InterviewSolution
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भारत में सामाजिक विघटन से सम्बन्धित कुछ प्रमुख समस्याओं की विवेचना कीजिए।याभारत में सामाजिक अपराध की समस्याओं पर प्रकाश डालिए। |
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Answer» भारत में सामाजिक विघटन से सम्बन्धित समस्याओं को वैयक्तिक विघटन, पारिवारिक विघटन तथा सामुदायिक विघटन के आधार पर निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है– 1. वैयक्तिक विघटन से सम्बन्धित समस्याएँ-इन समस्याओं में प्रमुख हैं ⦁ समायोजन की समस्या–देश में भौतिक स्थितियाँ तेजी से बदल रही हैं। घर-घर में फ्रिज, कारें, टेलीविजन आदि देखने को मिलते हैं। परन्तु अभौतिक परिस्थितियों में बहुत कम परिवर्तन हुए हैं। अधिकांश लोग पुरानी रूढ़ियों, अन्धविश्वासों तथा धार्मिक मान्यताओं में जकड़े पड़े हैं। साधारण व्यक्ति भौतिक तथा अभौतिक स्थितियों में सामंजस्य स्थापित नहीं कर पा रहा। परिणामस्वरूप व्यक्ति चिन्ता, निराशा, अभाव व असुरक्षा से ग्रस्त हो गया है। 2. पारिवारिक विघटन सम्बन्धी समस्याएँ-हमारे देश में भौतिकवाद के प्रति झुकाव तथा संयुक्त परिवार के बिखराव के परिणामस्वरूप पारिवारिक विघटन सम्बन्धी अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं। परिवार में स्नेह, प्रेम, सहयोग, सद्भाव जैसे गुणों का अभाव होता जा रहा है, जो पारिवारिक विघटन का रूप ले रहा है। पारिवारिक विघटन निम्नलिखित समस्याओं को जन्म दे रहा है 3. सामुदायिक विघटन सम्बन्धी समस्याएँ-सामुदायिक विघटन वह स्थिति है जिसमें उसका स्वाभाविक जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है, उसमें असन्तुलन आ जाता है। सामुदायिक विघटन के कारक हैं-सामाजिक परिवर्तन, संघर्ष, व्यक्तिवाद, संस्थागत रूढ़िवादिता, राजनीतिक भ्रष्टाचार तथा गतिशीलता। सामुदायिक विघटन जो समस्याएँ उत्पन्न करता है, वे हैं-युद्ध व हिंसा, साम्प्रदायिकता, आतंकवाद, क्षेत्रवाद आदि। |
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सामाजिक विघटन अपराधों को कैसे जन्म देता है ?या“सामाजिक विघटन अपराध वृद्धि का प्रधान कारण है।” स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» अपराध सामाजिक विघटन का प्रधान कारण व परिणाम दोनों है। सामाजिक विघटन मनुष्य के आचरण पर पर्याप्त प्रभाव डालता है। विघटन के समय व्यक्ति अपने उत्तर:दायित्व को नहीं निभा पाते और अपने दायित्वों को दूसरे पर डालते रहते हैं। परिवार में सहयोग और सद्भावना के स्थान पर कलह का बोलबाला हो जाता है। परिणामस्वरूप बच्चों पर माता-पिता का नियन्त्रण शिथिल हो जाता है और उन्हें कम उम्र में ही कमाने के लिए भेज दिया जाता है। बच्चे बाहर रहकर बीड़ी, सिगरेट व शराब पीने, चोरी करने, जुआ खेलने आदि की बुरी आदतों को सीख लेते हैं और अपराध करने लगते हैं। |
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सामाजिक विघटन की परिभाषा दीजिए। भारत में पारिवारिक विघटन के कारणों का उल्लेख कीजिए।यासामाजिक विघटन की परिभाषा दीजिए।सामाजिक विघटन से पारिवारिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है भारत में पारिवारिक विघटन के प्रमुख कारण भी बताइए।यासामाजिक विघटन का पारिवारिक जीवन पर प्रभाव स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» सामाजिक विघटन की परिभाषाएँ विभिन्न विद्वानों ने सामाजिक विघटन को निम्न शब्दों में स्पष्ट करने का प्रयास किया है– फैरिस के अनुसार, “सामाजिक विघटन व्यक्तियों के बीच प्रकार्यात्मक सम्बन्धों के उस मात्रा में टूट जाने को कहते हैं जिससे समूह के स्वीकृत कार्यों को पूरा करने में बाधा पड़ती है।” थॉमस एवं नैनिकी के अनुसार, “सामाजिक विघटन समूह के सदस्यों पर से मौजूदा नियमों के प्रभाव का कम होना है।” लेमर्ट के अनुसार, “सामाजिक संस्थाओं एवं समूहों के बीच असन्तुलन तथा व्यापक संघर्ष पैदा हो जाने का नाम सामाजिक विघटन है।” पी० एच० लैंडिस के अनुसार, “सामाजिक विघटन में मुख्यतया सामाजिक नियन्त्रण का भंग होना होता है, जिससे अव्यवस्था और विभ्रम पैदा होता है।” लेपियर और फार्क्सवर्ग के अनुसार, “विघटन विशेष रूप से सामाजिक संरचना के अन्दर उत्पन्न हुए असन्तुलन की ओर संकेत करता है।” गिलिन और गिलिन के अनुसार, “सामाजिक विघटन से हमारा तात्पर्य सम्पूर्ण सांस्कृतिक ढाँचे के विभिन्न तत्त्वों के बीच ऐसा असन्तुलन उत्पन्न होना है जो समूह के अस्तित्व को ही खतरे में डाल देता है या समूह के सदस्यों की भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करने में इतनी गम्भीर बाधाएँ उत्पन्न करता है कि उससे सामाजिक एकता नष्ट हो जाती है।” भारत में पारिवारिक विघटन के कारण पारिवारिक विघटन के चार मुख्य कारण निम्नलिखित हैं। ⦁ औद्योगीकरण एवं नगरीकरण-औद्योगीकरण के कारण लोग रोजगार की तलाश में औद्योगिक नगरों की ओर पलायन कर रहे हैं। साथ-साथ नगरीय जीवन की चमक-दमक तथा आरामदायक जिन्दगी भी मनुष्यों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। ये दोनों ही पारिवारिक विघटन के मुख्य कारक हैं। ⦁ आर्थिक आत्मनिर्भरता के प्रति झुकाव-आज का नवयुवक वर्ग संयुक्त परिवार की आर्थिक व्यवस्था सहन नहीं कर पाता है। उसके विचारों की आर्थिक आत्मनिर्भरता तथा आर्थिक स्वतन्त्रता ने प्रमुख स्थान धारण कर लिया है। इस कारण भी पारिवारिक विघटन को बेल मिल रहा है। ⦁ द्वेष एवं कलह से मुक्ति-आज संयुक्त परिवारों का वातावरण बड़ा बोझिल हो गया है। सदस्यों के सम्बन्ध औपचारिक होते जा रहे हैं तथा आत्मीयता कम होती जा रही है। इस कारण भी पारिवारिक विघटन बढ़ रहा है। ⦁ व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के प्रति आकर्षण-अधिक सदस्य होने के कारण संयुक्त परिवार में नवविवाहित दम्पती को भी कई बार स्वतन्त्र