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51.

शिक्षा के उद्देश्यों के सन्दर्भ में कौन-सा कथन सत्य है(क) व्यक्तिगत विकास का उद्देश्य अधिक महत्त्वपूर्ण है।(ख) शिक्षा का सामाजिक उद्देश्य अधिक महत्त्वपूर्ण है।(ग) शिक्षा के व्यक्तिगत और सामाजिक उद्देश्य परस्पर विरोधी हैं।(घ) शिक्षा के व्यक्तिगत एवं सामाजिक उद्देश्य परस्पर पूरक हैं।

Answer»

(घ) शिक्षा के व्यक्तिगत एवं सामाजिक उद्देश्य परस्पर पूरक हैं

52.

शिक्षा के जीवन की पूर्णता के उद्देश्य के विपक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिए।

Answer»

शिक्षा के जीवन की पूर्णता के उद्देश्य के विपक्ष में तर्क
(Arguments Against Aims of Completion in Education Life)

शिक्षा के जीवन की पूर्णता के उद्देश्य के विपक्ष में मुख्य रूप से निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए गए हैं—

⦁    अनिश्चित एवं विवादग्रस्त- यह निश्चित करना ही कठिन है कि जीवन की पूर्णता क्या है ? विभिन्न विचारकों और दार्शनिकों ने जीवन की पूर्णता के विषय में विभिन्न मत प्रतिपादित किए हैं। ऐसे गम्भीर विषय को अनिश्चित एवं विवादग्रस्त विचारों, अनुमानों या अटकलबाजियों द्वारा भली प्रकार नहीं समझा जा सकता।
⦁    अध्यात्म एवं नैतिकता की उपेक्षा- यह उद्देश्य पूरी तरह से लौकिक है, क्योंकि हरबर्ट स्पेन्सर ने इसमें अध्यात्म तथा नैतिकता को कोई स्थान नहीं दिया है। अध्यात्म एवं नैतिकता मानव की भावनाओं से जुड़े जीवन के अति महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं, जिनकी किसी भी प्रकार उपेक्षा नहीं की जा सकती। नैतिकता एवं अध्यात्म में प्रतिष्ठित व्यक्ति का जीवन ही भीतर से पवित्र एवं समृद्ध हो सकता है और ऐसा जीवन ही वास्तव में पूर्णता को प्राप्त होता है।
⦁    अमनोवैज्ञानिक पाठ्यक्रम- जीवन की पूर्णता के उद्देश्य की प्राप्ति हेतु सुनिश्चित पाठ्यक्रम अमनोवैज्ञानिक है। विषयों के चुनाव को क्रम सर्वथा मानव-मन के प्रतिकूल है। इसके अलावा पाठ्यक्रम के अध्ययन विषय भी बालकों की स्वतन्त्र रुचियों तथा प्रवृत्तियों से मेल नहीं खाते।
⦁    बालक के भविष्य की चिन्ता नहीं-हरबर्ट स्पेन्सर द्वारा प्रतिपादित इस उद्देश्य में सिर्फ वर्तमान को ही ध्यान में रखा गया और बालक के भविष्य की चिन्ता नहीं की गई है। सच तो यह है कि मानव-जीवन का वास्तविक एवं एकमात्र उद्देश्य सांसारिक सुखों को प्राप्त करना ही नहीं है, बल्कि दूसरे अर्थात् पारलौकिक जीवन के लिए तैयार होना भी है।
⦁    सीमित एवं संकीर्ण-अनेक विद्वानों ने जीवन की पूर्णता के उद्देश्य को शिक्षा के अभीष्ट एवं व्यापक लक्ष्य से हटकर अपूर्ण, सीमित एवं संकीर्ण मनोवृत्ति का द्योतक बताया है।
⦁    शैक्षिक आदर्श के प्रतिकूल-जीवन की पूर्णता का उद्देश्य शिक्षा के उच्च एवं सर्वमान्य आदर्शों के इसलिए प्रतिकूल है, क्योंकि इसके अन्तर्गत शिक्षा-योजना में दूसरे विषयों की अपेक्षा कला एवं साहित्य को गौण स्थान दिया गया। साहित्य, कला एवं संगीत की शिक्षा मानव को सभ्य तथा सुसंस्कृत बनाती है, जिसके अभाव में मनुष्य जंगली हो जाएगा।
⦁    अव्यावहारिक तथा भ्रामक बालक के वर्तमान तथा आभ्यन्तर की उपेक्षा करने वाली शिक्षा कभी सम्मान के योग्य नहीं हो सकती। यह कथन सर्वथा भ्रामक, अव्यावहारिक तथा असंगत है कि इस उद्देश्य के माध्यम से समस्त उद्देश्यों की प्राप्ति हो सकती है।

53.

“शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्य परस्पर विरोधी न होकर एक-दूसरे के पूरक हैं।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।या“शिक्षा के वैयक्तिक और सामाजिक उद्देश्य एक-दूसरे के पूरक हैं।” कैसे ?

