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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.

1.

ध्वनि-प्रदूषण से क्या आशय है?

Answer»

शोर तथा उसकी तीव्रता का बढ़ जाना ही ध्वनि-प्रदूषण है।

2.

ध्वनि या शोर की इकाई क्या है?

Answer»

ध्वनि या शोर की इकाई डेसीबेल है।

3.

पर्यावरण-प्रदूषण के चार मुख्य कारकों का उल्लेख कीजिए।

Answer»
  1. औद्योगीकरण एवं नगरीकरण
  2. वृक्षों की अत्यधिक कटाई
  3. तू अवशिष्ट पदार्थों में वृद्धि
  4. स्वचालित वाहनों की वृद्धि
4.

क्या आपके विचार से आधुनिक औद्योगिक युग में पर्यावरण-प्रदूषण को समाप्त किया जा सकता है?

Answer»

हमारे विचार से आधुनिक औद्योगिक युग में पर्यावरण प्रदूषण को समाप्त नहीं केवल नियन्त्रित किया जा सकता है।

5.

पर्यावरण के प्रमुख स्वरूप बताइए।

Answer»

पर्यावरण के प्रमुख स्वरूप हैं प्राकृतिक पर्यावरण, सामाजिक पर्यावरण तथा सांस्कृतिक पर्यावरण।

6.

मृदा-प्रदूषण अर्थात् मिट्टी के प्रदूषण के सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।

Answer»

पर्यावरण प्रदूषण का एक स्वरूप मृदा-प्रदूषण’ भी है। मृदा-प्रदूषण का अर्थ है किसी क्षेत्र की मिट्टी का प्रदूषित हो जाना। मिट्टी या भूमि का सीधा सम्बन्ध वनस्पतियों अर्थात् पेड़-पौधों से होता है। मृदा-प्रदूषण की दशा में मिट्टी में विजातीय तथा हानिकारक तत्त्वों का समावेश हो जाता है। मिट्टी का निरन्तर सम्पर्क वायु तथा जल से होता है। अत: यदि जल एवं वायु में प्रदूषण की दर में वृद्धि होती है। तो निश्चित रूप से मृदा-प्रदूषण में भी वृद्धि होती है। फसलों की सिंचाई के लिए निरन्तर जल की आवश्यकता होती है। अत: यदि प्रदूषित जल द्वारा सिंचाई का कार्य किया जाए तो मिट्टी भी प्रदूषित हो जाती है। इसी प्रकार वायु-प्रदूषण की दशा में वर्षा होने पर वायु की अशुद्धियाँ मिट्टी में मिल जाती हैं। मृदा-प्रदूषण का सीधा प्रभाव हमारी फसलों पर पड़ता है। फसलों एवं उनसे प्राप्त खाद्य-पदार्थों के विजातीय तत्त्वों का समावेश हो जाता है। इस प्रकार के खाद्य-पदार्थों के सेवन से मनुष्यों एवं पशुओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका रहती है। मृदा-प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए अलग से कोई विशेष उपाय करने आवश्यक नहीं होते। इसके लिए जल एवं वायु के प्रदूषण को नियन्त्रित कर लेना ही पर्याप्त माना जाता है। यदि वायु एवं जल-प्रदूषण को नियन्त्रित कर लिया जाए, तो मृदा-प्रदूषण की समस्या ही उत्पन्न नहीं होगी।

7.

पर्यावरण से सम्बन्धित किन्हीं दो दण्डनीय अपराधों के नाम बताइए।

Answer»

(1) वनों एवं सार्वजनिक स्थलों के वृक्षों को काटना तथा
(2) वन्य प्राणियों; जैसे–चीता, शेर, हिरन आदि का शिकार करना।

8.