रूप से मिलना कठिन होता है। फिर यहाँ कर्ता का स्थान इतना अधिक प्रमुख होता है कि प्रत्येक सदस्य अपने को पराधीन अनुभव करता है तथा स्वतन्त्रता के लिए लालायित रहता है। इस कारण भी पारिवारिक विघटन हो रहा है। ⦁ तलाक-सामाजिक विघटन के कारण पति अपनी पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण नहीं कर पाता, गरीबी तथा बेकारी के कारण उनमें मनमुटाव एवं संघर्ष पैदा होता है और वे परस्पर तलाक ले लेते हैं। ऐसी स्थिति में बच्चों का समुचित रूप से पालन नहीं हो पाता और वे बिगड़ जाते हैं। ⦁ अवैध सन्ताने-सामाजिक विघटन के कारण व्यक्तिगत स्वतन्त्रता व यौन-स्वच्छन्दता बढ़ जाती है, गरीबी एवं बेकारी के कारण स्त्रियाँ वेश्यावृत्ति अपनाने लगती हैं, इससे अवैध सन्ताने पैदा होने लगती हैं। ⦁ पॉरिवारिक तनाव एवं संघर्ष-सामाजिक विघटन के कारण पारिवारिक मूल्यों एवं आदर्शों को ह्रास हो जाता है, नियन्त्रण शिथिल हो जाता है; अतः परिवार में तनाव वे संघर्ष बढ़ जाता है। परिवार में पिता की सत्ता की अवहेलना होने लगती है, स्त्रियों में स्वच्छन्दता आ जाती है, बच्चे उद्दण्ड हो जाते हैं और आवारागर्दी करने लगते हैं। ये सभी स्थितियाँ परिवार में तनाव और संघर्ष पैदा करती हैं। |
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सामाजिक विघटन क्या है ? |
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Answer» सामाजिक विघटन का तात्पर्य सामाजिक व्यवस्था के टूट जाने अथवा सामाजिक संरचना के विभिन्न भागों में एकता के अभाव से है। |
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सामाजिक विघटन के कारण लिखिए।यासामाजिक विघटन के दो प्रमुख कारक बताइए। |
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Answer» सामाजिक विघटन के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं ⦁ सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तन, |
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सामाजिक विघटन का परिवार पर क्या प्रभाव पड़ता है ? |
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Answer» सामाजिक विघटन के कारण पारिवारिक मूल्यों एवं आदर्शों का ह्रास हो जाता है, नियन्त्रण शिथिल हो जाता है; अतः परिवार में तनाव व संघर्ष बढ़ जाता है। परिवार में पिता की सत्ता की अवहेलना होने लगती है, स्त्रियों में स्वच्छन्दता आ जाती है, बच्चे उद्दण्ड हो जाते हैं और आवारागर्दी करने लगते हैं। ये सभी स्थितियाँ परिवार में तनाव और संघर्ष पैदा करती हैं। |
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क्या भारतीय समाज (भारतीय सामाजिक जीवन) विघटित है ? |
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Answer» किसी भी समाज को विघटित कहें या नहीं, इसका मूल्यांकन उन तत्त्वों या लक्षणों की उपस्थिति और अनुपस्थिति के आधार पर किया जाना चाहिए जो विघटन को प्रकट करते हैं। वैसे तो संगठन और विघटन की थोड़ी-बहुत मात्रा सभी समाजों में मौजूद होती है। कोई भी समाज ने तो पूरी तरह संगठित ही होता है और न पूर्णतः विघटित ही। भारतीय समाज में भी विघटन की तीव्र गति अंग्रेजों के काल से प्रारम्भ हुई मानी जा सकती है। अंग्रेजों ने भारतीयों का आर्थिक शोषण किया, यहाँ के कुटीर उद्योगों को नष्ट कर दिया तथा भारतीय समाज व संस्कृति में अनेक पश्चिमी प्रथाओं, मूल्यों और विश्वासों को स्थापित किया। परिणामस्वरूप भारतीय अपनी मूल संस्कृति को त्यागने लगे। यदि हम गरीबी, बेकारी, वेश्यावृत्ति, मद्यपान, जुआ, डकैती, अपराध, बाल-अपराध, हड़ताल, प्रदर्शन, घेराव, तालाबन्दी, आतंकवादी गतिविधियाँ, तोड़फोड़, हत्या आदि के आँकड़ों पर एक नजर डालें तो पाएँगे कि इनमें दिनोंदिन वृद्धि हुई है। तलाक एवं विघटित परिवारों की संख्या बढ़ी है। जातिवाद, साम्प्रदायिकता, भाषावाद, क्षेत्रवाद व भ्रष्टाचार में वृद्धि हुई है; नैतिकता और राष्ट्रीय चरित्र में गिरावट आयी है। राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, सांस्कृतिक सभी क्षेत्रों में ह्रास हुआ है और हम अध्यात्मवाद से परे हटकर दिनोंदिन भौतिकवादी होते जा रहे हैं। |
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आत्महत्या किस प्रकार का विघटन है ?यावैयक्तिक विघटन क्या है ? इसकी पराकाष्ठा स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» सामाजिक विघटन न केवल समुदाय तथा पारिवारिक जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि व्यक्तिगत जीवन को भी प्रभावित करता है। सामाजिक विघटन अपराधों को जन्म देता है। जब समाज में बेकारी, निर्धनता, महँगाई और अपराधों में वृद्धि हो जाती है तो व्यक्ति के विघटन की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं। व्यक्ति के विघटन की अभिव्यक्ति अपराध, मद्यपान, वेश्यावृत्ति व भ्रष्टाचार के रूप में होती है। आत्महत्या व्यक्तिगत विघटन की चरम सीमा होती है। |
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“सामाजिक विघटन एक प्रक्रिया है।” हाँ या नहीं में लिखिए। |
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Answer» हाँ सामाजिक विघटन एक प्रक्रिया है। |
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सामाजिक विघटन क्या है? परिभाषित कीजिए। |
