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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.
| 1. | हरिशंकर परसाई के जीवन-परिचय का उल्लेख करते हुए उनकी कृतियों (रचनाओं) पर प्रकाश डालिए। याहरिशंकर परसाई का साहित्यिक परिचय दीजिए एवं उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए। | 
| Answer» जीवन-परिचय-श्री हरिशंकर जी का जन्म मध्य प्रदेश में इटारसी के निकट जमानी नामक स्थान पर 22 अगस्त, 1924 ई० को हुआ था। आरम्भ से लेकर स्नातक स्तर तक इनकी शिक्षा मध्य प्रदेश में हुई। नागपुर विश्वविद्यालय से इन्होंने हिन्दी में एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। परसाई जी ने कुछ वर्षों तक अध्यापन-कार्य किया तथा साथ-साथ साहित्य-सृजन आरम्भ किया। नौकरी को साहित्य-सृजन में बाधक जानकर इन्होंने उसे तिलांजलि दे दी और स्वतन्त्रतापूर्वक साहित्य-सृजन में जुट गये। इन्होंने जबलपुर से ‘वसुधा’ नामक साहित्यिक मासिक पत्रिका का सम्पादन और प्रकाशन आरम्भ किया, परन्तु आर्थिक घाटे के कारण उसे बन्द कर देना पड़ा। इनकी रचनाएँ साप्ताहिक हिन्दुस्तान, धर्मयुग आदि पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहीं। परसाई जी ने मुख्यत: व्यंग्यप्रधान ललित निबन्धों की रचना की है। 10 अगस्त, 1995 ई० को जबलपुर में इनका देहावसान हो गया। साहित्यिक योगदान–परसाई जी हिन्दी व्यंग्य के आधार-स्तम्भ थे। इन्होंने हिन्दी व्यंग्य को नयी दिशा प्रदान की है और अपनी रचनाओं में व्यक्ति और समाज की विसंगतियों पर से परदा हटाया है। ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ ग्रन्थ पर इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त ‘उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य संस्थान’ तथा मध्य प्रदेश कला परिषद् द्वारा भी इन्हें सम्मानित किया गया। इन्होंने कथाकार, उपन्यासकार, निबन्धकार तथा सम्पादक के रूप में हिन्दी-साहित्य की महान् सेवा की। | |
| 2. | “बड़ी लकीर को कुछ मिटाकर छोटी लकीर बड़ी लकीर बनती है।” | 
| Answer» प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘निन्दा रस’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक हरिशंकर परसाई हैं। | |
| 3. | ससंदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए:कुछ लोग बड़े निर्दोष मिथ्यावादी होते हैं। | 
| Answer» प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘निन्दा रस’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक हरिशंकर परसाई हैं। | |
| 4. | लेखक के मन में किसके प्रति मैल नहीं रहा? | 
| Answer» लेखक के मन में अपने निंदक मित्र के प्रति मैल नहीं रहा। | |
| 5. | कुछ लोग आदतन क्या बोलते हैं? | 
| Answer» कुछ लोग आदतन झूठ बोलते हैं। | |
| 6. | ससंदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए:आ बेटा, तुझे कलेजे से लगा लूँ। | 
| Answer» प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘निन्दा रस’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक हरिशंकर परसाई हैं। | |
| 7. | “वे अगर बंबई जा रहे हैं और उनसे पूछे तो वे कहेंगे कलकत्ता जा रहा हूँ।” | 
| Answer» एक रिश्तेदार ने लेखक से कहा। | |
| 8. | किसने ‘निंदा सबद रसाल’ कहा है? | 
| Answer» सूरदास’ ने ‘निंदा सबद रसाल’ कहा है। | |
| 9. | “निंदा सबद रसाल।” | 
| Answer» सूरदास ने पाठकों से कहा है। | |
| 10. | निंदा की प्रवृत्ति कैसे बढ़ती जाती है? | 