पर्यावरण-प्रदूषण के मुख्य प्रकार या स्वरूपों का उल्लेख कीजिए।

Answer»

पर्यावरण-प्रदूषण के मुख्य प्रकार या स्वरूप हैं

  1. वायु-प्रदूषण
  2. जल-प्रदूषण
  3. ध्वनि-प्रदूषण तथा
  4. मृदा-प्रदूषण।
9.

वस्तुओं के जलने से कौन-सी गैस बनती है?

Answer»

वस्तुओं के जलने से मुख्यत: कार्बन डाइऑक्साइड व कार्बन मोनोऑक्साइड गैसें बनती हैं।

10.

पर्यावरण-प्रदूषण से क्या आशय है?

Answer»

पर्यावरण के किसी एक या एक से अधिक भागों का दूषित हो जाना ही पर्यावरण-प्रदूषण कहलाता है। पर्यावरण-प्रदूषण अपने आप में पर्यावरण की एक हानिकारक दशा है।

11.

क्या कार्बन आदि के कण भयंकर रोग उत्पन्न करने के लिए उत्तरदायी होते हैं?

Answer»

हाँ, कार्बन आदि के कण भयंकर रोग उत्पन्न करने के लिए उत्तरदायी होते हैं क्योंकि इनसे तपेदिक, कैंसर, दमा, श्वास आदि रोग हो जाते हैं।

12.

कारखानों से निकलने वाली गैसें स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं। क्यों?

Answer»

कारखानों से निकलने वाली गैसें विषैली होती हैं। ये विषैली गैसें सल्फर व कार्बन की ऑक्साइड आदि होती हैं जो अनेक रोगों को उत्पन्न करती हैं या शरीर की प्रतिरोधक शक्ति को कम करती हैं, जिससे रोगाणु क्रिया करने में सफल हो जाते हैं।

13.

मोटरगाड़ियों को सबसे प्रदूषणकारी क्यों माना गया है?

Answer»

मोटरगाड़ियों को सबसे प्रदूषणकारी माना गया है; क्योंकि इनसे निकली अनेक हानिकारक गैसें; प्रमुखतः गैसीय हाइड्रोकार्बन्स, नाइट्रोजन ऑक्साइड के साथ सूर्य के प्रकाश में विषैला प्रकाश संश्लेषी स्मॉग बना लेती हैं, जो प्राणियों के लिए हानिकारक हैं।

14.

पर्यावरण के किस स्वरूप का निर्माण मनुष्य के द्वारा नहीं हुआ है?

Answer»

प्राकृतिक अथवा भौगोलिक पर्यावरण का निर्माण मनुष्य के द्वारा नहीं हुआ है।

15.

भूमि-प्रदूषण को मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?

Answer»

भू-प्रदूषण के जनजीवन पर होने वाले कुप्रभाव निम्नलिखित हैं

  1. फसल की पैदावार कम होने से किसानों को आर्थिक क्षति होती है तथा
  2. भूमि में रोगाणुओं के पनपने से अनेक रोग फैल जाते हैं।
16.

जंगलों को जनजीवन में क्या महत्त्व है?

Answer»

मानव जाति ने प्राचीनकाल से ही जंगलों कों निज स्वार्थ में ईंधन, फर्नीचर एवं भवन-निर्माण सामग्री की लकड़ी के स्रोतों की तरह प्रयोग किया है। इसके अनेक दुष्परिणाम धीरे-धीरे मानव जाति को ही भुगतने पड़े हैं। वनों का जनजीवन में महत्त्व निम्नलिखित है

  1. प्रत्येक परिस्थिति में मानव जीवन प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से वनस्पतियों पर निर्भर होता है। गैसों, खनिज लवणों, पोषक पदार्थों आदि के आदान-प्रदान से मनुष्य तथा वनस्पतियाँ, एक-दूसरे का जीवन सम्भव बनाते हैं। जंगलों के विनाश के दुष्परिणाम हैं प्राकृतिक विपदाएँ; जैसे–सूखा व बाढ़ आदि।
  2. वनों के हरे पेड़-पौधे प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड व ऑक्सीजन गैसों का वायुमण्डल में सन्तुलन बनाए रखते हैं। वनों के विनाश के कारण वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की मात्रा बढ़ रही है जो कि एक हानिकारक स्थिति है।
17.