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Answer» सामाजिक विघटन क्या है? प्रत्येक समाज में व्यवस्था एवं संगठन पाया जाता है। सभी समाजों में व्यक्ति अपने पूर्व-निश्चित पदों के अनुरूप भूमिका निभाते हैं, नियन्त्रण की व्यवस्था का पालन करते हैं और उद्देश्यों में साम्यता एवं एकमत्य पाया जाता है, किन्तु नवीन परिवर्तनों एवं अन्य कारणों से जब समाज की एकता नष्ट होने लगती है, नियन्त्रण व्यवस्था शिथिल होने लगती है, समाज में तनाव और संघर्ष बढ़ जाता है, लोगों में निराशा बढ़ जाती है और पारस्परिक अविश्वास पैदा हो जाता है, समाज में अस्थिरता और विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं, तब सामूहिक जीवन नष्ट होने लगता है, तो इस स्थिति को हम सामाजिक विघटन कहते हैं। सामाजिक विघटन सामाजिक संगठन की विपरीत स्थिति है। अन्य शब्दों में, सामाजिक विघटन का तात्पर्य व्यवस्था के टूट जाने अथवा सामाजिक संरचना के विभिन्न भागों में एकता के अभाव से है। इलियट एवं मैरिल के अनुसार, “सामाजिक विघटन वह प्रक्रिया है, जिसमें एक समूह के सदस्यों के बीच सामाजिक सम्बन्ध टूटते अथवा नष्ट हो जाते हैं।” |
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निम्नलिखित में से कौन-सा सामाजिक विघटन का लक्षण है ? (क) एकमत्य का ह्रास(ख) जनसंख्या में वृद्धि(ग) संस्कृतियों का आत्मसात होना(घ) लोगों की प्रवासी प्रवृत्ति |
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Answer» (क) एकमत्य का ह्रास |
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निम्नलिखित में कौन-सा सामाजिक विघटन का लक्षण है ? (क) दो मित्रों में संघर्ष(ख) परिवार का बिगड़ता स्वरूप(ग) देश में बाढ़ आना(घ) देश में गरीबी |
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Answer» सही विकल्प है (ख) परिवार का बिगड़ता स्वरूप |
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पारसन्स के अनुसार सामाजिक विघटन का प्रमुख लक्षण क्या है ? |
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Answer» पारसन्स ने प्रस्थिति तथा भूमिका की अनिश्चितता को सामाजिक विघटन का एक प्रमुख लक्षण माना है। उनका मानना है कि जहाँ समाज के अधिकतर व्यक्तियों की प्रस्थितियों और भूमिकाओं के बीच असन्तुलन पाया जाता है, वहाँ सामाजिक विघटन की दशा पायी जाती है। इस असन्तुलन के कारण सामाजिक संस्थाओं और उसके सदस्यों के बीच सामंजस्य स्थापित नहीं हो पाता। |
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सामाजिक मूल्यों में ह्रास’ किस प्रकार सामाजिक विघटन का मुख्य लक्षण है ? |
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Answer» क्षेत्रवाद, सम्प्रदायवाद, भ्रष्टाचार आदि सामाजिक हास की दशाएँ हैं, जो कि सामाजिक विघटन का मुख्य लक्षण हैं। |
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सामाजिक विघटन के कारक के रूप में सांस्कृतिक सिद्धान्त क्या है ? |
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Answer» सांस्कृतिक सिद्धान्त के मानने वालों में अमेरिकी समाजशास्त्री ऑगबर्न प्रमुख हैं। इस सिद्धान्त के समर्थकों का मत है कि जब संस्कृति के विभिन्न अंगों में असन्तुलन पैदा होता है। तो समाज में भी विघटन उत्पन्न होता है। जब भौतिक संस्कृति में तीव्र गति से परिवर्तन होते हैं। |
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सामाजिक विघटन के कारक के रूप में सामाजिक संकट की क्या भूमिका है ? |
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Answer» समूह तथा समाज के सहज रूप में संचालन में बाधा उपस्थित होना ही सामाजिक संकट कहलाता है। संकट दो प्रकार के हो सकते हैं-आकस्मिक संकट तथा संचयी संकट। आकस्मिक संकट वे संकट हैं, जो समाज में अचानक उत्पन्न होते हैं। जैसे-बाढ़, भूचाल, अकाल, महामारी, युद्ध, महत्त्वपूर्ण नेता की मृत्यु आदि। ये आकस्मिक संकट को जन्म देते हैं। दूसरी ओर संचयी संकट धीरे-धीरे एकत्रित होते रहते हैं और एक समय ऐसा भी आता है कि वे समाज के संचालन में बाधा पैदा करने लगते हैं। संकट चाहे किसी भी प्रकार का हो, समाज में विघटन उत्पन्न करने के लिए उत्तर:दायी है। |
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सामाजिक विघटन के कारक के रूप में औद्योगीकरण की क्या भूमिका है ?याऔद्योगीकरण सामाजिक विघटन को कैसे बढ़ावा देता है? |
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Answer» उत्पादन के क्षेत्र में मशीनों के प्रयोग ने औद्योगीकरण को जन्म दिया और औद्योगीकरण ने पूँजीवाद, साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद को। औद्योगीकरण के कारण उत्पादन बड़ी-बड़ी मशीनों से होने लगता है, कुटीर उद्योग नष्ट हो जाते हैं, छोटे उत्पादक श्रमिक बन जाते हैं, औद्योगिक केन्द्रों में हजारों की संख्या में मजदूर रहने लगते हैं, जिससे गन्दी बस्तियों का निर्माण होता है। मजदूर अपनी मांगों को मनवाने के लिए हड़ताल, तोड़फोड़ व घेराव करते हैं। पूँजीपति मजदूरों का शोषण करते हैं, इससे गरीबी बढ़ती है। मशीनों की सहायता से बड़ी मात्रा में तीव्र गति से उत्पादन होने से बाजारों में माल भर जाता है। गरीबी के कारण उसे खरीदने वाले ग्राहक नहीं मिलते; अतः पूँजीपतियों को कारखानों को बन्द कर देना पड़ता है। इससे आर्थिक संकट और तनाव बढ़ता है। इस प्रकार की स्थिति समाज में विघटन उत्पन्न करती है। |
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सामाजिक विघटन के कारक के रूप में युद्ध की क्या भूमिका है ? |
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Answer» सामाजिक विघटन के लिए युद्ध प्रमुख रूप से उत्तर दायी है। युद्धकाल में जन-धन की हानि होती है, वस्तुओं की कमी के कारण महँगाई बढ़ने लगती है, उत्पादन एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार बन्द हो जाता है, बेकारी और गरीबी फैलती है, वेश्यावृत्ति पनपती है तथा बाल-अपराध और बढ़ जाते हैं, स्त्रियाँ विधवा और बच्चे अनाथ हो जाते हैं, परिवार एवं विवाह-सम्बन्ध टूट जाते हैं, नियमहीनता पैदा हो जाती है और समाज अनेक सामाजिक व आर्थिक समस्याओं से ग्रसित हो जाता है। दो विश्व युद्धों से यूरोप में ऐसी ही स्थिति हो गयी थी, जिसे हम सामाजिक विघटन के रूप में चित्रित कर सकते हैं। |
