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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.

1.

मीरा ने संसार सागर को पार करने का क्या उपाय बताया है?

Answer»

मीरा संसार सागर को पार करने के विषय में बताती हैं कि राम नाम का बेड़ा बाँधकर संसार सागर से पार हुआ जा सकता है। राम नाम का बेड़ा बाँधने से मीरा का अभिप्राय भगवान् की भक्ति करने से है।

2.

मीरा की किन्हीं दो रचनाओं के नाम बताइए।

Answer»

नरसी जी का मायरा और राग गोविन्द ।

3.

मीरा ने किस भाषा में रचना की है?

Answer»

मीरा ने ब्रजभाषा में अपने गीतों की रचना की है।

4.

मीरा ने संसार की तुलना किस खेल से की है और क्यों?

Answer»

मीरा ने संसार की तुलना चौपड़ के खेल से की है क्योंकि चौपड़ का खेल कुछ देर चलता है फिर समाप्त हो जाता है। इसी प्रकार संसार की वस्तुएँ कुछ समय रहती हैं और फिर नष्ट हो जाती हैं।

5.

मीरा को कौन-सा धन प्राप्त हो गया है? उस धन की क्या विशेषता है?

Answer»

मीरा को रामरतन रूपी धन प्राप्त हो गया है । इस धन की विशेषता है कि इसको खर्च नहीं किया जा सकता है और न चुराया जा सकता है अपितु प्रयोग करने से दिन-प्रतिदिन बढ़ता रहता है ।

6.

कृष्ण के क्रय के सम्बन्ध में संसार के लोगों की क्या धारणा है?

Answer»

मीरा के कृष्ण को क्रय के सम्बन्ध में संसार के लोगों की धारणा है कि मीरा ने गोविन्द को छानबीन कर खरीद लिया है। कोई कहता है कि चुपके से खरीद लिया है, कोई कहता है कि वह काला है, कोई कहता है कि वह गोरा है।

7.

मीरा के काव्य को मुख्य स्वर क्या है?

Answer»

मीरा के काव्य का मुख्य स्वर कृष्ण-भक्ति है।

8.

निम्नलिखित पंक्ति का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिएगसी मीरा लाल गिरधर, तारो अब मोई।

Answer»

काव्य सौन्दर्य :

(अ) इस पंक्ति में मीरा अपने को श्रीकृष्ण की दासी बताया है।
(ब) भाषा-ब्रज।
(स) रस-भक्ति एवं शांत।
(द) छंद-गेय।
(य) शैली-मुक्तक।

9.

निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार का नाम बताइए(अ) बसो मेरे नैनन में नन्दलाल।(ब) काल ब्याल हूँ बाँची।(स) मोर मुकुट मकराकृत कुण्डल।

Answer»

(अ) इस पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है।
(ब) काल ब्याल हूँ बाँची में रूपक अलंकार है।
(स) मोर मुकुट मकराकृत कुण्डल में वृत्त्यनुप्रास अलंकार है।

10.

मीरा ने संसार की तुलना किससे की है और क्यों?

Answer»

मीरा ने संसार की तुलना चौसर खेल से की है। जिस तरह चौसर खेल क्षण भर में समाप्त हो जाता है, उसी प्रकार यह संसार भी क्षणभंगुर है। क्षण भर में नष्ट होनेवाला है।

11.

मीरा किसके रंग में रँगी हैं?

Answer»

मीरा भगवान् श्रीकृष्ण के रंग में रँगी हैं।

12.

मीरा के काव्य में व्यक्त भक्ति एवं रहस्यवाद का परिचय दीजिए।

Answer»

1.भक्तिमीरा की भक्ति प्रेम प्रधान है। उनका कृष्ण राममय और राम कृष्णमय हैं, अर्थात् दोनों ही एक हैं। राम भी कृष्ण ही हैं। भावों की तीव्रता में कोमलता और मधुरता इनकी भक्ति की विशेषता है। वे गोपियों के समान कृष्ण के प्रति माधुर्य भक्ति से प्रेरित हैं। वे कृष्ण के रंग में रंग कर कहती हैं

‘‘मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई॥

2.रहस्यवाद- मीरा के काव्य में जिस रहस्यवाद के दर्शन होते हैं, उसमें दाम्पत्य प्रेम की प्रधानता है। वे कहती हैं

जिनका पिया परदेश बसत है, लिख-लिख भेजत पाती।
मेरा पिया हृदय बसत है, ना कहुं आती जाती।”

13.

मीरा ने क्या मोल लिया है?

