत्र कुमार उसकी उँगली पकड़े हुए था।

इड़ा उसकी ऐसी दशा देखकर बोली कि तुम्हें किसने बिसराया है? तुम बैठो और मुझे अपनी कथा सुनाओ। श्रद्धा, इड़ा के साथ जलती हुई अग्नि के पास पहुँची। उसने वहाँ मनु को देखा। वह वहाँ पहुँच गयी और बोली मेरा स्वप्न सच्चा निकला है। अरे प्रिय ! तुम्हारा यह क्या हाल है? वह मनु के पास बैठकर उसे सहलाने लगी, जिससे मनु की मूच्र्छा दूर हो गयी और उन्होंने अपनी आँखें खोलीं। जैसे ही दोनों की आँखें चार हुईं, उनकी आँखों में आँसू आ गये। इस समय कुमार राजमहल की ओर देख रहा था। श्रद्धा ने उसे पुकार कर कहा कि तेरे पिता यहाँ हैं । तू भी यहाँ आ जा। वह पितापिता कहते हुए वहाँ आया और बोला कि हे माँ ये प्यासे होंगे। तू इनको पानी पिला। इस प्रकार वहाँ सबका मिलन हो। गया।

8.

श्रद्धा कौन थी?

Answer»

श्रद्धा मनु की पत्नी थी।

9.

विरहिणी के रूप में कवि ने कामायनी का चित्रण किस प्रकार किया है?

Answer»

विरहिणी कामायनी बहुत कमजोर हो गयी है। उसने अपने वस्त्र भी ठीक प्रकार से नहीं पहन रखे हैं। उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है, जैसे किसी ने कली का मकरन्द लूट लिया हो और वह मुरझा गयी हो।

10.

‘पुनर्मिलन’ काव्यांश का सारांश एवं मूलभाव अपने शब्दों में लिखिए।

Answer»

‘पुनर्मिलन’ कविता जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित ‘कामायनी’ नामक महाकाव्य का एक अंश है। जल-प्रलय से बचे हुए मनु और श्रद्धा साथ-साथ रहने लगे। श्रद्धा अपनी भावी सन्तान के लिए वस्त्र बुनने लगी। मनु को यह अच्छा न लगा और वे श्रद्धा को छोड़कर भाग गये। एक रात स्वप्न में श्रद्धा ने मनु को घायल और मूर्च्छित अवस्था में देखा। श्रद्धा उनकी खोज में अपने पुत्र को साथ लेकर चल पड़ी। इस कविता का सारांश निम्न पंक्तियों में प्रस्तुत है –

सारांश- रात्रि के समय श्रद्धा अपने पुत्र के साथ यह कहती हुई जा रही थी कि कोई मुझे यह बता दे कि मेरा प्रिय कहाँ है? वह मुझसे रूठकर चला आया था और मैं उसे मना नहीं पायी थी। ‘इड़ा’ इन शब्दों को सुनकर उठी और उसने सड़क पर शिथिल शरीर और अस्त-व्यस्त वस्त्रों को पहने हुए श्रद्धा को देखा। उसका पुत्र कुमार उसकी अँगुली पकड़े हुए था। |

इड़ा उसकी ऐसी दशा देखकर बोली कि तुम्हें किसने बिसराया है? तुम बैठो और मुझे अपनी कथा सुनाओ। श्रद्धा, इड़ा के साथ जलती हुई अग्नि के पास पहुँची। उसने वहाँ मनु को देखा। वह वहाँ पहुँच गयी और बोली, मेरा स्वप्न सच्चा निकला है। अरे प्रिय ! तुम्हारा यह क्या हाल है? वह मनु के पास बैठकर उसे सहलाने लगी, जिससे मनु की मूच्र्छा दूर हो गयी और उन्होंने अपनी आँखें खोलीं । जैसे ही दोनों की आँखें चार हुईं, उनकी आँखों में आँसू आ गये। इस समय कुमार राजमहल की ओर देख रहा था। श्रद्धा ने उसे पुकारकर कहा कि तेरे पिता यहाँ हैं। तू भी यहाँ आ जा। वह पिता-पिता कहते हुए वहाँ आया और बोला कि हे माँ ये प्यासे होंगे। तू इनको पानी पिला। इस प्रकार वहाँ सबका मिलन हो गया।

11.