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सामाजिक विघटन की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए इसके प्रमुख प्रकार बताइए।यासामाजिक विघटन क्या है? इसके प्रमुख स्वरूपों की विवेचना कीजिए। |
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Answer» सामाजिक विघटन की अवधारणा प्रत्येक समाज की संरचना में बहुत-से छोटे-बड़े समूहों, संस्थाओं तथा सदस्यों की अन्तक्रियाओं का योगदान रहता है। इनमें से प्रत्येक समूह तथा संस्था के अपने-अपने कुछ पूर्व-निर्धारित प्रकार्य होते हैं। यह प्रकार्य व्यक्ति को अपनी स्थिति के अनुरूप भूमिका निभाने की प्रेरणा ही नहीं देते बल्कि सामाजिक व्यवस्था की उपयोगिता को भी बनाये रखते हैं। किन्हीं विशेष परिस्थितियों में जब सामाजिक संरचना इस तरह टूट जाती है कि इसकी एक इकाई दूसरी की पूरक नहीं रह जाती, अथवा उसके कार्यों में बाधा डालने लगती है तो सामाजिक व्यवस्था में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। यही स्थिति सामाजिक विघटन की स्थिति होती है। अध्ययन की सरलता के लिए इस स्थिति को एक उदाहरण की सहायता से समझा जा सकता है। प्राणी की शरीर-रचना सावयवी व्यवस्था का एक सुन्दर उदाहरण है। इस व्यवस्था का निर्माण अनेक छोटे-बड़े अंगों, नाड़ी-व्यवस्था, रक्त संचालन तथा चयापचय की प्रक्रिया के द्वारा होता है। सावयवी व्यवस्था के अन्तर्गत इनमें से कोई भी इकाई यदि अपना कार्य करना बन्द कर दे अथवा दूसरे अंगों की क्रियाशीलता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने लगे तो सम्पूर्ण शरीर अस्वस्थ हो जाता है। इस स्थिति को हम सावयवी विघटन कहते हैं। सामाजिक विघटन क्या है? प्रत्येक समाज में व्यवस्था एवं संगठन पाया जाता है। सभी समाजों में व्यक्ति अपने पूर्व-निश्चित पदों के अनुरूप भूमिका निभाते हैं, नियन्त्रण की व्यवस्था का पालन करते हैं और उद्देश्यों में साम्यता एवं एकमत्य पाया जाता है, किन्तु नवीन परिवर्तनों एवं अन्य कारणों से जब समाज की एकता नष्ट होने लगती है, नियन्त्रण व्यवस्था शिथिल होने लगती है, समाज में तनाव और संघर्ष बढ़ जाता है, लोगों में निराशा बढ़ जाती है और पारस्परिक अविश्वास पैदा हो जाता है, समाज में अस्थिरता और विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं, तब सामूहिक जीवन नष्ट होने लगता है, तो इस स्थिति को हम सामाजिक विघटन कहते हैं। सामाजिक विघटन सामाजिक संगठन की विपरीत स्थिति है। अन्य शब्दों में, सामाजिक विघटन का तात्पर्य व्यवस्था के टूट जाने अथवा सामाजिक संरचना के विभिन्न भागों में एकता के अभाव से है। सामाजिक विघटन के प्रकार अथवा स्वरूप सामाजिक विघटन के प्रकार या स्वरूप निम्नलिखित होते हैं 1. वैयक्तिक विघटन-वैयक्तिक विघटन में व्यक्ति विशेष का विघटन होता है। इसके अन्तर्गत बाल-अपराध, युवा अपराध, पागलपन, मद्यपान, वेश्यावृत्ति, आत्महत्या आदि की समस्याओं को सम्मिलित किया जाता है। यदि किसी समाज में वैयक्तिक विघटन की दर बढ़ जाती है तो वह समाज भी विघटित होने लगता है। 2. पारिवारिक विघटन-जब पति-पत्नी और परिवार के अन्य लोगों के सम्बन्धों में तनाव चरम सीमा पर पहुँच जाता है तो पारिवारिक विघटन आरम्भ हो जाता है। पारिवारिक विघटन में तलाक, अनुशासनहीनता, गृहकलह, पृथक्करण आदि समस्याओं का समावेश होता है। ये समस्याएँ परिवार के स्वरूप एवं विघटन को ही बल देती हैं। 3. सामुदायिक विघटन-जब सम्पूर्ण समुदाय में विघटन की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है तो वह सामुदायिक विघटन कहलाता है। सामुदायिक विघटन में बेकारी, निर्धनता, राजनीतिक भ्रष्टाचार तथा अत्याचार जैसी समस्याओं का समावेश रहता है। 4. अन्तर्राष्ट्रीय विघटन-जब अन्तर्राष्ट्रीय नियमों के विरुद्ध राष्ट्र आचरण करने लगते हैं तो अन्तर्राष्ट्रीय विघटन प्रारम्भ हो जाता है। बड़े एवं शक्तिशाली राष्ट्र, छोटे एवं कमजोर राष्ट्रों को हड़पने का प्रयास करने लगते हैं। साम्राज्यवाद, क्रान्ति, आक्रमण, युद्ध तथा सर्वाधिकारवाद इसके उदाहरण हैं। |
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सामाजिक विघटन के प्रजातीय सिद्धान्त के प्रमुख प्रतिपादक कौन हैं ? |
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Answer» सामाजिक विघटन के प्रजातीय सिद्धान्त के प्रमुख प्रतिपादक गोबिन्यू हैं। |
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सामाजिक विघटन के सांस्कृतिक सिद्धान्त को मानने वाले प्रमुख समाजशास्त्री कौन हैं ? |
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Answer» सामाजिक विघटन के सांस्कृतिक सिद्धान्त को मानने वाले प्रमुख समाजशास्त्री ऑगबर्न हैं। |
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निम्नलिखित में कौन-सा सामाजिक विघटन का लक्षण नहीं है ?(क) सामाजिक ढाँचे में परिवर्तन(ख) व्यक्तिवादिता(ग) पति-पत्नी में तनाव(घ) सामाजिक परिवर्तन की तीव्र गति |
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Answer» (ग) पति-पत्नी में तनाव |
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सामाजिक विघटन के सामान्य कारक ‘सामाजिक मनोवृत्तियों में परिवर्तन के विषय में थॉमस एवं नैनिकी का क्या मत है? |
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Answer» थॉमस एवं नैनिकी का मत है कि जब सामाजिक मनोवृत्तियों में परिवर्तन होता है तो सामाजिक विघटन उत्पन्न होता है। |
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वैयक्तिक विघटन से क्या अभिप्राय है? इसके प्रमुख स्वरूपों की विवेचना कीजिए।यावैयक्तिक विघटन किसे कहते हैं? इसका प्रभाव लिखिए |