Answer»

मीराबाई ने गोविन्द श्रीकृष्ण को मोल लिया है।

14.

मीरा गिरिधर के घर जाने की बात क्यों कहती हैं?

Answer»

मीरा श्रीकृष्ण को अपना आराध्य ही नहीं, पति भी मानती हैं। वे स्वयं को श्रीकृष्ण के साथ दाम्पत्य-सूत्र में बँधा हुआ अनुभव करती हैं और अपने पति (श्रीकृष्ण) का सामीप्य पाने के लिए उनके घर जाना चाहती हैं।

15.

धर्म के अन्तर्गत केवल बाहरी कर्मकाण्ड करने से क्या होता है?

Answer»

बाहरी कर्मकाण्डों से व्यक्ति उन्हीं में फँसा रहता है और भगवान् के सच्चे स्वरूप को नहीं जान पाता है। इस प्रकार उसे मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती। वह बाह्याडम्बरों में फँसा ही जन्म-मरण के चक्र से कभी नहीं छूट पाता है, अत; धर्म में केवल बाहरी कर्मकाण्ड उचित नहीं है।

16.

मीरा किस भक्ति-शाखा की कवयित्री हैं?

Answer»

मीरा सगुण भक्ति शाखा की कवयित्री हैं।

17.

मीरा भगवान् के किस रूप की उपासिका थीं?

Answer»

मीरा भगवान् के साकार रूप की उपासिका थीं। कृष्ण को श्याम सुन्दर रूप, कान में कुण्डल, हाथ में मुरली और गले में वनमाला, श्रीकृष्ण के इस रूप पर मीरा मोहित थीं।

18.

मीरा ने प्रेम की लता को किस प्रकार पल्लवित किया?

Answer»

मीरा ने प्रेम की लता को आँसुओं के जल से सींच-सींचकर पल्लवित किया। उसे लता से उसे आनन्दरूपी फल प्राप्त हुआ।

19.

‘मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो ने कोई’-पद में मीरा के भक्ति-भाव पर प्रकाश डालिए।अथवा‘मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई’ -मीरा द्वारा रचित इस पद का सारांश लिखिए।

Answer»

कृष्ण की भक्ति में डूबी मीरा उन्हें ही अपना पति मानती हैं और कहती हैं कि उनके तो केवल गिरिधर गोपाल ही हैं, दूसरा कोई नहीं है। जिनके सिर पर मोर-मुकुट हैं वे ही उनके पति हैं। माता-पिता, भाई-बन्धु आदि इस संसार में कोई भी कृष्णु के सिवा उनका अपना नहीं है। उन्होंने कृष्ण-भक्ति में सबको त्याग दिया है। यहाँ तक कि अपने कुल को भी त्याग दिया है। लोग इसके लिए उन्हें क्या कहते हैं, इसकी चिन्ता भी उन्हें नहीं है। उन्होंने संत एवं साधुओं की संगति में बैठकर लोक-लज्जा का त्याग कर दिया है। उन्होंने आँसुओं से सींचकर जिस कृष्ण-भक्ति की बेल (लता) को बोया, वह अब फैलकर फल दे रही है। अब तो वे सांसारिकता को देखकर संसार के प्रति मनुष्य की अज्ञानता पर रोती हैं और जहाँ भक्ति देखती हैं वहाँ उनका मन प्रसन्न हो उठता है । मीरा कहती हैं-‘हे गिरिधर गोपाल ! मैं तुम्हारी दासी हूँ, अब तुम ही मेरा उद्धार करो।’

20.

मीरा भगवान् के किस प्रकार के रूप को अपने नयनों में बसाना चाहती हैं?

Answer»

मीरा मोर मुकुट, मकराकृत कुण्डल और माथे पर अरुण तिलक लगे नन्दलाल के नटवर नागर रूप को अपनी आँखों में बसाना चाहती हैं।

21.

मीराबाई का जीवन-परिचय बताते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।अथवामीराबाई का जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक सेवाओं पर प्रकाश डालिए।अथवामीरा की रचनाओं एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।

Answer»

मीराबाई
(स्मरणीय तथ्य)

जन्म-सन् 1498 ई० । मृत्यु- 1546 ई० के आसपास।
पति- महाराणा भोजराज । पितारतन सिंह।
रचना- गेय पद।
काव्यगत विशेषताएँ
वर्य-विषय -विनय, भक्ति, रूप-वर्णन, रहस्यवाद, संयोग वर्णन।
रसश्रृंगार (संयोग-वियोग), शान्त।।
भाषाब्रजभाषा, जिसमें राजस्थानी, गुजराती, पूर्वी पंजाबी और फारसी के शब्द मिले हैं।
शैलीगीतकाव्य की भावपूर्ण शैली।
छन्दराग-रागनियों से पूर्ण गेय पद।
अलंकारउपमा, रूपक, दृष्टान्त आदि ।