पर्यावरण से क्या आशय है?

Answer»

व्यक्ति के सन्दर्भ में व्यक्ति के अतिरिक्त इस सृष्टि में जो कुछ भी विद्यमान है, वह सब कुछ सम्मिलित रूप से पर्यावरण है।

18.

सल्फर डाइऑक्साइड से मनुष्य को क्या रोग हो जाता है?

Answer»

फेफड़ों के ऊतक कुप्रभावित होते हैं तथा पुरानी खाँसी का रोग हो जाता है।

19.

औद्योगिक संस्थानों की चिमनियों से विसर्जित होने वाले अवशेषों से किस प्रकार के प्रदूषण में वृद्धि होती है?

Answer»

औद्योगिक संस्थानों की चिमनियों से विसर्जित होने वाले अवशेषों से वायु-प्रदूषण में वृद्धि होती है।

20.

वर्तमान औद्योगिक जगत् की गम्भीर समस्या है ।(क) बेरोजगारी(ख) महँगाई(ग) भिक्षावृत्ति(घ) पर्यावरण-प्रदूषण

Answer»

सही विकल्प है (घ) पर्यावरण-प्रदूषण

21.

औद्योगीकरण तथा नगरीकरण ने बढ़ावा दिया है(क) पर्यावरण की स्वच्छता को(ख) पर्यावरण-प्रदूषण को(ग) पर्यावरण के रख-रखाव को(घ) इनमें से कोई नहीं

Answer»

सही विकल्प है (ख) पर्यावरण-प्रदूषण को

22.

पारे व सीसे के यौगिक मनुष्य को किस प्रकार प्रभावित करते हैं?

Answer»

ये मछलियों के शरीर में पहुँच जाते हैं। इन मछलियों को खाने से मनुष्य के नेत्रों व मस्तिष्क पर कुप्रभाव पड़ता है।

23.

वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की निरन्तर बढ़ रही प्रतिशत मात्रा से क्या दुष्परिणाम सम्भव हैं?

Answer»

वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की प्रतिशत मात्रा में वृद्धि के कारण हैं

(1) कोयला, पेट्रोल व डीजल आदि को दहन तथा
(2) वनों का विनाश।

वातावरण में कार्बन डाइ-ऑक्साइड के बढ़ने की यदि यह गति बनी रही तो आगामी 40 वर्षों में पृथ्वी के तापमान में लगभग तीन डिग्री सेण्टीग्रेड तक वृद्धि होने की सम्भावना है। इसका परिणाम होगा विभिन्न देशों की जलवायु में परिवर्तन; उत्तरी अमेरिका व रूस में वर्षा में कुछ कमी तथा पश्चिमी यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, सहारा का क्षेत्र व भारतीय उपमहाद्वीप में वर्षा में कुछ वृद्धि होगी। इससे हमारे देश में बाढ़, प्रदूषण व मृदा अपरदन आदि की समस्याओं में वृद्धि होगी।

पृथ्वी का तापमान बढ़ जाने के कारण दोनों ध्रुवों पर बर्फ के पिघलने के कारण समुद्र के जल-स्तर में वृद्धि हो जाएगी, जिसके कारण समुद्र के किनारे पर स्थित कई नगर व द्वीप जलमग्न हो जाएँगे।

24.

फेफड़ों का केंसर सर किस गैस के प्रदूषण से होता है?

Answer»

नाइट्रोजन के ऑक्साइड (NO, तथा NO) फेफड़ों के कैंसर की सम्भावनाओं में वृद्धि करते हैं।

25.