कामायनी तथा उसके पुत्र के मनु से पुनर्मिलन को संक्षेप में वर्णन कीजिए।

Answer»

श्रद्धा अपने पुत्र के साथ मनु को खोजती चली जा रही है। वह लोगों से उनका पता पूछ रही है और पश्चात्ताप कर रही है कि यदि मैं उन्हें मना लेती तो सम्भवतः वे न जाते । इड़ा उसकी आवाज सुनकर चौंक जाती है। वह देखती है कि पथ पर अस्त-व्यस्त वस्त्रों में एक युवती चली आ रही है। उसके साथ एक किशोर भी है। इड़ा ने उसके रोने का कारण पूछा। तभी श्रद्धा को घायल अवस्था में लेटे हुए अपने पति मनु दिखायी पड़े। उन्हें देखते ही श्रद्धा की आँखों में आँसू बहने लगे। जब श्रद्धा ने अपने हाथों से मनु को सहलाया तो उनमें चेतना आयी। श्रद्धा को अपने पास देखकर उनकी आँखों से आँसू बहने लगे ।

उनका पुत्र यज्ञ भूमि के ऊँचे मन्दिर, यज्ञ मण्डप और यज्ञ की वेदी को देख रहा था, तभी श्रद्धा ने कहा-‘देख पुत्र! तेरे पिता यहाँ हैं। यह सुन कर वह दौड़कर पास आ गया तथा अपनी माँ से अपने पिता को जल पिलाने के लिए कहा। उसी समय सारा मण्डप नवनिर्मित परिवार की प्रसन्नता से भर उठा।

12.

‘पुनर्मिलन’ कविता का केन्द्रीय भाव लिखिए।

Answer»

इस कविता में श्रद्धा, मनु और उनके पुत्र कुमार के मिलन का वर्णन है। एक बार मनु किसी बात पर खिन्न होकर घर से बाहर चले जाते हैं। श्रद्धा रात्रि में उनकी तलाश में पुत्र का हाथ पकड़े हुए बाहर निकल जाती है और यह कहती जा रही थी कि ”मेरा प्रिय कहाँ है वह मुझसे नाराज होकर चला गया है।” इड़ा श्रद्धा की आवाज सुनकर बाहर निकलती है और उसका हाल-चाल जानने के लिए उसे जलती हुई अग्नि के पास ले जाती है। वहाँ मनु पड़े हुए थे। वहाँ जाकर श्रद्धा मनु का सिर सहलाने लगी। मूच्र्छा दूर होने पर उन्होंने आँखें खोलीं। दोनों की आँखें चार होते ही मनु की आँखों में आँसू आ गये। श्रद्धा अपने पुत्र को पुकारती है कि तुम्हारे पिता यहाँ हैं। कुमार आता है और अपने पिता को देखता है । इस तरह तीनों को पुनर्मिलन होता है।

13.

कवि किस आशा से अनुप्रेरित होकर क्यारी और कुंज में परिश्रम कर रहा है?

Answer»

कवि मल्लिका पुष्प खिलने की आशा से क्यारी और कुंज में परिश्रम कर रहा है।

14.

जयशंकर प्रसाद की भाषा-शैली बताइए।

Answer»

भाषा-शैली- प्रसाद जी की भाषा पूर्णत: साहित्यिक, परिमार्जित एवं परिष्कृत है। भाषा प्रवाहयुक्त होते हुए भी संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली है, जिसमें सर्वत्र ओज एवं माधुर्य गुण विद्यमान है। अपने सूक्ष्म भावों को व्यक्त करने के लिए प्रसाद जी ने लक्षणा एवं व्यंजनों का आश्रय लिया है। प्रसाद जी की शैली काव्यात्मक चमत्कारों से परिपूर्ण है। संगीतात्मकता तथा लय पर आधारित इनकी शैली अत्यन्त सरस एवं मधुर है।

15.