Answer»

वैयक्तिक और सामाजिक उद्देश्य : एक-दूसरे के पूरक
(Individual and Social Aims : Complementary to Each Other)

शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्यों की आधारभूत मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि ये दोनों ही उद्देश्य अपनी-अपनी विशिष्टताओं से युक्त होते हुए भी अनेक परिसीमाओं में बँधे हैं। दोनों के ही अपने-अपने गुण तथा दोष हैं। वास्तव में, व्यक्ति और समाज को एक-दूसरे का विरोधी मानने वाले सभी शिक्षाशास्त्रियों ने अपने मत प्रतिपादित करते समय व्यक्ति और समाज को आवश्यकता से अधिक महत्त्व दे डाला। इसका अच्छा परिणाम नहीं निकला और अन्तत: व्यक्ति एवं समाज दोनों ही पक्षों की पर्याप्त हानि हुई। इस हानि को रोकने की दृष्टि से एक समन्वित विचारधारा के अन्तर्गत अग्रलिखित बिन्दुओं पर ध्यान देना उपयोगी है–

1. वैयक्तिक और सामाजिक उद्देश्यः एक-दूसरे के पूरक व्यक्ति एवं समाज तथा इन पर आधारित. शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्यों में से कौन-सा प्रमुख है? इसे लेकर पुराना विवाद है। इस विवाद की समाप्ति के लिए हमें एक मध्य मार्ग चुन लेना चाहिए और दोनों ही पक्षों को एक-दूसरे के समीप लाने का प्रयास करना चाहिए। किसी एक को प्रधानता देकर दूसरे की उपेक्षा करना उचित नहीं है। दोनों को ही समान महत्त्व है। व्यक्तियों के मिलने से समाज बनता है और सामाजिक परम्परा व्यक्ति का निर्माण करती है। दोनों का कहीं कोई विरोध नहीं, अपितु दोनों एक-दूसरे को पूर्ण करने वाली धारणाएँ हैं। मैकाइवर का कथन है, समाजीकरण तथा वैयक्तीकरण एक ही प्रक्रिया के दो पक्ष हैं।” जिस भाँति व्यक्ति’ और ‘समाज’ अपनी प्रगति के लिए एक-दूसरे का सहारा चाहते हैं और एक-दूसरे की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, ठीक वैसे ही शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्य भी एक-दूसरे के पूरक हैं।
2. वैयक्तिक और सामाजिक उद्देश्यों में समन्वय-व्यक्ति और समाज की पारस्परिक घनिष्ठता इतनी है कि उनके बीच कोई सीमा-रेखा नहीं खींची जा सकती। फूलों की माला के विभिन्न फूलों को एक-दूसरे से या अपने ही समूह से कैसे अलग किया जा सकता है? माला तो सभी फूलों का एक समन्वित रूप है। प्रसिद्ध विचारक रॉस (Ross) तथा टी० पी० नन (Nunn) ने वैयक्तिक तथा सामाजिक उद्देश्यों में समन्वय स्थापित किया है। उनकी दृष्टि में व्यक्ति समाज में रहकर समाज-सेवा द्वारा आत्मानुभूति प्राप्त करता है। उसके व्यक्तित्व का विकास, प्रकाशन एवं मूल्यांकन भी समाज में रहकर ही होता है। रॉस ने व्यक्ति के लिए समाज का महत्त्व बताते हुए लिखा है, “वैयक्तिकता का विकास केवल सामाजिक वातावरण में होता है, जहाँ सामान्य रुचियों और सामान्य क्रियाओं से उसका पोषण हो सकता है। यह भी सच है कि अपने व्यक्तित्व के विकास हेतु प्रत्येक व्यक्ति को स्वतन्त्र वातावरण मिलना चाहिए ताकि वह स्वयं को अपनी प्रकृति के अनुसार विकसित कर सके, क्योंकि व्यक्ति और उसका समाज एक-दूसरे के सहयोग से अपना विकास कर सकते हैं। अत: वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्यों को समन्वयात्मक दृष्टि से व्यावहारिक बनाना उपयुक्त है। पुनः रॉस के ही शब्दों में, “वस्तुतः इस बात में कोई पारस्परिक विरोध नहीं है कि आत्मानुभूति और समाज-सेवा ये दोनों जीवन तथा शिक्षा के उद्देश्य हैं, क्योंकि वे एक ही हैं।” इस प्रकार यह निष्कर्ष निकलता हैं, कि शिक्षा के वैयक्तिक तथा सामाजिक उद्देश्यों में कोई विरोध नहीं है। वे एक-दूसरे के पूरक और समन्वग्नक हैं। इस समन्वयवादी विचारधारा के अन्तर्गत शिक्षा की ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिसमें न तो समाजव्यक्ति को अपना दास बना पाए और न व्यक्ति ही इतना स्वतन्त्र हो जाए कि वह सामाजिक विधि-विधानों को ठुकराकर अपनी मनमानी करने लगे। व्यक्ति और समाज की स्वतन्त्रता अपनी परिसीमाओं में उचित है ताकि दोनों का विकास तथा कल्याण हो सके।

54.