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Answer» वैयक्तिक विघटन व्यक्ति के जीवन संगठन का अव्यवस्थित होना ही वैयक्तिक विघटन है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति के व्यक्तित्व का समाज की मान्यताओं के अनुरूप विकास नहीं हो पाता है। इस प्रकार का असन्तुलित व्यक्तित्व ही वैयक्तिक विघटन के लिए उत्तर:दायी है। वैयक्तिक विघटन वह स्थिति है जिसमें असन्तुलित व्यक्तित्व के कारण व्यक्ति समाज द्वारा मान्य व्यवहार-प्रतिमानों के विपरीत आचरण करता है। वैयक्तिक विघटन को परिभाषित करते हुए इलियट और मैरिल ने लिखा है, “समाज के नियमों एवं समाज के साथ तादात्मीकरण न होना ही वैयक्तिक विघटन है।” माउरर के अनुसार, “सभी वैयक्तिक विघटन व्यक्ति के उन आचरणों का प्रतिनिधित्व करता है, जो संस्कृति द्वारा स्वीकृत आदर्श प्रतिमान से इतना अधिक विचलित होते हैं कि उन्हें सामाजिक दृष्टि से अमान्य माना जाता है।” लेमर्ट ने बताया कि वैयक्तिक विघटन वह दशा या प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अपनी मुख्य भूमिका के चारों ओर अपने व्यवहार को सुस्थिर नहीं कर पाता है। उसकी भूमिका के चुनाव की प्रक्रिया में संघर्ष या भ्रम बना रहता है। ऐसा विघटन कुछ समय के लिए भी हो सकता है और निरन्तर भी बना रह सकता है। उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि ⦁ वैयक्तिक विघटन व्यक्ति के व्यक्तित्व की असन्तुलित अवस्था है, वैयक्तिक विघटन सम्बन्धित स्वरूप-यहाँ हम वैयक्तिक विघटन के उन स्वरूपों पर ही विचार करेंगे जो प्रमुखतः सामाजिक कारकों के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं। जब व्यक्ति के जीवनसंगठन का विघटन होता है तो उसका प्रकटीकरण बाल-अपराध, अपराध, यौन-अपराध, मद्यपान, पागलपन और आत्महत्या के रूप में होता है। इलियट और मैरिल ने बताया है कि वैयक्तिक विघटने के स्वरूप, एक अथवा दूसरे प्रकार से, व्यक्तियों के सन्तोषप्रद जीवन-संगठन को प्राप्त करने की असमर्थता को व्यक्त करते हैं। ऐसे व्यक्ति अनेक कारणों से समूह की अपेक्षाओं के अनुरूप भूमिकाएँ अदा करने में असमर्थ रहते हैं। परिणामस्वरूप उनका जीवन-संगठन असन्तुलित हो जाता है और वैयक्तिक विघटन की स्थिति उत्पन्न होती है। जब परिस्थितियाँ व्यक्तियों को उन कार्यों को करने को बाध्य कर देती हैं जिनके लिए वे शारीरिक एवं स्वभावगत रूप से अयोग्य हैं। तो ऐसी स्थिति में उनके व्यक्तित्व विघटित हो जाते हैं। 1. सृजनात्मक व्यक्तित्व-प्रायः व्यक्ति की अति-संवेदनशीलता उसे ऐसे कार्य करने को प्रोत्साहित करती है, जो सामान्य लोगों को स्वीकार नहीं होते। ऐसी स्थिति में व्यक्ति की सृजनात्मकता उसके वैयक्तिक विघटन का कारण बन जाती है। जब इस प्रकार के व्यक्तियों को समाज द्वारा किसी प्रकार की मान्यता प्राप्त नहीं होती तो अति संवेदनशीलता के कारण इनके अहम् को चोट लगती है, गहरा मानसिक आघात लगता है तथा ये अपने आप को अकेला, उदासीन व निराश पाते हैं। इनमें अलगाव की भावना उत्पन्न हो जाती है। परिणामस्वरूप ऐसे व्यक्तियों को वैयक्तिक जीवन विघटित हो जाता है। इन लोगों में शिक्षाशास्त्री, साहित्यकार, संगीतकार, कलाकार, लेखक और समाज-सुधारक प्रमुख हैं। इनको तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है- ⦁ सुधारक, 2. व्याधिकीय व्यक्तित्व-व्याधिकीय व्यक्तित्व के अन्तर्गत उन लोगों को सम्मिलित किया जाता है जो शारीरिक दुर्बलताओं, मानसिक कमियों या दोषों अथवा स्नायविक विचार के कारण वैयक्तिक विघटने का शिकार बनते हैं। शारीरिक दोषों; जैसे-अंग-भंग, अन्धेपन, बहरेपन, लंगड़ेपन के कारण कई बार व्यक्ति अन्य लोगों के साथ सहजभाव से अनुकूलन नहीं कर पाता। इस दशा में उसे अन्य लोगों से प्रेम और स्नेह नहीं मिल पाता तथा वह मानसिक असुरक्षा अनुभव करता है। ऐसी स्थिति में उसके व्यक्तित्व का सामान्य विकास रुक जाता है तथा वह हीन-भावना से ग्रसित हो जाता है। इस दशा में वह समाज के आदर्श-प्रतिमानों के विपरीत आचरण करने लगता है तथा वह समाज-विरोधी कार्य करने से भी नहीं चूकता। परिणामस्वरूप उसका वैयक्तिक विघटन हो जाता है। |
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सामाजिक विघटन (परिवर्तन) से आप क्या समझते हैं ? सामाजिक विघटन के लक्षणों एवं कारणों (कारकों) की विवेचना कीजिए। यासामाजिक विघटन से आप क्या समझते हैं ? सामाजिक संगठन और सामाजिक विघटन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।यासामाजिक विघटन से क्या आशय है? इसके प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिए। यासामाजिक विघटन सामाजिक जीवन को कैसे प्रभावित करता है?याभारत में सामाजिक विघटन के कारणों पर प्रकाश डालिए।याविघटन को परिभाषित करते हुए इसके कुप्रभावों की चर्चा कीजिए।यासामाजिक विघटन को परिभाषित कीजिए तथा इसके प्रमुख कारणों का उल्लेख कीजिए। यासामाजिक विघटन के चार लक्षणों का उल्लेख कीजिए।यासामाजिक विघटन के आर्थिक कारकों की व्याख्या कीजिए।यासामाजिक विघटन, विखण्डित परिवार के साथ एक सापेक्षिक अवधारणा है। व्याख्या करें। |
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Answer» सामाजिक विघटन का अर्थ समाज के दो पहलू हैं-संगठन और विघटन। समाज की व्यवस्था और एकरूपता को संगठन कहा जाता है। संगठन के अभाव में समाज का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है। जब समाज के सदस्य सामाजिक नियमों का पालन करते हुए अपनी भूमिका ठीक से निभाते हैं, तो सामाजिक नियन्त्रण बना रहता है। विघटन शब्द टूटने का बोधक है। जैसे ही समाज की संस्थाओं और समूहों के बीच सम्बन्ध टूटते हैं, वैसे ही संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसी अपघटन को विघटन कहा जाता है। सामाजिक विघटन के लक्षण अथवा दशाएँ सामाजिक विघटन के मुख्य लक्षण या दशाएँ निम्नलिखित हैं| 1. रूढ़ियों और संस्थाओं में संघर्ष-रूढ़ियाँ और संस्थाएँ समाज के संगठन को बनाये रखने में सक्षम होती हैं। जैसे ही रूढ़ियों और संस्थाओं में संघर्ष प्रारम्भ होता है वैसे ही समाज का ढाँचा छिन्न-भिन्न होने लगता है। यही प्रक्रिया सामाजिक विघटन को जन्म देती है। भारत में परिवार, विवाह, धर्म और संस्थाओं के स्वरूप में होने वाला परिवर्तन सामाजिक विघटन का प्रमाण है। 