पर्यावरण-प्रदूषण में वृद्धि करने वाले कारक हैं(क) औद्योगीकरण(ख) नगरीकरण(ग) यातायात के शक्ति-चालित साधन(घ) ये सभी।

Answer»

सही विकल्प है (घ) ये सभी।

26.

पौधे वायुमण्डल का शुद्धिकरण करते हैं(क) नाइट्रोजन द्वारा(ख) ऑक्सीजन द्वारा(ग) कार्बन डाइऑक्साइड द्वारा(घ) पानी द्वारा

Answer»

सही विकल्प है (ख) ऑक्सीजन द्वारा

27.

मछलियों एवं अन्य समुद्री प्राणियों के विनाश का प्रायः कारण बना करता है(क) तैलीय-प्रदूषण(ख) वायु-प्रदूषण(ग) रेडियोधर्मी-प्रदूषण(घ) इनमें से कोई नहीं

Answer»

सही विकल्प है (क) तैलीय-प्रदूषण

28.

जल कैसे दूषित होता है?

Answer»

मनुष्यों द्वारा वाहित मल, औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों, कीटनाशकों, साबुन व डिटर्जेण्ट्स आदि के नदी, झील अथवा तालाब आदि के जल में मिल जाने से जल दूषित हो जाता है।

29.

वाहित मल के प्रदूषण से फैलने वाले दो रोगों के नाम बताइए।

Answer»

वाहित मल के प्रदूषण से फैलने वाले दो रोग हैं

(1) टायफाइड तथा
(2) पीलिया।

30.

रेडियोधर्मी प्रदूषण के कारण होने वाला असाध्य रोग है(क) टायफाइड(ख) चेचक(ग) कैन्सर(घ) डिफ्थीरिया

Answer»

सही विकल्प है (ग) कैन्सर

31.

वायु किस प्रकार दूषित होती है? उसे शुद्ध करने के प्राकृतिक साधन कौन-कौन से हैं?यावायु-प्रदूषण के कारण तथा प्रदूषण को रोकने के उपाय बताइए।

Answer»

वायु-प्रदूषण अथवा वायु के दूषित होने के कारण

शुद्ध वायु लगभग सभी जीवधारियों की मूल आवश्यकता है। सभी जीवधारी श्वसन में वायु के प्राणदायी भाग (ऑक्सीजन) का उपभोग कर कार्बन डाइऑक्साइड गैस छोड़ते हैं, जिसकी मात्रा वायुमण्डल में निरन्तर बढ़ती जा रही है। हरे पौधे इसको एकमात्र अपवाद हैं, क्योंकि ये प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड का उपभोग कर ऑक्सीजन गैस स्वतन्त्र करते हैं। तथा इस प्रकार वायुमण्डल में ऑक्सीजन की मात्रा का लगभग सन्तुलन बना रहता है। शुद्ध वायु में आवश्यक तत्त्वों के सन्तुलन को बिगाड़ने का श्रेय मानव जाति को जाता है। इस तथ्य की पुष्टि वायु के अशुद्ध होने के निम्नलिखित कारणों के अध्ययन से हो जाती है|

(1) श्वसन क्रिया द्वारा:
प्रायः सभी जीवधारी श्वसन के लिए वायुमण्डल की ऑक्सीजन पर निर्भर करते हैं। श्वसन क्रिया के फलस्वरूप वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की प्रतिशत मात्रा
बढ़ती रहती है तथा ऑक्सीजन गैस की प्रतिशत मात्रा घटती रहती है।