शिक्षा के वैयक्तिक विकास के उद्देश्य के दो पक्ष हैं।(क) आत्मानुभूति एवं आत्माभिव्यक्ति(ख) आत्माभिव्यक्ति एवं आत्म-सम्मान(ग) आत्मानुभूति एवं आत्मप्रधानता(घ) आत्माभिव्यक्ति एवं आत्मप्रशंसा

Answer»

(क) आत्मानुभूति एवं आत्माभिव्यक्ति

55.

लोकतन्त्रात्मक राज्य में समाचार-पत्र और पत्रिकाओं की शैक्षिक भूमिका पर टिप्पणी कीजिए।

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वर्तमान लोकतन्त्रात्मक राज्य एवं समाज में शिक्षा की अवधारणा अत्यधिक विस्तृत हो गयी है। तथा इस प्रक्रिया के लिए विभिन्न प्रकार के अभिकरण उपलब्ध हैं। समाचार-पत्र तथा पत्रिकाएँ शिक्षा के निरौपचारिक अभिकरण हैं। समाचार-पत्र तथा पत्रिकाएँ अनेक प्रकार की सूचनाएँ, जानकारी तथा ज्ञान प्रदान करने वाले स्रोत हैं। अत: इनका विशेष शैक्षिक महत्त्व एवं भूमिका है। शिक्षा के ये अभिकरण प्रत्येक व्यक्ति के लिए उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण हैं। सामान्य शिक्षा, दूरस्थ शिक्षा तथा प्रौढ़ या सामाजिक-शिक्षा के दृष्टिकोण से पत्र-पत्रिकाओं का विशेष महत्त्व है।

56.

जीवन में व्यावहारिक कुशलता अर्जित करने के लिए शिक्षा के किस स्वरूप को अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है?

Answer»

जीवन में व्यावहारिक कुशलता अर्जित करने के लिए अनौपचारिक शिक्षा को अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

57.

प्राचीन भारत में शिक्षा को उद्देश्य क्या था ?(क) भौतिक उन्नति(ख) आध्यात्मिक उन्नति(ग) राष्ट्रीय सेवा की प्राप्ति(घ) नागरिकता का विकास

Answer»

सही विकल्प है  (ख) आध्यात्मिक उन्नति

58.

शिक्षा के शारीरिक विकास के उद्देश्य के पक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिए।

Answer»

शिक्षा के शारीरिक विकास के उद्देश्य’ के पक्ष में तर्क :
(Arguments in Favour of ‘Physical Development’s Aims of Education)

शारीरिक विकास के उद्देश्य के समर्थन में विभिन्न विचारकों द्वास निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए गए हैं

⦁    सफलता की कुंजी-स्वस्थ शरीर में मानव-जीवन की सफलता का रहस्य निहित है। शारीरिक शक्ति से मनुष्य स्फूर्तिमान, उत्साही एवं क्रियाशील बना रहता है। वह लगातार काम करने की क्षमता रखता है। और अपने कार्यों में सफलता प्राप्त करता है। शारीरिक विकास का उद्देश्य सफल जीवन की कुंजी है।

⦁    मानसिक विकास का आधार- शारीरिक विकास, मानसिक विकास का आधार है। अनेक मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि कमजोर शरीर मानसिक रोगों को घर बन जाता है। कहते हैं। दुर्बलता दुष्टता को जन्म देती है।” अत: चिन्तन, कल्पना, स्मरण तथा सृजन आदि मानसिक शक्तियों के विकास हेतु स्वस्थ एवं हृष्ट-पुष्ट शरीर एक पूर्व आवश्यकता है।
⦁    सामाजिक गुणों की अभिवृद्धि- उत्तम स्वास्थ्य से युक्त व्यक्ति सद्गुणों को प्राप्त करता है। स्वस्थ शरीर चारित्रिक, नैतिक एवं सामाजिक गुणों की अभिवृद्धि में सहायक है। डॉ० जानसन कहते हैं, “स्वास्थ्य को बनाए रखना नैतिक और धार्मिक कर्तव्य है, क्योंकि स्वास्थ्य ही सब सामाजिक गुणों का आधार है।” इसलिए शारीरिक विकास का उद्देश्य प्रशंसनीय है।

⦁    वैयक्तिक एवं राष्ट्र का हित- इस उद्देश्य में व्यक्ति एवं राष्ट्र, दोनों का हित समाहित है। शारीरिक विकास से व्यक्ति में शक्ति का संचार होता है और व्यक्तियों की शक्ति से राष्ट्र बलशाली होता है। अतः वैयक्तिक एवं राष्ट्रीय उत्थान की दृष्टि से शारीरिक विकास का उद्देश्य सर्वमान्य है।

59.