2. प्राचीन और नवीन पीढियों में संघर्ष-सामाजिक परिवर्तन के फलस्वरूपं सामाजिक मूल्य, नैतिक आदर्श और धर्म की मान्यताएँ बदलने लगती हैं। प्राचीन पीढ़ी परम्परावादी तथा नयी पीढ़ी प्रगतिवादी होने के कारण इनमें संघर्ष हो जाता है। पीढ़ियों का यह संघर्ष सामाजिक विघटन को जन्म देता है। भारतीय समाज में प्रेम-विवाह, दूसरी जातियों में विवाह वे जाति पंचायतों का घटता महत्त्व सामाजिक विघटन के प्रतीक हैं। 3. समितियों के कार्यों का पारस्परिक हस्तान्तरण-समाज में समितियों के कार्य एवं कर्तव्य निर्धारित थे, परन्तु परिवर्तन के कारण समितियों के कार्य दूसरी समितियों को हस्तान्तरित हो गये हैं। परिवार के गौण कार्य विद्यालय, मन्दिर व अस्पतालों को हस्तान्तरित होने से सामाजिक विघटन प्रारम्भ हो गया है। 4. व्यक्तिवाद का बोलबाला-समाज में जब ‘हम’ के स्थान पर ‘मैं’ की भावना बलवती हो जाती है तब व्यक्तिवाद का नाग फन उठा लेता है, जो सामूहिक हित और कल्याण की भावना को डस लेता है। भौतिकवाद की चकाचौंध ने व्यक्तिवाद को जन्म देकर सामाजिक विघटन को बढ़ावा दिया है। 5. अपराधों में वृद्धि-सामाजिक विघटन को ज्वलन्त प्रमाण है समाज में अपराधों का बढ़ जाना। बाल-विवाह, हत्या, यौन शोषण, वेश्यावृत्ति, बलात्कार, आत्महत्या, तलाक, भ्रष्टाचार, नशाखोरी आदि अपराध सामाजिक विघटन के कारण जन्म लेते हैं। 6. सामाजिक समस्याओं का उदय-सामाजिक विघटन सामाजिक समस्याओं के उदय का द्योतक है। जिस समाज में दहेज-प्रथा, बाल-विवाह, परदा-प्रथा, निर्धनता, बेरोजगारी, भिक्षावृत्ति तथा अत्यधिक जनसंख्या जैसी समस्याएँ मुँह बाये खड़ी हों, वहाँ समझ लेना चाहिए कि समाज सामाजिक विघटन की प्रक्रिया से गुजर रहा है। 7. परिस्थिति और भूमिका में अस्पष्टता-सामाजिक विघटन की प्रक्रिया के फलस्वरूप सदस्यों की परिस्थिति तथा भूमिका अस्पष्ट हो जाती है। इस प्रकार सदस्यों और संस्थाओं के मध्य सामंजस्य स्थापित न हो पाने के कारण सामाजिक विघटन को बढ़ावा मिलता है। 8. एकमत का अभाव-समाज के सदस्यों के मत में जब सार्वजनिक प्रश्नों पर एकमत का अभाव हो जाए तभी सामाजिक विघटन होने को सत्य मान लेना चाहिए। मार्टिन न्यूमेयर के शब्दों में, “जब एकमत व उद्देश्यों की एकता समाप्त हो जाती है, तब समाज में सामाजिक विघटन प्रारम्भ हो जाता है। ऐसी स्थिति में सामाजिक समस्याओं का हल एकमत होकर नहीं खोजा जा सकता। सामाजिक विघटन के कारण सामाजिक विघटन के लिए निम्नलिखित कारण उत्तर:दायी हैं 1. सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तन-समाज में होने वाले सामाजिक परिवर्तन भी सामाजिक विघटन का स्रोत हो सकते हैं। सामाजिक परिवर्तन के कारण व्यक्ति नये सांस्कृतिक मूल्यों को अपनाता है। इन मूल्यों को अपनाने से उसकी आदतें, रहन-सहन व जीवन-पद्धति बदलने लगती है। कई बार इससे समाज के प्राचीन व नवीन मूल्यों में संघर्ष की स्थिति पैदा हो जाती है, जिसके कारण सामाजिक विघटन को प्रोत्साहन मिलता है। 2. सामाजिक मनोवृत्तियाँ-सामाजिक मनोवृत्तियाँ या दृष्टिकोण भी सामाजिक विघटन का कारण होते हैं। इलियट तथा मैरिल के अनुसार, समाज के सदस्यों में सामाजिक घटनाओं के प्रति अलग-अलग दृष्टिकोण भी सामाजिक विघटन लाते हैं। सामाजिक दृष्टिकोण व्यक्तिगत चेतना की वह प्रक्रिया है जो व्यक्ति की सामाजिक संसार में वास्तविक या सम्भावित क्रिया को निश्चित करती है। प्राचीन और नवीन पीढ़ी में संघर्ष कई बार दृष्टिकोण में भिन्नता के कारण ही होता है, जो सामाजिक विघटन लाता है। अत: नवीन व प्राचीन दृष्टिकोणों में संघर्ष की स्थिति सामाजिक विघटन लाती है 3. सामाजिक मूल्य-सामाजिक मूल्यों का हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। जब व्यक्तिगत दृष्टिकोण व सामाजिक मूल्यों में अनुरूपता नहीं रहती अथवा इनमें सामंजस्य समाप्त हो जाता है, तो विघटन की स्थिति पैदा हो जाती है। मूल्य वे सामाजिक तथ्य होते हैं जो हमारे लिए कुछ अर्थ रखते हैं और जिन्हें जीवन की योजना के लिए हम महत्त्वपूर्ण समझते हैं। इन मूल्यों के बिना हम सामाजिक संगठन की कल्पना नहीं कर सकते हैं। 4. सामाजिक संकट-सामाजिक संकट भी समाज के सामान्य कार्यों में बाधा उत्पन्न करता है और इस प्रकार विघटन को प्रोत्साहन मिलता है। संकट से रीति-रिवाजों द्वारा संचालन में बाधा उत्पन्न हो जाती है और संघर्ष व विघटन की स्थिति विकसित हो जाती है। सामाजिक संकट के दो प्रमुख रूप हैं-आकस्मिक संकट तथा संचयी संकट। आकस्मिक संकट समाज में अचानक उत्पन्न होने वाला संकट है। प्राकृतिक प्रकोप (जैसे-अकाल, महामारी, बीमारी इत्यादि), आकस्मिक दुर्घटनाएँ (जैसे-रेल दुर्घटना, बाढ़ इत्यादि) तथा किसी महान् नेता की मृत्यु आदि ऐसे संकटों को प्रोत्साहन देते हैं। आकस्मिक संकट ऐसा परिवर्तन लाता है जिसके साथ व्यक्ति सामंजस्य स्थापित नहीं रख पाते और इस प्रकार इससे विघटन को प्रोत्साहन मिलता है। संचयी संकट समाज में धीरे-धीरे उत्पन्न होने वाला संकट है। जातिवाद, साम्प्रदायिकता, धार्मिकता इत्यादि संचयी संकट के उदाहरण हैं, जो पारिवारिक तनाव व विघटन को प्रोत्साहन देते हैं। 5. युद्ध-सामाजिक विघटन लाने में युद्ध का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। इलियट तथा मैरिल ने युद्ध को सामाजिक विघटन का तीव्रतम स्वरूप बताया है। युद्ध में सामाजिक व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है तथा अनेक सामाजिक बुराइयों में समस्याओं का जन्म होता है जिनसे सामाजिक विघटन पैदा हो जाता है। 