| Answer» जैसे-जैसे कर्म क्षीण होता जाता है वैसे-वैसे निन्दा की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है। इन्द्र बड़ा ईर्ष्यालु माना जाता है, क्योंकि वह निठल्ला है। स्वर्ग में देवताओं को बिना उगाया अन्न, बे बनाया महल और बिन बोये फल मिलते हैं। बिना कर्म से उन्हें अप्रतिष्ठित होने का डर बना रहता है इसलिए कर्मशील, मेहनती मनुष्यों से उन्हें ईर्ष्या, जलन होने लगती है। ऐसे कामचोर लोग ही निंदक में बदल जाते हैं। | |
| 11. | ज्यों-ज्यों कर्म क्षीण होता जाता है त्यों-त्यों निन्दा की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है। | 
| Answer» प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘निन्दा रस’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक हरिशंकर परसाई हैं। | |
| 12. | निन्दा को पूँजी बनानेवालों के बारे में लेखक ने क्या कहा है? | 
| Answer» जिन लोगों के पास निन्दा के अलावा और कोई दूसरी सम्पत्ति नहीं होती। वे लोग इसी पूँजी या सम्पत्ति से अपना कारोबार बढ़ाते रहते हैं। उनका यह कलंकित कार्य ही उनकी प्रतिष्ठा मानी जाती है। वे सदा उसी का पारायण करते हैं। | |
| 13. | दिए गए गद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए।ईर्ष्या-द्वेष से प्रेरित निन्दा भी होती है। लेकिन इसमें वह मजा नहीं जो मिशनरी भाव से निन्दा करने में आता है। इस प्रकार का निन्दक बड़ा दुखी होता है। ईष्र्या-द्वेष से चौबीसों घंटे जलता है और निन्दा का जल छिड़ककर कुछ शांति अनुभव करता है। ऐसा निन्दक बड़ा दयनीय होता है। अपनी अक्षमता से पीड़ित वह बेचारा दूसरे की सक्षमता के चाँद को देखकर सारी रात श्वान जैसा भौंकता है। ईर्ष्या-द्वेष से प्रेरित निन्दा करने वाले को कोई दण्ड देने की जरूरत नहीं है। वह निन्दक बेचारा स्वयं दण्डित होता है। आप चैन से सोइए और वह जलन के कारण सो नहीं पाता। उसे और क्या दण्ड चाहिए?(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(iii) मिशनरी निन्दक शान्ति का अनुभव कब करता है?(iv) किस प्रकार के निन्दक को दण्ड देने की कोई जरूरत नहीं होती? कारण सहित उत्तर दीजिए।(v) अपनी अक्षमता से पीड़ित निन्दक दूसरे की सक्षमता के चाँद को देखकर कैसा व्यवहार करता है? | 
| Answer» (i) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य-गरिमा’ में संकलित तथा हिन्दी के प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित ‘निन्दा रस’ शीर्षक व्यंग्यात्मक निबन्ध से अवतरित है। (ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक ने कहा है कि निन्दा ईष्र्या भाव से प्रेरित होती है और मिशनरी भाव से भी। मिशनरी भाव से की गयी निन्दा बिना किसी द्वेष-भाव के धर्म-प्रचार जैसे पुण्य कार्य की भावना से की जाती है। ईर्ष्या भाव से प्रेरित होकर निन्दा करने में वह आनन्द नहीं आता, जो मिशनरी भाव से प्रेरित होकर निन्दा करने में आता है। (iii) मिशनरी निन्दक ईष्र्या-द्वेष से चौबीसों घण्टे जलता है और निन्दा का जल छिड़ककर कुछ शान्ति अनुभव करता है। (iv) मिशनरी निन्दक को दण्ड देने की कोई जरूरत नहीं होती। कारण यह कि ऐसा निन्दक बेचारा स्वयं दण्डित होता है। (v) अपनी अक्षमता से पीड़ित निन्दक दूसरे की सक्षमता को चाँद को देखकर सारी रात श्वान जैसा भौंकता है। | |
| 14. | ससंदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए:अभी सुबह की गाड़ी से उतरा और एकदम तुमसे मिलने चला आया। | 
| Answer» प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘निन्दा रस’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक हरिशंकर परसाई हैं। | |
| 15. | “यह फुरसत का काम है, इसलिए जिनके पास कुछ और करने को नहीं होता, वे इसे बड़ी खूबी से करते हैं।” | 