अनौपचारिक शिक्षा के महत्त्व का उल्लेख कीजिए।

Answer»

किसी भी स्रोत से ज्ञान प्राप्त करना ही अनौपचारिक शिक्षा है। अनौपचारिक शिक्षा का व्यक्ति के जीवन में विशेष महत्त्व है। अनौपचारिक शिक्षा के महत्त्व का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

⦁    अनौपचारिक शिक्षा बालक के भावी जीवन की आधारशिला है। बालक अपने प्रारम्भिक जीवन में अनौपचारिक ढंग से ही शिक्षा प्राप्त करता है। शिक्षा मनोवैज्ञानिकों की दृष्टि में प्रारम्भ के पाँच वर्षों में बालक का व्यक्तित्व अनौपचारिक शिक्षा द्वारा ही निर्मित होता है।
⦁    अनौपचारिक शिक्षा व्यापक है। यह मानव-जीवन के सभी पक्षों से सम्बन्ध रखती है और व्यक्ति को जीवन की यथार्थ परिस्थितियों के साथ सामंजस्य सिखाती है।
⦁    अनौपचारिक शिक्षा द्वारा बालक का सम्पूर्ण व्यक्तित्व विकसित होता है। बालक सद्-आचरण, व्यवहार, नैतिक-शिक्षा, सभ्यता एवं संस्कृति का अधिकाधिक ज्ञान इसी शिक्षा द्वारा प्राप्त करता है।

60.

प्राचीन भारतीय मान्यताओं के अनुसार शिक्षा का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

Answer»

प्राचीन भारत के धर्मग्रन्थों में कहा गया है कि ‘सा विद्या या विमुक्तये’ अर्थात् विद्या वह है जो मानव को शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक बन्धनों से मुक्ति प्रदान करती है। यहाँ ‘शिक्षा’ को ‘विद्या’ का समानार्थी समझो गया है। विद्या शब्द संस्कृत की ‘विद्’ धातु से व्युत्पन्न है, जिसका अर्थ है ‘जानना या ज्ञान प्राप्त करना।

61.

शिक्षा किस प्रकार का विज्ञान है?(क) यथार्थ विज्ञान(ख) आदर्शात्मक विज्ञान(ग) व्यावहारिक विज्ञान(घ) विज्ञान है ही नहीं

Answer»

सही विकल्प है (ग) व्यावहारिक विज्ञान

62.

शिक्षा के सांस्कृतिक विकास के उद्देश्य के पक्ष में प्रस्तुत किए गए तर्को का उल्लेख कीजिए।

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शिक्षा के सांस्कृतिक विकास के उद्देश्य के पक्ष में तर्क
(Arguments in Favour of ‘Cultural Development’s Aims’ of Education)

शिक्षा के सांस्कृतिक विकास के उद्देश्य के पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए गए हैं

⦁    सन्तुलित शिक्षा- संस्कृति मानव-जीवन के बाह्य (भौतिक) तथा आन्तरिक (आध्यात्मिक) दोनों ही पक्षों को प्रेरित एवं विकसित करती है। भौतिक दृष्टि से यह मनुष्य के उच्च विचारों, रुचियों, सौन्दर्यानुभूति तथा कलात्मक शक्तियों को प्रेरणा देती है।
⦁    अनुभवों से ज्ञान- संस्कृति के अन्तर्गत वे सभी अनुभवं सम्मिलित होते हैं जो मनुष्य जाति ने आदिकाल से अब तक प्राप्त किए हैं। शिक्षा प्रक्रिया के माध्यम से इन अनुभवों को न केवल सुरक्षा मिलती है, बल्कि इनका अधिकतम उपयोग भी होता है। शिक्षा का यह उद्देश्य अनुभवों द्वारा ज्ञान देने का प्रबल पक्षधर
⦁    पाशविक वृत्तियों का शोधन- संस्कृति का अर्थ ही परिष्कार या शोधन है। संस्कृति द्वारा मनुष्य की पाशविक वृत्तियों का दमन व शोधन होता है और इस प्रकार उसमें दिव्य मानवीय गुणों का विकास होता है।
⦁    जीवनोपयोगी उद्देश्य- शिक्षा के अन्तर्गत सांस्कृतिक विकास का उद्देश्य जीवन के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथा उपयोगी विचार है। विभिन्न विद्वानों ने इसका समर्थन किया है। महात्मा गांधी के अनुसार, संस्कृति ही मानव-जीवन की आधारशिला एवं प्रमुख वस्तु है। यह आपके आचरण और व्यक्तिगत व्यवहार की छोटी-से-छोटी बात में व्यक्त होनी चाहिए।’ संस्कृति के उपर्युक्त महत्त्वों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न विद्वानों ने स्पष्ट किया है कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य सांस्कृतिक विकास होना चाहिए।

63.

औपचारिक शिक्षा का अभिकरण है(क) गृह(ख) विद्यालय(ग) राज्य(घ) समाज

Answer»

सही विकल्प है (ख) विद्यालय

64.

औपचारिक शिक्षा के महत्व का उल्लेख कीजिए।

Answer»

विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में व्यवस्थित रूप से प्रदान की जाने वाली शिक्षा को औपचारिक शिक्षा कहा जाता है। औपचारिक शिक्षा के महत्त्व का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

⦁    किसी विशेष क्षेत्र में व्यवस्थित ज्ञान अर्जित करने के लिए औपचारिक शिक्षा ही आवश्यक होती है। औपचारिक शिक्षा के अभाव में विशेष ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता।
⦁    भले ही औपचारिक शिक्षा का क्षेत्र संकुचित है, किन्तु आज का समाज उसी व्यक्ति को सुशिक्षित मानता है जिसने औपचारिक ढंग से किसी मान्यता प्राप्त शिक्षा-संस्थान या विश्वविद्यालय से प्रमाण-पत्र अर्जित किया है।
⦁    वर्तमान परिस्थितियों में जीविका उपार्जन के दृष्टिकोण से भी औपचारिक शिक्षा को ही अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है। किसी सरकारी अथवा गैर-सरकारी प्रतिष्ठान में नौकरी पाने के लिए औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के प्रमाण-पत्र के आधार पर ही अनिवार्य योग्यता निर्धारित की जाती है।

65.