(2) विभिन्न पदार्थों के जलने से:
ऊर्जा-प्राप्ति के लिए मनुष्य द्वारा जलाए जाने वाले ये पदार्थ हैं-लकड़ी, कोयला, पेट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल एवं गैस आदि। इन पदार्थों के जलने से वायुमण्डल में ऑक्सीजन गैस की मात्रा दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है तथा अनेक विषैली गैसों की मात्रा बढ़ रही है। ये विषैली गैस एवं पदार्थ हैं-कार्बन डाइऑक्साईड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, फ्लोराइड्स, हाइड्रोकार्बन्स इत्यादि। इनके अतिरिक्त इथाइलीन, एसीटिलीन तथा प्रोपाइलीन इत्यादि भी अल्प मात्रा में स्वतन्त्र होकर वायुमण्डल में अपनी प्रतिशतता में निरन्तर वृद्धि कर रही हैं। ये सभी आने वाले समय में मानव जाति के अस्तित्व पर प्रश्न-चिह्न लगाने वाले विषैले पदार्थ हैं।

(3) वनों की अन्धाधुन्ध कटाई:
वायु के प्रदूषण को नियन्त्रित रखने में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका पेड़ों द्वारा निभाई जाती है। पेड़ पर्यावरण की कार्बन डाइऑक्साइड को घटाते हैं तथा ऑक्सीजन में वृद्धि करते हैं। मनुष्य द्वारा वनों की अन्धाधुन्ध कटाई के परिणामस्वरूप यह प्राकृतिक नियम प्रभावित होने लगा है तथा परिणामस्वरूप वायु-प्रदूषण की दर में वृद्धि होने लगी है।

(4) औद्योगिक अशुद्धियों द्वारा:
औद्योगिक क्रान्ति ने जहाँ मनुष्य के जीवन में अनेक सुविधाएँ प्रदान की हैं, वहीं औद्योगिक अशुद्धियों ने वायुमण्डल को प्रदूषित किया है। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं—

(i) पोलीक्लोरीनेटेड बाइफिनाइल्स (पी० सी० बी०):
इनका उपयोग औद्योगिक विलेयकों के रूप में तथा प्लास्टिक उद्योग में होता है। जब कृत्रिम रबर से बने टायर सड़कों पर रगड़ खाते हैं, तो ये पदार्थ वायुमण्डल में मिल जाते हैं।

(ii) स्मॉग:
शोधन-कार्यशालाओं के धधकने (रिफायनरी फ्लेयर्स) से बने धुएँ एवं कोहरे के मिश्रण से स्मॉग की उत्पत्ति होती है। औद्योगिक नगरों में प्रायः इस प्रकार का वायु-प्रदूषण पाया जाता है।

(iii) क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन:
अनेक उद्योगों में इस प्रकार के कार्बन का प्रयोग हो रहा है। असावधानियों के कारण यह वायुमण्डल में मुक्त होकर ओजोन की परत में छिद्र कर चुका है तथा इस प्रकार वायुमण्डल को हानिकारक बनाने की ओर अग्रसर है।।

(iv) परमाणु ऊर्जा:
परमाणु विस्फोटों से अनेक प्रदूषक वायुमण्डल में आते हैं।

वायु-प्रदूषण की रोकथाम के उपाय

  1. आवासीय बस्तियों का निर्माण सरकार द्वारा स्वीकृत मानकों के आधार पर होना चाहिए।
  2. घरों में ईंधन के जलने से उत्पन्न धुएँ के निष्कासन की व्यवस्था चिमनी के द्वारा होनी चाहिए, जिससे कि वह घरों में एकत्रित न हो।
  3. सरकार द्वारा संचालित वृक्षारोपण कार्यक्रम में हम सभी अपना योगदान दें। इसके लिए बस्ती व इसके आस-पास वृक्ष लगाने चाहिए।
  4. बस्ती के आस-पास रिक्त भूमि न छोड़े तथा गन्दगी न डालें। धूल व गन्दगी उड़कर वायु को दूषित कर सकती हैं।
  5. वाहनों के लिए पक्की सड़कें होनी चाहिए ताकि उनके चलने से धूल न उड़े।
  6. वाहनों के इंजन सही अवस्था में होने चाहिए, अन्यथा पेट्रोल व डीजल के अपूर्ण ज्वलन से अधिक धुआँ बनने के कारण प्रदूषण अधिक होता है। इस विषय में सरकार ने आवश्यक कदम उठाए हैं। तथा इस प्रकार के वाहन स्वामियों के लिए आर्थिक दण्ड का प्रावधान निश्चित किया है।
  7. विभिन्न औद्योगिक संस्थानों को नागरिक सीमा से दूर स्थित होना चाहिए। इनसे निकलने वाले धुएँ के लिए ऊँची-ऊँची चिमनियाँ हों। विभिन्न प्रदूषकों को वायुमण्डल में आने से रोकने के लिए चिमनियों में आवश्यक निस्यन्दक अथवा फिल्टर लगे होने चाहिए।
  8. पी० सी० बी० व क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन जैसे पदार्थों के उपयोग को नियन्त्रित किया जाए।