| Answer» प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘निन्दा रस’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक हरिशंकर परसाई हैं।। | |
| 16. | वाक्य शुद्ध कीजिए:1. ऐसी मौके पर हम अक्सर अपने पुतले को अंधकार में दे देते हैं।2. पर वह मेरी दोस्त अभिनय में पूरा है।3. निन्दा का ऐसी ही महिमा है।4. आपके बारे में मुझसे कोई भी बुरी नहीं कहता।5. सूरदास ने इसलिए ‘निन्दा सबद रसाल’ कही है। | 
| Answer» 1. ऐसे मौके पर हम अक्सर अपने पुतले को अंधकार में दे देते हैं। 2. पर वह मेरा दोस्त अभिनय में पूरा है। 3. निन्दा की ऐसी ही महिमा है। 4. आपके बारे में मुझसे कोई भी बुरा नहीं कहता 5. सूरदास ने इसलिए ‘निन्दा सबद रसाल’ कहा है। | |
| 17. | कोष्ठक में दिए गये उचित शब्दों से रिक्त स्थान भरिएः(पूँजी, ईर्ष्या-द्वेष, भेद-नाशक, पुतला, तूफान)सुबह चाय पीकर अखबार देख रहा था कि वे ………… की तरह कमरे में घुसे।सुबह चाय पीकर अखबार देख रहा था कि वे ………… की तरह कमरे में घुसे।निन्दा का ऐसा ही ………… अँधेरा होता है।……….. से प्रेरित निन्दा भी होती है।निन्दा कुछ लोगों की ………. होती है। | 
| Answer» तूफान पुतला भेद-नाशक ईर्ष्या-द्वेष पूँजी। | |
| 18. | ईर्ष्या-द्वेष से प्रेरित निन्दकों की कैसी दशा होती है? | 
| Answer» बुरे कर्मों में लगे व्यक्ति कभी सुखी नहीं हो सकते। वही स्थिति निन्दकों की होती है। इनका अधिकांश समय ईर्ष्या, द्वेष से युक्त निन्दा करने में लगा रहता है। जैसे रात को कुत्ता चाँद को देखकर भौंकता है, वैसे ही निन्दक भौंकता है। | |
| 19. | धृतराष्ट्र की भुजाओं में कौनसा पुतला जकड़ा गया था? | 
| Answer» धृतराष्ट्र की भुजाओं में भीम का पुतला जकड़ा गया था। | |
| 20. | पिछली रात ‘क’ ‘ग’ के साथ बैठकर क्या करता रहा? | 
| Answer» पिछली रात ‘क’ ‘ग’ के साथ बैठकर निंदा करता रहा। | |
| 21. | अन्य लिंग रूप लिखिए:पुतला, मजदूर, बेटा, पति, स्त्री। | 
| Answer» 
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| 22. | धृतराष्ट्र का उल्लेख लेखक ने क्यों किया है? | 
| Answer» लेखक के मित्र ‘क’ ने जब हर्ष के साथ मिलने का झूठा बहाना किया तो लेखक को उसके व्यवहार पर शक हो गया। क्योंकि वह सच्चे मन से खुश नहीं था। इसलिए लेखक ने धृतराष्ट्र का उल्लेख किया कि उसने भीम को दिखावे की खुशी में अपने पास बुलाया, जब कि मन में सोचा कुछ और थी। | |
| 23. | “बड़ा खराब ज़माना आ गया है” | 
| Answer» प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘निन्दा रस’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक हरिशंकर परसाई हैं। | |
| 24. | निन्दा रस कहानी का सारांश लिखें। | 
| Answer» हरिशंकर परसाई ने इस व्यंग्य रचना में समाज में फैले हुए अज्ञान, अहंकार, स्वार्थ, धोखा आदि का जोरदार खंडन किया है। इनकी रचनाओं में तीखा व्यंग्य अधिक होता है। इस लेख में लेखक ने निन्दा को नवरसों के समान एक रस माना है। उनका कहना है कि निन्दा रस में हर कोई डुबकियाँ लगाकर आनंद लेता है। उनकी दृष्टि में निन्दा रस की महिमा अपार है। हरिशंकर परसाई कहते हैं कि उनका एक मित्र बिना बताए लेखक के घर पहुंचता है। दूसरे लोगों के बारे में घंटों तक अनाप-शनाप बककर चला जाता है। लेखक को उन लोगों से कोई वास्ता भी नहीं था। फिर भी वे अपने निन्दक मित्र की बकवास सुनते ही रहे। लेखक का मित्र बड़ा विचित्र व्यक्ति है। उसके पास कई परिचित लोगों के दोषों का भंडार है। वह हर किसी के सामने दूसरे लोगों के अवगुणों की निन्दा करता रहता है। कई लोग उस निन्दा रस का आनन्द लेते हैं। चार-पाँच निन्दकों को एक जगह बिठाकर उनकी टीका-टिप्पणी सुननी चाहिए। वे सब इतनी तल्लीनता के साथ, मजेदार भाषा में दूसरों