औपचारिक शिक्षा तथा अनौपचारिक शिक्षा का अर्थ स्पष्ट करते हुए इन दोनों का अन्तर स्पष्ट कीजिए।याशिक्षा के औपचारिक स्वरूप का वर्णन कीजिए।याऔपचारिक शिक्षा से क्या आशय है?याशिक्षा के औपचारिक एवं अनौपचारिक स्वरूपों का वर्णन कीजिए।यानिरौपचारिक (अनौपचारिक) शिक्षा क्या है? उदाहरण दीजिए।

Answer»

व्यक्ति एवं समाज दोनों ही के लिए शिक्षा का विशेष महत्त्व है। शिक्षा एक व्यापक प्रक्रिया है। शिक्षा के अनेक प्रकार अथवा स्वरूप देखे जा सकते हैं। शिक्षा के प्रकारों का निर्धारण भिन्न-भिन्न आधारों पर किया जा सकता है। जब हम शिक्षा के नियमों एवं उसकी व्यवस्था को आधार मानकर शिक्षा के प्रकारों का निर्धारण करते हैं, तब हमारे सम्मुख शिक्षा के मुख्य रूप से दो स्वरूप या प्रकार प्रस्तुत होते हैं, जिन्हें क्रमश: औपचारिक शिक्षा (Formal Education) तथा अनौपचारिक शिक्षा (Informal Education) कहा जाता है। शिक्षा के इन दोनों प्रकारों के अर्थ, साधनों एवं अन्तर आदि का विवरण निम्नवत् है

औपचारिक शिक्षा(Formal Education)

औपचारिक शिक्षा, जिसे नियमित या सांविधिक शिक्षा भी कहते हैं, बालकों को विचारपूर्ण तथा सुव्यवस्थित ढग से दी जाने वाली शिक्षा है। औपचारिक शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करते हुए जे० मोहन्नी ने लिखा है, “इस प्रकार की शिक्षा की योजना सोच-विचारकर और जान-बूझकर बनाई जाती है। इसके पाठ्यक्रम की रूपरेखा पहले से ही तैयार कर ली जाती है और इसके उद्देश्य भी पहले से ही निश्चित कर लिए जाते हैं।” स्पष्ट है इस शिक्षा की योजना पहले ही तैयार कर ली जाती है और इसका ध्येय भी निश्चित कर लिया जाता है। औपचारिक शिक्षा में पूर्व-निर्धारित रूपरेखा के अन्तर्गत बालकों को निश्चित समय पर निश्चित ज्ञान प्रदान किया जाता है। विशेष प्रकार की संस्थाओं में निश्चित व्यक्ति (शिक्षक) निश्चित विधियों के माध्यम से औपचारिक शिक्षा देते हैं। शिक्षा के इस स्वरूप में पाठ्यक्रम, समय-सारणी तथा पुस्तकें अत्यन्त आवश्यक समझी जाती हैं। शिक्षा के इस प्रकार के अन्तर्गत नियमित परीक्षाओं की व्यवस्था होती है तथा परीक्षाओं के आधार पर योग्यता का प्रमाण-पत्र भी प्रदान किया जाता है। वर्तमान समाज में औपचारिक शिक्षा के मुख्यतम अभिकरण विद्यालय या स्कूल-कॉलेज हैं। इनके अतिरिक्त पुस्तकालय, वाचनालय तथा संग्रहालय एवं कलावीथियाँ आदि भी औपचारिक शिक्षा के अभिकरण हैं। औपचारिक शिक्षा केवल एक निश्चित अवधि तक ही चलती है।

अनौपचारिक शिक्षा(Informal Education)

अनौपचारिक शिक्षा को अनियमित या अविधिक या निरौपचारिक शिक्षा भी कहा जाता है। यह शिक्षा बालक को अनायास तथा आकस्मिक रूप से प्राप्त होती है और व्यक्ति के जीवन में जन्म से अन्त तक चलती रहती है। अनौपचारिक शिक्षा का कोई विचार, पूर्व-योजना, सुव्यवस्थित ढंग, सुनिश्चित स्थान, निश्चित समय और कोई निश्चित नियम नहीं होता। यह तो हर समय और हर स्थान पर किसी-न-किसी रूप में चलती रहती है। मुख्य रूप से अनौपचारिक शिक्षा अनुभवों पर आधारित शिक्षा है; अत: इसे अनुभव द्वारा प्राप्त की गई शिक्षा भी कहते हैं। यह शिक्षा किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी भी व्यक्ति को प्रदान की जा सकती है। परिवार, धर्म, राज्य, समाज, युवकों का समूह, खेल का मैदान, रेडियो, टेलीविजन, समाचार-पत्र तथा पत्रिकाएँ–अनौपचारिक शिक्षा के मुख्य साधन या अभिकरण हैं।

66.

