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1.

शोभित है सर्वोच्च मुकुट से,जिनके दिव्य देश का मस्तक।पूँज रही हैं सकल दिशाएँ।जिनके जय-गीतों से अब तक ॥जिनकी महिमा का है अविरल,साक्षी सत्य-रूप हिम-गिरिवर।उतरा करते थे विमान-दलजिसके विस्तृत वक्षस्थल पर ।।

Answer»

[ दिव्य = अलौकिक। सकल = सम्पूर्ण अविरल = लगातार, निरन्तर। साक्षी = गवाह। सत्य-रूप हिम-गिरिवर = सत्य स्वरूप वाला श्रेष्ठ हिमालय। वक्षस्थल = सीना।]

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में भारत के गौरवपूर्ण अतीत की झाँकी प्रस्तुत की गयी है।

व्याख्या—कवि त्रिपाठी जी आगे कहते हैं कि यह ‘भारत’  हमारे चिरस्मरणीय पूर्वजों का देश है। इसका मस्तक हिमालयरूपी सर्वोच्च मुकुट से सुशोभित हो रहा है। हमारे पूर्वजों के विजय-गीतों से आज . तक भी सम्पूर्ण दिशाएँ पूँज रही हैं। ये ही तो वे पूर्वज थे, जिनकी महिमा की गवाही आज भी सत्य स्वरूप वाला श्रेष्ठ हिमालय दे रहा है अथवा जिनकी महिमा की गवाही आज भी हिमालय के रूप में प्रत्यक्ष है। इस भारत-भूमि के अति विस्तृत अथवा विशाल वक्षस्थल पर विभिन्न देशों के विमान समूह बना-बनाकर उतरा करते थे।

काव्यगत विशेषताएँ–
⦁    हिमालय के महत्त्व और सौन्दर्य की झाँकी प्रस्तुत की गयी है।
⦁    भाषा-साहित्यिक और बोधगम्य खड़ीबोली।
⦁    शैली-भावात्मक और वर्णनात्मक।
⦁    रसवीर।
⦁    गुण-ओज।
⦁    छन्द-प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राओं वाला मात्रिक छन्द।
⦁    अलंकार , अनुप्रास और रूपक।

2.

निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है ? परिभाषा सहित लिखिए-(क) निर्भय स्वागत करो मृत्यु का ,मृत्यु एक है विश्राम-स्थल ।जीव जहाँ से फिर चलता है ,धारण कर नव जीवन-संबल ॥मृत्यु एक सरिता है, जिसमें ,श्रम से कातर जीव नहाकर ।फिर नूतन : धारण करता है,काया-रूपी वस्त्र बहाकर ॥(ख) तुम तो, हे प्रिय बन्धु, स्वर्ग-सी, सुखद, सकल विभवों की आकर।धरा-शिरोमणि मातृभूमि में, धन्य हुए हो जीवन पाकर ॥

Answer»

(क) मृत्यु एक है विश्राम-स्थल तथा ‘मृत्यु एक सरिता है’ में रूपक अलंकार है। रूपक अलंकार में उपमेय में उपमान का निषेधरहित आरोप होता है।

(ख) ‘स्वर्ग-सी सुखद’ में उपमा अलंकार है। उपमा  अलंकार में उपमेय और उपमान में स्पष्ट और सुन्दर समानता दिखाई जाती है।

3.

श्री रामनरेश त्रिपाठी का जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्य-कृतियों (रचनाओं) का उल्लेख कीजिए।यारामनरेश त्रिपाठी का जीवन-परिचय देते हुए उनकी किसी एक रचना का नामोल्लेख कीजिए।

Answer»

पं० रामनरेश त्रिपाठी स्वदेश-प्रेम, मानव-सेवा और पवित्र प्रेम के गायक कवि हैं। इनकी रचनाओं में छायावाद का सूक्ष्म सौन्दर्य एवं आदर्शवाद का मानवीय दृष्टिकोण एक साथ घुल-मिल गये हैं। आप बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न साहित्यकार  हैं। राष्ट्रीय भावनाओं पर आधारित इनके काव्य अत्यन्त हृदयस्पर्शी हैं।