6. आर्थिक कारण-सामाजिक विघटन लाने में आर्थिक कारकों का भी महत्त्वपूर्ण हाथ होता है। निम्नलिखित प्रमुख आर्थिक कारण सामाजिक विघटन को प्रोत्साहन देते हैं (अ) औद्योगीकरण-औद्योगीकरण उद्योगों के विकास की एक प्रक्रिया है, जिसके परिणामस्वरूप यान्त्रिकी, यातायात व संचार साधनों तथा कृषि की तकनीक में बड़ी तीव्रता से परिवर्तन होते हैं। ये परिवर्तन भी कई बार व्यक्तिगत तथा पारिवारिक विघटन को प्रोत्साहन देकर सामाजिक विघटन लाते हैं। (ब) बेरोजगारी-बेरोजगारी भी सामाजिक विघटन का एक प्रमुख आर्थिक कारण है। बेरोजगार व्यक्ति जब वैधानिक ढंग से रोजगार की सुविधाएँ प्राप्त नहीं कर पाते तो वे मनमाना व्यवहार करने लगते हैं और समाज की प्रथाओं से उनकी सहानुभूति समाप्त होने लगती है। उनमें मानसिक तनाव अधिक हो जाता है। ये सभी परिस्थितियाँ बेकार लोगों को विघटन के द्वार पर पहुँचा देती हैं। (स) औद्योगिक बीमारियाँ एवं श्रम-समस्याएँ-औद्योगीकरण अनेक प्रकार की समस्याओं एवं बीमारियों में भी वृद्धि कर देता है। इनसे पहले व्यक्तिगत विघटने होता है, फिर पारिवारिक विघटन होता है और बाद में सामाजिक विघटन की स्थिति आ जाती है। श्रम-समस्याएँ भी सामाजिक विघटन को प्रोत्साहन देती हैं। (द) निर्धनता-निर्धनता भी सामाजिक विघटन का एक कारण है। जब निर्धन व्यक्तियों की आवश्यकताएँ पूरी नहीं हो पातीं तो बहुत-से लोग मानसिक असन्तुलन का शिकार हो जाते हैं या गैर-कानूनी तरीकों से अपनी आवश्यकताएँ पूरी करने का प्रयास करते हैं। इससे भी सामाजिक विघटन की स्थिति को प्रोत्साहन मिलता है। 7. धार्मिक कारण-धार्मिक कारणों से भी सामाजिक विघटन होता है। धार्मिक मान्यताएँ नवीन परिवर्तनों के अनुकूल नहीं रह पातीं तो तनावपूर्ण स्थिति हो जाती है, जो संघर्ष तथा विघटन को उत्पन्न करती है। अनेक बार धर्म सामाजिक परिवर्तनों को प्रोत्साहन देने लगता है अथवा इसका विरोध करने लगता है, तो भी संघर्षपूर्ण स्थिति पैदा हो जाती है और सामाजिक विघटन को प्रोत्साहन मिलता है। 8. राजनीतिक कारण-राजनीतिक अस्थिरता, गुटबन्दी, सत्ता का कुछ व्यक्तियों या समूहों सामाजिक विघटन का सामाजिक जीवन पर प्रभाव सामाजिक विघटन सामाजिक जीवन के विभिन्न पक्षों को प्रभावित करता है। सामाजिक विघटन से प्रभावित होने वाले प्रमुख पक्ष निम्नलिखित हैं 1. मानव के आचरण पर प्रभाव-सामाजिक विघटन मानव के आचरण पर पर्याप्त प्रभाव डालता है। विघटन के समय एक ओर, व्यक्ति अपने उत्तर:दायित्व को नहीं निभाते और अपने दायित्वों को दूसरे पर डालने लगते हैं तथा दूसरी ओर, अपने अधिकारों .. की अधिक-से-अधिक माँग करते हैं। सहयोग और सद्भावना के स्थान पर कलह का बोलबाला हो जाता है। आत्महत्या, अपराध, व्यभिचार, मद्यपान आदि सामाजिक विघटन के व्यक्तिगत परिणाम हैं। 2. नैतिक स्तर पर प्रभाव-सामाजिक विघटन का समाज के नैतिक स्तर पर भी प्रभाव पड़ता है। जिसे समाज में विघटन प्रारम्भ हो जाता है, उसके सदस्य अपने स्वार्थ के लिए नैतिकता की बलि दे डालते हैं। समाज में चोरी करना, रिश्वत लेना, अपहरण तथा डकैती एक आम बात हो गयी है। समाज के प्राचीन रीति-रिवाज भी लुप्त होने लगते हैं। व्यक्ति को उचित व अनुचित का ध्यान नहीं रहता और उनकी वृत्ति पापमयी हो जाती है। 3. धार्मिक व्यवस्था पर प्रभाव-धर्म समाज में व्यक्तियों को एक सूत्र में बाँधने का काम करता है, परन्तु धार्मिक परिवर्तनों ने व्यक्तियों के परस्पर सम्बन्धों को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। गिलिन तथा गिलिन के अनुसार, “धर्म के क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन व्यक्ति और धार्मिक समस्याओं में पाये जाने वाले मान्यता प्राप्त सम्बन्ध को प्रभावित करते हैं।” 4. राजनीतिक संस्थाओं पर प्रभाव-राजनीतिक संस्थाओं के विघटित हो जाने पर व्यक्तियों को अपने अधिकार प्राप्त नहीं होते और उनका जीवन भी सुरक्षित नहीं रह पाता है। राजनीतिक संस्थाओं पर अधिकार रखने वाले व्यक्ति समाज-हित की उपेक्षा कर अपने लाभ के कार्यों में लग जाते हैं। प्रत्येक राजनीतिक संस्था में भ्रष्टाचार का बोलबाला हो जाता है और जनसाधारण की स्वतन्त्रता समाप्त हो जाती है। सामाजिक विघटन के परिणामस्वरूप राजनीतिक अस्थिरता भी आ जाती है। 5. शिक्षा-व्यवस्था पर प्रभाव-सामाजिक विघटन होने पर शिक्षा-व्यवस्था भी भ्रष्ट हो जाती है और उसका स्वरूप उद्देश्यहीन हो जाता है। अध्यापक अपने पवित्र कर्तव्य को भूल जाते हैं और अध्यापन की अपेक्षा व्यक्तिगत स्वार्थ को महत्त्व देने लग जाते हैं। छात्र भी अध्ययन में रुचि न लेकर कर्तव्यहीन हो जाते हैं तथा हर स्थान पर अनुशासनहीनता का वातावरण बन जाता है। 6. राजनीतिक व्यवस्था पर प्रभाव-जब सामाजिक विघटन चरम सीमा तक पहुँच जाता है। तो इसका परिणाम क्रान्ति होता है। सरकार द्वारा जब जनता के अधिकारों की उपेक्षा की जाने लगती है तथा उसकी सुविधाओं का ख्याल न कर उस पर आवश्यकता से अधिक कर लगा दिये जाते हैं, तब जनता सरकार के विरुद्ध आन्दोलन या क्रान्ति करती है। 7. बेकारी का प्रसार-सामाजिक विघटन के परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था में विकार आ जाता है, जिसके कारण समाज में बेकारी का प्रसार होता है, व्यक्तियों में असन्तोष बढ़ता है तथा अलगावपूर्ण प्रवृत्तियाँ विकसित होने लगती हैं। 1. सामाजिक संगठन की धारणा एक ऐसे परिवर्तनशील सामाजिक सन्तुलन का बोध कराती है जिसके अन्तर्गत सभी समूह तथा संस्थाएँ अपने पूर्व-निर्धारित लक्ष्यों के अनुसार व्यवहार करके सामाजिक व्यवस्था को बनाये रखने में योगदान करते रहते हैं। सामाजिक विघटन का तात्पर्य किसी भी ऐसी स्थिति से है, जिसमें एक समूह के सदस्यों के सम्बन्ध टूट जाते हैं और इस प्रकार सामाजिक जीवन अव्यवस्थित हो जाता है। इस दृष्टिकोण से संगठन तथा विघटन की दशाएँ एक प्रक्रिया के रूप में क्रियाशील होने के बाद भी एक दूसरे से पूर्णतया भिन्न हैं। 