नकारात्मक शिक्षा (Negative Education) के अर्थ को स्पष्ट कीजिए।यानिषेधात्मक शिक्षा से आप क्या समझते हैं?

Answer»

नकारात्मक या निषेधात्मक या अनिश्चयात्मक शिक्षा में बालक स्वयं अपने अनुभव तथा क्रियाओं द्वारा ज्ञान अर्जित करता है। अपने आदर्शों का निर्माता भी वह स्वयं है। अध्यापक की भूमिका एक मार्गदर्शक से अधिक नहीं होती जो उचित वातावरण तैयार करने में सहायता करता है। इस शिक्षा के अन्तर्गत बालक अपनी रुचियों, इच्छाओं तथा स्वाभाविक प्रवृत्तियों के अनुसार अपना शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास करता है। नकारात्मक शिक्षा का समर्थन प्रयोगवादी तथा प्रकृतिवादी विचारधारा के पक्षधर करते हैं।

67.

प्रवेश और प्रस्थान के निश्चित बिन्दु किस प्रकार की शिक्षा के लक्षण हैं?

Answer»

प्रवेश और प्रस्थान के निश्चित बिन्दु औपचारिक शिक्षा के लक्षण हैं।

68.

शिक्षा के अवकाश के सदुपयोग के उद्देश्य के विपक्ष में प्रस्तुत किए गए तर्को का उल्लेख कीजिए।

Answer»

शिक्षा के अवकाश के सदुपयोग के उद्देश्य के विपक्ष में तर्क
(Arguments Against ‘Aims of Good Use of Vacation of Education)

शिक्षा के अवकाश के सदुपयोग सम्बन्धी उद्देश्य के विपक्ष में प्रस्तुत किए गए मुख्य तर्क निम्नलिखित

⦁    संकुचित उद्देश्य- शिक्षा का यह उद्देश्य संकुचित है। आलोचकों के अनुसार शिक्षा की आवश्यकता सिर्फ उन लोगों को है जिनके पास खाली समय होता है। इस दृष्टि से निरन्तर काम में व्यस्त रहने वाले लोगों को शिक्षा की आवश्यकता ही नहीं है।
⦁    धनी एवं विशेष वर्ग तक सीमित-इस उद्देश्य के अनुसार, शिक्षा समाज के धनी और विशिष्ट वर्ग तक ही सीमित रह जाएगी। किसी भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में शिक्षा प्राप्त करना प्रत्येक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है।
⦁    शिक्षा सभी कार्यों के लिए शिक्षा का उद्देश्य प्रत्येक बालक को जीवन के लिए उपयोगी तथा सभी कार्यों के लिए योग्य बनाना है। यह एकमात्र अवकाश काल के लिए ही नहीं है।
⦁    अवकाश का उपयोग सन्देहास्पद-शिक्षा के अन्तर्गत अवकाश हेतु प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति अवकाश का सदुपयोग करेगा भी या नहीं, यह एकदम सन्देहास्पद है। उपर्युक्त तक के आधार पर कहा गया है कि अवकाश के सदुपयोग के उद्देश्य’ को शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य निर्धारित करना उचित नहीं है।

69.

शिक्षा के अवकाश के सदुपयोग के उद्देश्य के पक्ष में प्रस्तुत किए गए तक का उल्लेख कीजिए।

Answer»

शिक्षा के ‘अवकाश के सदुपयोग के उद्देश्य’ के पक्ष में तर्क
(Arguments in Favour of ‘Aim of Good Use of Vacation’ Education)

अनेक शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा को अवकाश के सदुपयोग से जोड़ते हुए इस उद्देश्य के समर्थन में अपने विचार प्रकट किए हैं। ये विचार इस प्रकार हैं

⦁    समय का सदुपयोग कहते हैं ‘खाली मस्तिष्क शैतान का घर है। यदि व्यक्ति अवकाश-काल में मस्तिष्क का उपयोग स्वस्थ एवं उपयोगी कार्यों में नहीं करेगा, तो निश्चय ही वह उसे लड़ाई-झगड़ों, मद-व्यसन तथा समाज-विरोधी कार्यों में व्यतीत करेगा। इस उद्देश्य का सबसे पहला कर्तव्य शिक्षा द्वारा व्यक्ति को समय का सदुपयोग सिखाना है।
⦁    सृजनात्मक शक्ति का विकास-इस उद्देश्य से अभिप्रेरित लोग अवकाश के समय सृजनात्मक कार्यों में लगे रहते हैं। इसके परिणामस्वरूप जहाँ एक ओर व्यक्तियों की रचनात्मक शक्ति का विकास होता .. है, वहीं दूसरी ओर समाज की भी प्रगति होती है।
⦁    स्वास्थ्य एवं स्फूर्ति-कार्यरत व्यक्ति का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है। अवकाश के सदुपयोग से मनुष्य के जीवन में स्फूर्ति, शक्ति व गतिशीलता बनी रहती है।
⦁    शिक्षण के साथ मनोरंजन भी- शिक्षा से लोगों का समय बरबाद नहीं होता। खाली समय को रुचिपूर्ण पढ़ाई-लिखाई में व्यतीत कर वे शिक्षण के साथ-साथ अपना मनोरंजन भी करते हैं।
⦁    कला एवं सौन्दर्यानुभूति का विकास- शिक्षा का यह उद्देश्य जीवन में कलाओं को प्रोत्साहित करता है, जिसके साथ मनुष्य में सौन्दर्यानुभूति को विकास भी होता है। साहित्य, संगीत, ललित कलाएँ तथा प्रकृति-प्रेम द्वारा मस्तिष्क ताजा एवं सक्रिय होता है। अतः सभी प्रकार से अवकाश के सदुपयोग का उद्देश्य महत्त्वपूर्ण तथा लाभकारी है।