जीवन-परिचय-हिन्दी-साहित्य के विख्यात कवि रामनरेश त्रिपाठी का जन्म सन् 1889 ई० में उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के कोइरीपुर ग्राम के एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। इनके पिता पं० रामदत्त त्रिपाठी एक आस्तिक ब्राह्मण थे। इन्होंने नवीं कक्षा तक स्कूल में पढ़ाई की तथा बाद में स्वतन्त्र अध्ययन और देशाटन से असाधारण ज्ञान प्राप्त किया और साहित्य-साधना को ही अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। इन्हें केवल हिन्दी ही नहीं वरन् अंग्रेजी, संस्कृत, बंगला और गुजराती भाषाओं को भी अच्छा ज्ञान था। इन्होंने दक्षिण भारत में हिन्दी भाषा के प्रचार और प्रसार का सराहनीय कार्य कर हिन्दी की अपूर्व सेवा की। ये हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन की इतिहास परिषद् के सभापति होने के साथ-साथ स्वतन्त्रतासेनानी एवं देश-सेवी भी थे। साहित्य की सेवा करते-करते सरस्वती का यह वरद पुत्र सन् 1962 ई० में स्वर्गवासी हो गया। |

रचनाएँ–त्रिपाठी जी श्रेष्ठ कवि होने के साथ-साथ बाल-साहित्य और संस्मरण साहित्य के लेखक भी थे। नाटक, निबन्ध, कहानी, काव्य, आलोचना और लोक-साहित्य पर इनका पूर्ण अधिकार था। इनकी प्रमुख काव्य-रचनाएँ निम्नलिखित हैं|

(1) खण्डकाव्य-पथिक’, ‘मिलन’ और ‘स्वप्न’। ये तीन प्रबन्धात्मक खण्डकाव्य हैं। इनकी विषयवस्तु ऐतिहासिक और पौराणिक है, जो देशप्रेम और राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत है।

(2) मुक्तक काव्य-मानसी’ फुटकर काव्य-रचना है। इस काव्य में त्याग, देश-प्रेम, मानव-सेवा और उत्सर्ग का सन्देश देने वाली प्रेरणाप्रद कविताएँ संगृहीत हैं।

(3) लोकगीत-‘ग्राम्य गीत’ लोकगीतों का संग्रह है। इसमें  ग्राम्य-जीवन के सज़ीव और प्रभावपूर्ण गीत हैं। इनके अतिरिक्त त्रिपाठी जी द्वारा रचित प्रमुख कृतियाँ हैं|
वीरांगना’ और ‘लक्ष्मी’ (उपन्यास), ‘सुभद्रा’, ‘जयन्त’ और ‘प्रेमलोक’ (नाटक), ‘स्वप्नों के चित्र (कहानी-संग्रह), ‘तुलसीदास और उनकी कविता’ (आलोचना), ‘कविता कौमुदी’ और ‘शिवा बावनी (सम्पादित), ‘तीस दिन मालवीय जी के साथ’ (संस्मरण), ‘श्रीरामचरितमानस की टीका (टीका), ‘आकोश की बातें’; ‘बालकथा कहानी’; ‘गुपचुप कहानी’; ‘फूलरानी’ और ‘बुद्धि विनोद’ (बाल-साहित्य), ‘महात्मा बुद्ध’ तथा ‘अशोक’ (जीवन-चरित) आदि।

साहित्य में स्थान–खड़ी बोली के कवियों में आपका प्रमुख स्थान है। अपनी सेवाओं द्वारा हिन्दी साहित्य के सच्चे सेवक के रूप में त्रिपाठी जी प्रशंसा के पात्र हैं। राष्ट्रीय भावों के उन्नायक के रूप में आप हिन्दी-साहित्य में अपना विशेष स्थान रखते हैं।