जयशंकर प्रसाद की जीवनी एवं रचनाओं पर प्रकाश डालिए।अथवाजयशंकर प्रसाद की साहित्यिक सेवाओं एवं भाषा-शैली का उल्लेख कीजिए।

Answer»

जयशंकर प्रसाद
( स्मरणीय तथ्य )

जन्म- सन् 1890 ई०, काशी। मृत्यु- सन् 1937 ई० । पिताबाबू देवीप्रसाद ।
रचनाएँ‘झरना’, ‘लहर’, ‘आँसू’, ‘कामायनी’, ‘प्रेम पथिक’ आदि।
काव्यगत विशेषताएँ
वर्य-विषयछायावाद, रहस्यवाद, ईश्वरोन्मुख लौकिक प्रेम, प्रकृति-प्रेम तथा भारतीय संस्कृति से प्रेम। रस-प्राय: सभी।
भाषाआरम्भ में ब्रजभाषा, बाद में खड़ीबोली, संस्कृत शब्दों की प्रचुरता, मुहावरों का अभाव ।
शैली1. कथात्मक, 2, दुरूह तथा गहन और 3. भावात्मक।
अलंकार- सभी प्राचीन, नवीन (मानवीकरण आदि) अलंकार।
छन्दहिन्दी के प्राचीन छन्द।

जीवन-परिचयबाबू जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में सन् 1890 ई० में हुआ था। इनके पिता बाबू देवीप्रसाद ‘सुँघनी साहू’ के नाम से प्रसिद्ध एक धनी व्यवसायी थे। बचपन में ही पिता की मृत्यु के बाद इनकी शिक्षा का प्रवन्ध घर पर ही हुआ। यहाँ इन्होंने हिन्दी, संस्कृत, उर्दू, फारसी तथा अंग्रेजी का गम्भीर अध्ययन किया और अपने व्यापार की देखभाल के साथ हिन्दी की सेवा में भी लगे रहे। प्रसाद जी स्वभाव से बड़े उदार, मृदुभाषी, स्पष्ट वक्ता, साहसी और हँसमुख प्रकृति के व्यक्ति थे। इनकी मनोवृत्ति धार्मिक थी। ये भारतीय संस्कृति के सच्चे उपासक और शिव के परम भक्त थे। इनकी मृत्यु सन् 1937 ई० में क्षय रोग के कारण हो गयी।

रचनाएँप्रसाद जी ने साहित्य के विविध क्षेत्रों में अपना स्वतन्त्र मार्ग बनाया। इन्होंने काव्य, नाटक, उपन्यास और निबन्ध सभी विषयों को स्पर्श किया है।

काव्यचित्राधार, कानन कुसुम, करुणालय, प्रेम पथिक, झरना, आँसू, लहर और कामायनी ।

काव्यगत विशेषताएँ

() भाव-पक्ष-आधुनिक काल के छायावादी ऐवं रहस्यवादी कवियों में प्रसाद जी का सर्वोच्च स्थान है।‘आँसू’ इनका प्रथमं छायावादी कार्ये हैं कॉमर्यंन इन ऑन्तैम और र्सर्वं श्रेष्ठ रचना है। पौराणिक कथा पर आधारित इस काव्य में इन्होंने अपनी काव्य-प्रतिभा को चरम सीमा तक पैहुँचा दिया है। ये भारतीय संस्कृति के सच्चे पुजारी थे, जिसका प्रभाव इनकी रचनाओं पर पड़ा है।प्रसादजी मूल रूप से कल्पना और भावना के कवि थे। भावना के क्षेत्र में इन्होंने प्रेम और सौन्दर्य को स्थान दिया है। इनकी यह प्रेम-भावना मुख्यत: तीन रूपों में दिखायी देती है—

  1. ईश्वरोन्मुख लौकिक प्रेम,
  2. भारतीय संस्कृति से प्रेम,
  3. प्रकृति प्रेम।

() कला-पक्ष-भाषाप्रसादजी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ीबोली है। वह सरल और क्लिष्ट दो रूपों में दिखायी देती है। उनकी प्रारम्भिक रचनाओं में व्यावहारिक भाषा का प्रयोग हुआ है, किन्तु पद की रचनाएँ संस्कृत प्रधान हो गयो हैं । अत: कहीं-कहीं क्लिष्टता आ गयी है। इनका वाक्य-विन्यास और शब्द-चयन अति सुन्दर और अद्वितीय है। इनकी रचनाओं में एक-एक वाक्य नेगीने की भाँति जड़ा होता है। इनकी भाषा लाक्षणिकता और चित्रात्मकता अधिक है, किन्तु मुहावरों का सर्वथा अभाव है। संच तो यह है कि आधुनिक हिन्दी साहित्य में प्रसाद जैसी सशक्त भाषा किसी साहित्यकार की नहीं है।