की निन्दा करने लगते हैं कि कोई भी उस महफिल से उठने का नाम नहीं लेता। निन्दक महाशय दूसरों की निन्दा करने में अपने को धन्य मानते हैं। निन्दा करना इनके लिए एक ‘टॉनिक’ है। यह टॉनिक इनकी उम्र और ताकत को बढ़ाती है। निन्दकों के भी संघ हैं। उन संघ के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव वगैरह पदाधिकारी भी हैं। इनमें अपने काम के प्रति लगन है, श्रद्धा है और प्रतिबद्धता भी है। निन्दकों का संगठन शक्ति और कार्य करने की पदधति निरुपम है। जो लोग हीनता और कमजोरी के शिकार हैं, वे ही दूसरों की निन्दा करने लगते हैं। निन्दा करने से इनका कोई लाभ या प्रयोजन नहीं है; परन्तु निन्दा करने में ये बड़ा सुख और आनन्द पाते हैं। निन्दा की महिमा अपार है, अपरंपार है। निन्दकों की निन्दा नहीं करनी चाहिए। महात्मा सूरदास जी ने कहा था – ‘निन्दा सबद रसाल’ अर्थात् निन्दा करना मीठे आम का स्वाद लेने के | |
| 25. | निन्दा रस कहानी का सारांश अँग्रेजी में लिखें। | 
| Answer» This lesson by Harishankar Parsai is a strong condemnation of the ignorance, pride, selfishness and cheating prevalent in society. The criticism of Harishankar Parsai is generally scathing. Here, the author has considered criticism as one of the ‘Navarasas’. He believes that everyone takes a dip in criticism and enjoys it. In his opinion, the greatness of criticism is unbeatable. Once, the author had an unexpected visit from his friend. The friend spent hours talking nonsense and criticizing others and then left. The author had nothing to do with the people his friend criticized. Despite this, he continued to listen to his friend’s criticism. The author’s friend was a strange man. He had a great collection of the vices of his acquaintances. He would criticize the vices of other people behind their back. Many people enjoyed his criticism. The author says that one must assemble four or five critics (such as his friend), and listen to their commentary and discussion. They begin to criticize others with such gracefulness and entertaining language, that one does not feel like leaving such an atmosphere. Such critics consider themselves blessed to be able to criticize others. Criticizing others is like a tonic for them. This tonic increases their lifespan and strength. There are associations of critics. These associations have presidents, vice-presidents and members, who actually hold these posts. These people are dedicated and involved in their work. The unity and style of functioning of critics’ associations is “Those who are victims of deprivation and weakness are the ones who begin to criticize others. Criticizing others does not benefit them in any way; however, these people take great pleasure in criticizing others. The greatness of criticism is infinite; it is limitless. Therefore, one must not criticize critics. The great poet Surdas once said, “Ninda Sabada Rasaal”, meaning that criticizing is equal to eating a sweet mango. The author says that escaping the ‘all-encompassing embrace’ of critics is a very difficult task. Only a clever person can escape the clutches of critics. | |