वायु शुद्धिकरण के प्राकृतिक साधन

हम जानते हैं कि वायु का आदर्श संगठन पृथ्वी के सभी जीवधारियों के लिए अति आवश्यक है। अनेक (पूर्व वर्णित) कारणों से यह संगठन प्रभावित होता रहता है। संगठन के इस परिवर्तन को हम वायु-प्रदूषण कहते हैं। प्रकृति ने अनेक ऐसे साधन उत्पन्न किए हैं जो कि वायु का शुद्धिकरण कर वायु-प्रदूषण को एक सीमा तक नियन्त्रित रखते हैं। ये साधन निम्नलिखित हैं

(1) पेड़-पौधे:
विशेष रूप से हरे पेड़-पौधे वायुमण्डल से कार्बन डाइऑक्साईड लेकर सूर्य के | प्रकाश में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन निर्मित करते हैं। इस क्रिया में ऑक्सीजन गैस
वातावरण में मुक्त होती है। इस प्रकार हरे पेड़-पौधे वायु में कार्बन डाइऑक्साइड में ऑक्सीजन की प्रतिशत मात्रा में यथासम्भव सन्तुलन बनाए रखते हैं।

(2) सूर्य:
सूर्य पृथ्वी के लिए ऊर्जा का अमूल्य व अमर स्रोत है। सूर्य का प्रकाश पेड़-पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया को सम्भव बनाता है जो कि वायुमण्डल में ऑक्सीजन मुक्त करती है। सूर्य के प्रकाश में पाई जाने वाली अल्ट्रावायलेट किरणें वायु के कीटाणुओं को नष्ट करती हैं। सूर्य का ताप वायुमण्डल में जल-वाष्प की मात्रा को नियन्त्रित रखता है।

(3) वर्षा:
वर्षा को जल वायुमण्डल की अनेक अशुद्धियों (जैसे-धूल के कण, अनेक गैसें वे कीटाणु आदि) को अपने साथ बहाकर ले जाता है तथा इस प्रकार वायुमण्डल की शुद्धता में वृद्धि करता
क्रिया द्वारा पधि वायुमण्ड निम्नलिखित वायु का शुद्धि
है।

(4) ऑक्सीजन:
ऑक्सीजन वायु की अनेक अशुद्धियों को ऑक्सीकृत कर नष्ट कर देती है।

(5) ओजोन:
इसके दो महत्त्वपूर्ण कार्य हैं। यह वायु के कीटाणुओं को नष्ट करती है तथा साथ-साथ सूर्य के प्रकाश को फिल्टर कर अनावश्यक परा-बैंगनी अथवा अल्ट्रावायलेट किरणों को पृथ्वी तक नहीं आने देती।

(6) विसरण:
विसरण प्रायः सभी पदार्थों का प्राकृतिक गुण है। गैसों में विसरण सर्वाधिक पाया जाता है, जिससे गैसें अधिक सान्द्रता वाले क्षेत्र से कम सान्द्रता वाले क्षेत्रों की ओर सदैव बहती रहती हैं। विसरण के फलस्वरूप विषैली गैसों की वायुमण्डल में सान्द्रता अधिक समय तक नहीं रह पाती है। इसी प्रकार वायु का अधिक वेग भी अशुद्धियों को दूर तक बहा ले जाती है। इससे यह लाभ होता है कि वायु की अशुद्धियाँ दूर-दूर तक विसरित हो जाती हैं और किसी स्थान विशेष पर अधिक समय तक केन्द्रित नहीं हो पातीं।

32.