70.

जब शिक्षक अपने विचारों, आदर्शों एवं मूल्यों आदि को शिक्षा के रूप में छात्रों पर थोपने का प्रयास करता है तब उस शिक्षा को क्या कहते हैं?

Answer»

इस प्रकार की शिक्षा कों, प्रत्यक्ष शिक्षा कहते हैं।

71.

औपचारिक शिक्षा की प्रमुख विशेषता है(क) नियमितता(ख) व्यापकता(ग) संकीर्णता(घ) वैज्ञानिकता

Answer»

सही विकल्प है (क) नियमितता

72.

निम्नलिखित में से कौन-सी विशेषता अनौपचारिक शिक्षा पर लागू नहीं होती?(क) स्पष्ट रूप से निर्धारित पाठ्यक्रम का अभाव(ख) नियमित रूप से परीक्षाओं का आयोजन(ग) क्षेत्र की व्यापकता(घ) आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है

Answer»

(ख) नियमित रूप से परीक्षाओं का आयोजन

73.

शिक्षा के नियमों एवं व्यवस्था के आधार पर शिक्षा के कौन-कौन-से प्रकार या स्वरूप निर्धारित किए गए हैं?

Answer»

शिक्षा के नियमों एवं व्यवस्था के आधार पर शिक्षा के दो प्रकार या स्वरूप निर्धारित किए गए। हैं–

⦁    औपचारिक शिक्षा तथा
⦁    अनौपचारिक शिक्षा।

74.

शिक्षा के उस स्वरूप को क्या कहते हैं, जो बिना निर्धारित पाठ्यक्रम, पुस्तकों एवं नियमों के … ही आजीवन चलती रहती है?

Answer»

शिक्षा के उस स्वरूप को अनौपचारिक शिक्षा कहते हैं, जो बिना निर्धारित पाठ्यक्रम, पुस्तकों एवं नियमों के ही आजीवन चलती रहती है।

75.

निम्नलिखित में से कौन-सी विशेषता औपचारिक शिक्षा पर लागू नहीं होती?(क) पूर्व निर्धारित नियमों पर आधारित(ख) योग्यता का प्रमाण-पत्र देने की व्यवस्था(ग) सीमित अवधि तक चलती है।(घ) जीवन-पर्यन्त चलती है।

Answer»

सही विकल्प है (घ) जीवन-पर्यन्त चलती है

76.

शिक्षा के व्यावसायिक उद्देश्य को समाज एवं राष्ट्र के लिए क्यों लाभकारी माना जाता है?

Answer»

शिक्षा के व्यावसायिक उद्देश्य को समाज एवं राष्ट्र के लिए लाभकारी माना जाता है, क्योंकि इस प्रकार की शिक्षा-व्यवस्था से समाज एवं राष्ट्र प्रगति के र्ग पर अग्रसर होता है।

77.

निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य⦁    शिक्षा एक जीवन-पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है।⦁    जॉन डीवी के अनुसार शिक्षा एक त्रि-पक्षीय प्रक्रिया है। ये पक्ष हैं-शिक्षक, शिक्षार्थी तथा शिक्षा का पाठ्यक्रम⦁    शिक्षा के द्वारा व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक, सांवेगिक तथा आध्यात्मिक उन्नति का पथ प्रशस्त होता है।⦁    शिक्षा तथा निर्देशन में कोई अन्तर नहीं है।⦁    शिक्षा के लिए साक्षरता एक अनिवार्य शर्त है।⦁    व्यक्ति की जन्मजात शक्तियों के विकास में शिक्षा का कोई योगदान नहीं होता।⦁    सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन के दृष्टिकोण से शिक्षा का कोई महत्त्व नहीं है।

Answer»

⦁    सत्य,

⦁    सत्य,

⦁    सत्य,

⦁    असत्य,

⦁    असत्य,

⦁    असत्य.

⦁    असत्य।

78.

निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य–⦁    सुकरात ने शिक्षा के व्यावसायिक उद्देश्य को ही शिक्षा का एक मात्र उद्देश्य माना था।⦁    शिक्षा के व्यक्तिगत विकास और सामाजिक विकास के उद्देश्य परस्पर विरोधी न होकर एक-दूसरे के पूरक हैं।⦁    प्राचीन भारत में शिक्षा का उद्देश्य भौतिक सुखों की प्राप्ति था।⦁    समाज में भौतिकवादी दृष्टिकोण के विकास के परिणामस्वरूप शिक्षा के व्यावसायिक उद्देश्य का महत्त्व समाप्त हो गया है।⦁    यदि जीविकोपार्जन को शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य स्वीकार कर लिया जाए तो उस दशा में शिक्षा साधन बन जाती है।

Answer»

⦁    असत्य,

⦁    सत्य,

⦁    असत्य,

⦁    असत्य,

⦁    सत्य।

79.