| 26. | दिए गए गद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए।निन्दा का उद्गम ही हीनता और कमजोरी से होता है। मनुष्य अपनी हीनता से दबता है। वह दूसरों की निन्दा करके ऐसा अनुभव करता है कि वे सब निकृष्ट हैं और वह उनसे अच्छा है। उसके अहं की इससे तुष्टि होती है। बड़ी लकीर को कुछ मिटाकर छोटी लकीर बड़ी बनती है। ज्यों-ज्यों कर्म क्षीण होता जाता है, त्यों-त्यों निन्दा की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है। कठिन कर्म ही ईष्र्या-द्वेष और इनसे उत्पन्न निन्दा को मारता है। इन्द्र बड़ा ईर्ष्यालु माना जाता है क्योंकि वह निठल्ला है। स्वर्ग में देवताओं को बिना उगाया अन्न, बे बनायो महल और बिन बोये फल मिलते हैं। अकर्मण्यता में उन्हें अप्रतिष्ठित होने का भय बना रहता है, इसलिए कर्मी मनुष्यों से उन्हें ईष्र्या होती है।(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(iii) निन्दा का उद्गम कहाँ से होता है?(iv) निन्दक व्यक्ति दूसरों की निन्दा करके कैसा अनुभव करता है?(v) इन्द्र को ईष्र्यालु क्यों माना जाता है? | 
| Answer» (i) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य-गरिमा’ में संकलित तथा हिन्दी के प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित ‘निन्दा रस’ शीर्षक व्यंग्यात्मक निबन्ध से अवतरित है। (ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक कहता है कि इन्द्र को बड़ा ईष्र्यालु माना जाता है; क्योंकि वह निठल्ला रहता है, उसे कुछ नहीं करना पड़ता। उसे खाने के लिए अन्न नहीं उगाना पड़ता, फल पाने के लिए पेड़ नहीं बोने पड़ते तथा रहने के लिए बना-बनाया महल मिल जाता है। स्वर्ग में ये सभी चीजें स्वत: प्राप्त हो जाती हैं, इन्हें प्राप्त करने के लिए कुछ भी श्रम नहीं करना पड़ता। खाली रहने के कारण उसे अपनी अप्रतिष्ठा का डर बना रहता है। इसलिए वह किसी तपस्वी को तपस्या करते देखकर, किसी कर्मठ व्यक्ति को श्रेष्ठ कर्म करते देखकर ही भयभीत हो जाता है कि कहीं यह अपनी कर्मठता से मेरे पद को न छीन ले; अत: वह उससे ईर्ष्या करने लगता है। (iii) निन्दा का उद्गम हीनता और कमजोरी से होता है। (iv) निन्दक व्यक्ति दूसरों की निन्दा करके ऐसा अनुभव करता है कि वे सब निकृष्ट हैं और वह उनसे अच्छा है। (v) निठल्ला होने के कारण इन्द्र को ईर्ष्यालु माना जाता है। | |
| 27. | ‘निन्दा रस’ निबंध का आशय अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए। | 
| Answer» निन्दक निन्दा करके ‘निन्दा-रस’ का आनन्द लेता है। निन्दक दूसरों की निन्दा में सुख भोगता है। निन्दा के भी नमूने हैं। जैसे- कुछ लोग ईर्ष्या से निन्दा करते हैं, कुछ अपनी प्रसिद्धि के लिए निन्दा करते हैं, कुछ बिना कारण से ही निन्दा करते हैं। ऐसे लोगों के स्वभाव का उजागर करना ही लेखक का उद्धेश्य है। | |
| 28. | मनुष्य किससे दबता है? | 
| Answer» मनुष्य अपनी हीनता से दबता है। | |
| 29. | ससंदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए:निन्दा का उद्गम ही हीनता और कमजोरी से होता है। | 
| Answer» प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘निन्दा रस’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक हरिशंकर परसाई हैं। | |
| 30. | निन्दा का उद्गम किससे होता है? | 
| Answer» निन्दा का उद्गम ‘हीनता’ और ‘कमजोरी’ से होता है। | |
| 31. | निन्दा की महिमा का वर्णन कीजिए। | 
| Answer» निन्दक लोग जहाँ कहीं इकट्ठे हो जाते हैं, वहाँ वे दूसरों की निन्दा में इतने तन्मय हो जाते हैं कि उन्हें अन्यों की चिन्ता ही नहीं होती। जितनी एकाग्रता और तन्मयता कोई भक्त भी भगवान के ध्यान में नहीं लगाता हो, उतनी ये निन्दा करने में लगा देते हैं। निन्दकों की-सी एकाग्रता, परस्पर आत्मीयता, निमग्नता भक्तों में दुर्लभ है। | |