जल में डी० डी० टी० की मात्रा में वृद्धि से सम्भावना बढ़ जाती है(क) फेफड़ों के कैन्सर की(ख) ल्यूकीमिया की(ग) पेट में अल्सर की(घ) लिवर के कैन्सर की

Answer»

सही विकल्प है (घ) लिवर के कैन्सर की

33.

निम्नलिखित में कौन-सा रोग वाहित मल द्वारा दूषित जल से होता है?(क) चेचक(ख) काली खाँसी(ग) टायफाइड(घ) विषैला भोजन

Answer»

सही विकल्प है (ग) टायफाइड

34.

पर्यावरण का अर्थ एवं परिभाषा निर्धारित कीजिए तथा पर्यावरण के विभिन्न वर्गों का सामान्य परिचय दीजिए।

Answer»

पर्यावरण का अर्थ एवं परिभाषा

मनुष्य ही क्या प्रत्येक प्राणी एवं वनस्पति जगत् भी पर्यावरण से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध है तथा ये सभी अपने पर्यावरण से प्रभावित भी होते हैं। पर्यावरण की अवधारणा को स्पष्ट करने से पूर्व पर्यावरण के शाब्दिक अर्थ को स्पष्ट करना आवश्यक है।
पर्यावरण शब्द दो शब्दों अर्थात् परि तथा ‘आवरण के संयोग या मेल से बना है।परि का अर्थ है चारों ओर’ तथा आवरण का अर्थ है घेरा। इस प्रकार पर्यावरण का शाब्दिक अर्थ हुआ चारों ओर का घेरा। इस प्रकारे व्यक्ति के सन्दर्भ में कहा जा सकता है कि व्यक्ति केचारों ओर जो प्राकृतिक और अन्य सभी प्रकार की शक्तियाँ और परिस्थितियाँ विद्यमान हैं, इनके प्रभावी रूप को ही पर्यावरण कहा जाता है। पर्यावरण का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत है। पर्यावरण इन समस्त शक्तियों, वस्तुओं और दशाओं का योग है जो मानव को चारों ओर से आवृत किए हुए हैं। मानव से लेकर वनस्पति तथा सूक्ष्म जीव तक सभी पर्यावरण के अभिन्न अंग हैं। पर्यावरण उन सभी बाह्य दशाओं एवं प्रभावों का योग है जो जीव के कार्य-कलापों एवं जीवन को प्रभावित करता है। मानव-जीवन पर्यावरण से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध है। पर्यावरण के शाब्दिक अर्थ एवं सामान्य परिचय को जान लेने के उपरान्त इस अवधारणा की व्यवस्थित परिभाषा प्रस्तुत करनी भी आवश्यक है। कुछ मुख्य समाज वैज्ञानिकों द्वारा प्रतिपादित परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

(i) जिस्बर्ट द्वारा परिभाषा:
जिस्बर्ट के अनुसार पर्यावरण से आशय उन समस्त कारकों से है। जो किसी व्यक्ति या जीव को चारों ओर से घेरे रहते हैं तथा प्रभावित करते हैं। उनके शब्दों में, “पर्यावरण वह कुछ भी है जो किसी वस्तु को चारों ओर से घेरे हुए है तथा उस पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है।” जिस्बर्ट की मान्यता है कि जीव अपने पर्यावरण के प्रभाव से बच नहीं सकता।