2. सामाजिक संगठन की एक अनिवार्य विशेषता किसी समूह के सदस्यों में एकमत होना, अर्थात्अ धिकतर विषयों के प्रति समान दृष्टिकोण प्रदर्शित करना है। विघटन की दशा में यह एकमत अनेक छोटे-छोटे तथा स्वार्थपूर्ण समूहों में विभाजित हो जाता है। 3. सामाजिक संगठन में नियोजन का गुण निहित है। समाज मनुष्यों के सक्रिय प्रयासों के बिना संगठित नहीं रह सकता। इसके विपरीत; विघटन के लिए व्यक्ति पृथक् अथवा नियोजित रूप से कोई प्रयत्न नहीं करते, बल्कि अज्ञात रूप से अनेक घटनाएँ समाज को विघटित करती रहती हैं। 4. उपर्युक्त अन्तर से यह भी स्पष्ट होता है कि सामाजिक संगठन की स्थापना विकास की एक लम्बी प्रक्रिया के बाद ही सम्भव हो पाती है। तुलनात्मक रूप से विघटन की दशा उत्पन्न होने में बहुत कम समय लगता है। 5. सामाजिक संगठन की दशा में सभी सदस्यों की स्थिति तथा भूमिका सुनिश्चित रहती है। और अधिकांश व्यक्ति समूह की आशाओं के अनुसार अपनी भूमिका का निर्वाह करते रहते हैं। दूसरी ओर, विघटन की दशा में व्यक्ति की भूमिका तथा स्थिति के बीच एक सामान्य असन्तुलन स्पष्ट होने लगता है। 6. सामाजिक संगठन का अभिप्राय सामाजिक नियन्त्रण की व्यवस्था का प्रभावपूर्ण बने रहना है। इसके विपरीत, नियन्त्रण के साधनों में जब दिखावा (Formalism) उत्पन्न हो जाता है, तब इसी दशा को हम विघटन कहते हैं। 7. सामाजिक संगठन तार्किक है, जब कि सामाजिक विघटन अतार्किक और भावनात्मक है। इसका तात्पर्य यह है कि संगठन के अन्तर्गत व्यक्ति के व्यवहार सामाजिक मूल्यों के अनुरूप होते हैं तथा व्यक्ति के व्यवहारों को सरलता से समझा जा सकता है। विघटन की दशा में अनिश्चितता, भ्रम तथा विवेकशून्यता इतनी बढ़ जाती है कि किसी भी व्यक्ति के व्यवहारों | का पूर्वानुमान कर सकना अत्यधिक कठिन हो जाता है। 8. संगठन वांछित है और विघटन अवांछित। इसके पश्चात् भी ये दोनों दशाएँ कम या अधिक मात्रा में प्रत्येक समाज में साथ-साथ क्रियाशील रहती हैं। आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हमें संगठन के प्रति सचेत रहते हैं, जब कि परिवर्तन की प्रक्रिया विघटनकारी दशाओं को भी उत्पन्न करती रहती है। |
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निरन्तर एक ही दिशा में आगे की ओर हो रहे परिवर्तन को क्या कहते हैं ? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» एक ही दिशा में आगे की ओर होने वाले परिवर्तन को रेखीय परिवर्तन कहते हैं। उदाहरणार्थ-अधिकांश प्रौद्योगिकी व शिक्षा क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन रेखीय परिवर्तन होते हैं। |
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इलियट और मैरिल की पुस्तक का नाम बताइए। |
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Answer» इलियट और मैरिल की पुस्तक का नाम ‘सोशल डिसऑर्गेनाइजेशन’ (सामाजिक विघटन) है। |
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निम्नलिखित में से किस पुस्तक के लेखक डार्विन हैं ?(क) ह्यूमन सोसाइटी(ख) सोसाइटी(ग) ओरिजिन ऑफ स्पीसीज़।(घ) द प्रिमिटिव मैन |
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Answer» (ग) ओरिजिन ऑफ स्पीसीज़ |
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व्यक्तिगत विघटन की चरम सीमा है(क) अपराध(ख) आत्महत्या(ग) पागलपन(घ) निर्धनता |
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Answer» सही विकल्प है (ख) आत्महत्या |
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‘कास्ट क्लास एण्ड अकूपेशन’ पुस्तक के लेखक कौन हैं? |
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Answer» जी०एस० घुरिए। प्रश्न16 ‘सोशल ऑर्गेनाइजेशन’ नामक पुस्तक के लेखक का नाम बताइए। उत्तर: सोशल ऑर्गेनाइजेशन’ नामक पुस्तक के लेखक का नाम चार्ल्स एच० कूले है। |
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‘इण्डियाज चेंजिंग विलेजेज पुस्तक के लेखक कौन हैं ? |
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Answer» एस० सी० दुबे |
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‘वर्ग-संघर्ष सिद्धान्त का प्रवर्तक कौन है ? |
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Answer» कार्ल मार्क्स। |
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‘धर्म और समाज’ नामक पुस्तक के लेखक का नाम बताइए। |
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Answer» ‘धर्म और समाज’ नामक पुस्तक के लेखक का नाम डॉ० एस० राधाकृष्णन् है। |
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‘कास्ट एण्ड क्लास इन इण्डिया’ नामक पुस्तक की रचना किसने की थी ? |
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Answer» कास्ट एण्ड क्लास इन इण्डिया’ नामक पुस्तक की रचना जी० एस० घुरिये ने की थी। |
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‘अहं आत्महत्या सिद्धान्त किसने दिया था ? यासमाजशास्त्री का नाम लिखें जिसने आत्महत्या का अध्ययन किया? |
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Answer» इमाइल दुर्चीम ने |
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‘हिन्दू सोशल ऑर्गेनाइजेशन नामक पुस्तक के लेखक का नाम बताइए। |
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Answer» ‘हिन्दू सोशल ऑर्गेनाइजेशन’ नामक पुस्तक के लेखक का नाम पी० एच० प्रभु है। |
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सी० एच० कूले किस पुस्तक के लेखक हैं ?(क) सोसाइटी(ख) सोशल ऑर्गेनाइजेशन(ग) फॉकवेज़(घ) प्रिंसिपल्स ऑफ क्रिमिनोलॉजी |
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Answer» (ख) सोशल ऑर्गेनाइजेशन |
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