| 32. | निन्दकों के संघ के बारे में लिखिए। | 
| Answer» जिस प्रकार मजदूरों की ट्रेड-यूनियन होती है, वैसे निन्दकों का भी एक संघ होता है। संघ के सदस्य इधर-उधर की खबरें लाकर, संघ को सौंपते हैं। यह कच्चा माल माना जाता है। संघ इसे पक्का माल बनाकर, सभी सदस्यों को इस तरह बाँटते हैं, जैसे उनकी दृष्टि में वह ‘बहुजन-हिताय’ कार्य हो। | |
| 33. | निन्दकों की जैसी एकाग्रता किनमें दुर्लभ है? | 
| Answer» निन्दकों की जैसी एकाग्रता भक्तों में दुर्लभ है। | |
| 34. | ‘मिशनरी’ निन्दक से लेखक का क्या तात्पर्य है? | 
| Answer» मिशनरी निन्दक से लेखक का तात्पर्य उन निंदकों से है जो पूरी पवित्र भावना से निन्दा के कार्य में लगे रहते हैं। उनका किसी से वैर नहीं, द्वेष नहीं। वे किसी का बुरा नहीं सोचते। पर चौबीसों घंटे वे निंदा कार्य में बहुत पवित्र भाव से लगे रहते हैं। उनकी नितांत निर्लिप्तता, निष्पक्षता इसी से मालूम होती है कि वे प्रसंग आने पर अपने आप की पगड़ी भी उसी आनंद से उछालते हैं जिस आनंद से अन्य लोग दुष्मनों की। निन्दा इनके लिए ‘टॉनिक’ होती है। | |
| 35. | मिशनरी निन्दक चौबीसों घंटे निन्दा करने में किस भाव से लगे रहते हैं? | 
| Answer» मिशनरी निन्दक चौबीसों घंटे निन्दा करने में पवित्र भाव से लगे रहते हैं। | |
| 36. | निन्दा, निन्दा करनेवालों के लिए क्या होती है? | 
| Answer» निन्दा, निन्दा करनेवालों के लिए टॉनिक होती है। | |
| 37. | लेखक अपने मित्र मिस्टर ‘क’ के बारे में क्या कहते हैं? | 
| Answer» परसाई जी ‘क’ के बारे में कहते हैं कि वे कई महीने बाद आये थे। उनके मित्र ने उन्हें बताया कि ‘क’ अपनी ससुराल आया है और ‘ग’ के सामने तुम्हारी दो-तीन घंटे निंदा करता रहा। लेकिन जब ‘क’ लेखक से मिलने आता है तो झूठ कहता है- ‘अभी सुबह की गाड़ी से उतरा और एकदम तुमसे मिलने चला आया।’ आते ही झूठ बोला। उसने आते ही ‘ग’ की निन्दा आरंभ कर दी। उसने ‘ग’ की ऐसे गाढ़े काले तारकोल से तस्वीर खींची कि मैं यह सोचकर काँप उठा कि ऐसी ही काली तस्वीर मेरी ‘ग’ के सामने इसने कल शाम को खींची होगी। | |
| 38. | “यार आजकल लोग तुम्हारे बारे में बहुत बुरा-बुरा कहते हैं।” | 
| Answer» संघ के एक अध्यक्ष ने अपने मित्र से कहा। | |
| 39. | लेखक के मित्र के पास दोषों का क्या है? | 
| Answer» लेखक के मित्र के पास दोषों का ‘केटलाग’ है। | |
| 40. | मुहावरेः गले लगाना, बेईमानी करना, कल्लोल करना | 
| Answer» 
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| 41. | अन्य वचन रूप लिखिए:भुजा, कथा, दुश्मन, घंटा, कमरा, कविता, लकीर। | 
| Answer» 
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| 42. | कौन कई महीने बाद आये थे? | 
| Answer» ‘क’ कई महीनों बाद आये थे। | |
| 43. | किस प्रकार का निंदक बड़ा दुःखी होता है? | 
| Answer» ईर्ष्या-द्वेष से प्रेरित निंदक बड़ा दुखी रहता है। | |
| 44. | कौन बड़ा ईर्ष्यालु माना जाता है? | 
| Answer» इन्द्र बड़ा ईर्ष्यालु माना जाता है। | |
| 45. | “इस प्रकार का निंदक बड़ा दुःखी होता है।” | 
| Answer» प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘निन्दा रस’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक हरिशंकर परसाई हैं। । | |
| 46. | कुछ लोग आदतन क्या बोलते हैं? | 
| Answer» कुछ लोग आदतन झूठ बोलते हैं। | |
| 47. | “अद्भुत है मेरा मित्र। उनके पास दोषों का ‘केटलाग’ है।” | 
| Answer» प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘निन्दा रस’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक हरिशंकर परसाई हैं। | |