(ii) रॉस द्वारा परिभाषा:
रॉस ने पर्यावरण के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए एक संक्षिप्त परिभाषा इन शब्दों में प्रस्तुत की है, पर्यावरण हमें प्रभावित करने वाली कोई भी बाहरी शक्ति है।”
उपर्युक्त विवरण द्वारा पर्यावरण का अर्थ स्पष्ट हो जाता है। निष्कर्ष स्वरूप कहा जा सकता है कि व्यक्ति के सन्दर्भ में स्वयं व्यक्ति को छोड़कर इस जगत् में जो कुछ भी है वह सब कुछ सम्मिलित रूप से व्यक्ति का पर्यावरण है।

पर्यावरण का वर्गीकरण

पर्यावरण के अर्थ एवं परिभाषा सम्बन्धी विवरण के आधार पर कहा जा सकता है कि पर्यावरण की धारणा अपने आप में एक विस्तृत अवधारणा है। इस स्थिति में पर्यावरण के व्यवस्थित अध्ययन के लिए पर्यावरण का समुचित वर्गीकरण प्रस्तुत करना आवश्यक है। सम्पूर्ण पर्यावरण को मुख्य रूप से निम्नलिखित तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है

(1) प्राकृतिक अथवा भौगोलिक पर्यावरण:
प्राकृतिक अथवा भौगोलिक पर्यावरण के अन्तर्गत समस्त प्राकृतिक शक्तियों एवं कारकों को सम्मिलित किया जाता है। पृथ्वी, आकाश, वायु, जल, वनस्पति जगत् तथा जीव-जन्तु तो प्राकृतिक पर्यावरण के घटक ही हैं। इनके अतिरिक्त प्राकृतिक शक्तियों एवं घटनाओं को भी प्राकृतिक पर्यावरण ही माना जाएगा। सामान्य रूप से कहा जा सकता है। कि प्राकृतिक पर्यावरण न तो मनुष्य द्वारा निर्मित है और न ही यह मनुष्य द्वारा नियन्त्रित ही है। प्राकृतिक . अथवा भौगोलिक पर्यावरण का प्रभाव मनुष्य के जीवन के सभी पक्षों पर पड़ता है।

(2) सामाजिक पर्यावरण:
सामाजिक पर्यावरण भी पर्यावरण का एक रूप या पक्ष है। सम्पूर्ण सामाजिक ढाँचा ही सामाजिक पर्यावरण कहलाता है। इसे सामाजिक सम्बन्धों का पर्यावरण भी कहा जा सकता है। परिवार, पड़ोस, खेल के साथी, समाज, समुदाय, विद्यालय आदि सभी सामाजिक पर्यावरण के ही घटक हैं। सामाजिक पर्यावरण भी व्यक्ति को गम्भीर रूप से प्रभावित करता है, परन्तु यह सत्य है। कि व्यक्ति सामाजिक पर्यावरण के निर्माण एवं विकास में अपना योगदान प्रदान करता है।

(3) सांस्कृतिक पर्यावरण:
पर्यावरण का एक रूप या पक्ष सांस्कृतिक पर्यावरण भी है। सांस्कृतिक पर्यावरण प्रकृति-प्रदत्त नहीं है, बल्कि इसका निर्माण स्वयं मनुष्य ने ही किया है। वास्तव में मनुष्य द्वारा निर्मित वस्तुओं का समग्र रूप तथा परिवेश सांस्कृतिक पर्यावरण कहलाता है। सांस्कृतिक पर्यावरण भौतिक तथा अभौतिक दो प्रकार का होता है। सभी प्रकार के मानव-निर्मित उपकरण एवं साधन सांस्कृतिक पर्यावरण के भौतिक पक्ष में सम्मिलित हैं। इससे भिन्न मनुष्य द्वारा विकसित किए गए मूल्य, संस्कृति, धर्म, भाषा, रूढ़ियाँ,परम्पराएँ आदि सम्मिलित रूप से सांस्कृतिक पर्यावरण के अभौतिक पक्ष का निर्माण करते हैं।