जीवन-परिचयमीराबाई का जन्म राजस्थान में मेड़ता के पसि चौकड़ी ग्राम में सन् 1498 ई० के आसपास हुआ था। इनके पिता का नाम रतनसिंह था। उदयपुर के राणा सांगा के पुत्र भोजराज के साथ इनका विवाह हुआ था, किन्तु विवाह के थोड़े। ही दिनों बाद इनके पति की मृत्यु हो गयी।

मीरा बचपन से ही भगवान् कृष्ण के प्रति अनुरक्त थीं । सारी लोक-लज्जा की चिन्ता छोड़कर साधुओं के साथ कीर्तन-भजन करती रहती थीं। उनकी इस प्रकार का व्यवहार उदयपुर के राज-मर्यादा के प्रतिकूल था। अतः उन्हें मारने के लिए जहर का प्याला भी भेजा। गया था, किन्तु ईश्वरीय कृपा से उनका बाल-बाँका तक नहीं हुआ। परिवार से विरक्त होकर वे वृन्दावन और वहाँ से द्वारिका चली गयीं। औंर सन् 1546 ई० में स्वर्गवासी हुईं।

रचनाएँमीराबाई ने भगवान् श्रीकृष्ण के प्रेम में अनेक भावपूर्ण गेय पदों की रचना की है जिसके संकलन विभिन्न नामों से प्रकाशित हुए हैं। नरसीजी को मायरा, राम गोविन्द, राग सोरठ के पद, गीत गोविन्द की टीका मीराबाई की रचनाएँ हैं।

काव्यगत विशेषताएँ

() भाव-पक्षमीरा कृष्णभक्ति शाखा की सगुणोपासिका भक्त कवयित्री हैं। इनके काव्य का वर्ण्य-विषय एकमात्र नटवर नागर श्रीकृष्ण का मधुर प्रेम है।

1.विनय तथा प्रार्थना सम्बन्धी पद- जिनमें प्रेम सम्बन्धी आतुरता और आत्मस्वरूप समर्पण की भावना निहित है।

2.कृष्ण के सौन्दर्य वर्णन सम्बन्धी पद- जिनमें मनमोहन श्रीकृष्ण के मनमोहक स्वरूप की झाँकी प्रस्तुत की गयी है।

3.प्रेम सम्बन्धी पद- जिनमें मीरा के श्रीकृष्ण प्रेम सम्बन्धी उत्कट प्रेम का चित्रांकन है। इनमें संयोग और वियोग दोनों पक्षों का मार्मिक वर्णन हुआ है।

4.रहस्यवादी भावना के पद- जिनमें मीरा के निर्गुण भक्ति का चित्रण हुआ है।

5.जीवन सम्बन्धी पद- जिनमें उनके जीवन सम्बन्धी घटनाओं का चित्रण हुआ है।

() कला-पक्ष-

1.भाषा-शैली- मीरा के काव्य की भाषा ब्रजी है जिसमें राजस्थानी, गुजराती, भोजपुरी, पंजाबी भाषाओं के शब्द हैं। मीरा की भाषा भावों की अनुगामिनी है। उनमें एकरूपता नहीं है फिर भी स्वाभाविकता, सरसता और मधुरता कूट-कूटकर भरी हुई है।

2.रस-छन्द-अलंकार- मीरा की रचनाओं में श्रृंगार रस के दोनों पक्ष, संयोग और वियोग का बड़ा ही मार्मिक वर्णन हुआ है। इसके अतिरिक्त शान्त रस का भी बड़ा ही सुन्दर समावेश हुआ है। मीरा का सम्पूर्ण काव्य गेय पदों में है जो विभिन्न रोगरागनियों में बँधे हुए हैं। अलंकारों का प्रयोग मीरा की रचनाओं में स्वाभाविक ढंग से हुआ है। विशेषकर वे उपमा, रूपक, दृष्टान्त आदि अलंकारों के प्रयोग से बड़े ही स्वाभाविक हुए हैं।

साहित्य में स्थान- हिन्दी गीति काव्य की परम्परा में मीरा का अपना अप्रतिम स्थान है । प्रेम की पीड़ा का जैसा मर्मस्पर्शी वर्णन मीरा की रचनाओं में उपलब्ध होता है वैसा हिन्दी साहित्य में अन्यत्र सुलभ नहीं है।