  1. शैली– प्रसाद जी की शैली ठोस, स्पष्ट, परिष्कृत और स्वाभाविक है। छोटे-छोटे वाक्यों में गम्भीर भाव भर देना और उसमें संगीत का विधान कर देना इन शैली की विशेषता है। इनकी रचनाओं में इनका व्यक्तित्व झाँकता रहता है। इन्होंने अपने दार्शनिक विचारों को गम्भीर शैलीं मैंव्यक्त किया है तथा लज्जा, चिन्ता औदिं मानसिक भवों के चित्रण में इन्होंने भावात्मक शैली को अपनाया है।
  2. रसरस की दृष्टि से प्रसाद जी मुख्यतः श्रृंगार रस के कवि हैं, किन्तु कॅरुणवीर, वात्सल्य आदि के भी सुन्दर उदाहरण इनकी रचनाओं में मिलते हैं।
  3. अलंकारप्रसाद जी ने अलंकारों का सुन्दर स्वाभाविकै प्रयोग किया है। उनमें रूपक, उत्प्रेक्षा, उपमा, श्लेष, विरोधाभास आदि मुख्य हैं। एक उदाहरण देखिए-
  4. रूपक-

काली आँखों में कितनी, यौवन के मद की लाली।
मानसिक मदिरा से भर दी, कितने नीलम की प्याली।।

  • छन्द- आधुनिक छन्दों के अतिरिक्त प्रसादजी ने कवित्त, रोली, रूपमाला आदि छन्दों को अपनाया है। संस्कृत छन्दों के साथ इन्होंने सुन्दर गीत भी लिखे हैं। वस्तुत: प्रसादजी का कवि-रूप बड़ा ओजस्वी था। ये छायावादी युग के प्रथम प्रवर्तक थे। आधुनिक युग के कवियों में उनका स्थान सर्वोच्च है। इनकी रचनाओं के कारण हिन्दी साहित्य गौरवान्वित हुआ है।
16.

जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य का नाम बताइए।

Answer»

जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य का नाम कामायनी है।

17.

जयशंकर प्रसाद किस काल के कवि हैं?

Answer»

जयशंकर प्रसाद आधुनिक काल के कवि हैं।

18.

जयशंकर प्रसाद को किस युग का प्रवर्तक माना जाता है?

Answer»

छायावादी युग का।

19.

जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित दो काव्य ग्रन्थों के नाम लिखिए।

Answer»

कामायनी और लहर।

20.

निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए(अ) मुखर हो गया सूना मण्डप।(ब) आत्मीयता घुली उस घर में छोटा सा परिवार बना।

Answer»

() काव्य-सौन्दर्य-

  1. यहाँ बालकों की प्रकृति एवं उनकी उत्सुकता सम्बन्धी भावना का अत्यन्त स्वाभाविक चित्रण किया गया है।
  2. मनु से श्रद्धा और पुत्र के मिलन में स्वाभाविकता का समावेश हुआ है।
  3. भाषाऐतिहासिक खड़ीबोली ।
  4. रसशृंगार तथा वात्सल्य
  5. गुणमाधुर्य।
  6. अलंकारअनुप्रास।।

() काव्य-सौन्दर्य

  1. कवि ने पति, पत्नी तथा पुत्र का मिलन दिखलाकर भावात्मकता, आत्मीयता तथा स्वाभाविकता की सृष्टि की है।
  2. भाषासरस एवं प्रवाहपूर्ण खड़ीबोली।
  3. अलंकारअनुप्रास एवं उपमा।
  4. गुणप्रसाद।
  5. शैलीसंवादात्मक।
  6. रसश्रृंगार, वात्सल्य ।
  7. गुण- माधुर्य ।