अन्य वचन रूप लिखिए :1.   नदी 2.   मुरली 3.   वाणी 4.   स्मृति 

Answer»

1.   नदी – नदियाँ

2.   मुरली – मुरलियाँ

3.   वाणी – वाणी

4.   स्मृति – स्मृतियाँ

80.

अनुरूप शब्द लिखिए :1.   चंग : चढ़ना :: वारिधर : ————2.   दुनिया : जगत :: उर : ———–3.   नदी : बहना :: मुरली : ———4.   भूख-प्यास : शब्द युग्म :: मिट-मिटकर : ———-

Answer»

1.   चंग : चढ़ना :: वारिधर : बरसाना

2.   दुनिया : जगत :: उर : छाती

3.   नदी : बहना :: मुरली : गाना

4.   भूख-प्यास : शब्द युग्म :: मिट-मिटकर : द्विरुक्ति

81.

विलोम शब्द लिखिए ।1.   रोना 2.   चढ़ना 3.   मिटना4.   गिरना

Answer»

1.   रोना x हँसना ।

2.   चढ़ना x उतरना

3.   मिटना x घटना/जोड़ना

4.   गिरना x उठना

82.

पर्यायवाची शब्द लिखिए :1.   शिशु 2.   वारिधर 3.   दुनिया 4.   चंग 

Answer»

1.   शिशु – बच्चा

2.   वारिधर – बादल

3.   दुनिया – संसार, प्रपंच

4.   चंग – चढ़ना

83.

नमूने के अनुसार सही वर्तनीवाले शब्द लिखिए :उदा : वारिधर, वारिघर (वारिधर)1.   दूनिया, दुनिया ……..2.   शिशु, शीषु’ ………….3.   मुर्ली, मुरली ………….4.    गीर, गिर ………

Answer»

1.   दूनिया, दुनिया (दुनिया)

2.   शिशु, शीषु’ (शिशु)

3.   मुर्ली, मुरली (मुरली)

4.    गीर, गिर (गिर)

84.

मुरली ने गाना कैसे सीखा है?

Answer»

मुरली ने उर छेदकर गाना सीखा है।

85.

वारिधरों ने पानी बरसाना कैसे सीखा है?

Answer»

मिट-मिटकर वारिधरों ने पानी बरसाना सीखा है।

86.

नदियों ने बहना कैसे सीखा है?

Answer»

गिर-गिरकर नदियों ने बहना सीखा है।

87.

शिक्षा पाठ का सारांश अंग्रेज़ी में लिखिए ।

Answer»

In this poem, the poet gives instances of how he learn and gained knowledge through experiences. If one has to find success he has to follow many routes and undergo many trials. One cannot find success without trials and tribulations.

1. Once the child is born it learns to laugh after repeated cries. If the child does not cry then nobody will notice it, not even its mother. If the child has to satisfy its hunger or its likes then it has to cry. This way it grows. After repeated falls it learns how to walk. It is fed with nutritious food and thereby the child grows hale and healthy.

2. The birds learn to fly as they have to quench their thirst and hunger. The younger ones in the
nest wait for their mother to get food to feed them. Once their wings are strong, they learn to fly. The bamboo is holed in equidistant, so that it can make beautiful music, where it is called flute.

3. Clouds melt and drop as rain. If clouds do not melt then earth does not get rain. Those clouds that do not melt are carried away by the wind and later hits huge mountains and fall as rain. This water falls from great height and forms beautiful waterfall. Rivers learns to flow after it learns to make its way through hills and valleys. They flow through mountains and give us abundant natural wealth.

88.

पानी कैसे बरसता है? नदियाँ कैसे बहती है?

Answer»

बादलों ने मिट-मिटकर पानी बरसाना सीखा है। और पर्वत से गिर-गिरकर नदियों ने बहना सीखा है।

89.

शिशु ने दुनिया में आकर पहले क्या-क्या सीखा है और कैसे सीखा है?

Answer»

शिशु ने दुनिया में आकर सबसे पहले रो-रोकर हँसना सीखा है और लघु होकर बढ़ना सीखता है । गिर-गिरकर चलना सीखता है

90.

शिशु ने लघु होकर क्या सीखा है?

Answer»

शिशु ने लघु होकर बढ़ना सीखा है।

91.

शिशु ने रो-रोकर क्या सीखा है?

Answer»

शिशु ने रो-रोकर हँसना सीखा है ।

92.

चंगों से क्या सीखा है?

Answer»

चंगों से चढ़ना सीखा है।

93.

शिशु ने सब कुछ कहाँ आकर सीखा है?

Answer»

शिशु ने सब कुछ दुनिया में आकर सीखा है ।

94.

शिशु ने चलना कैसे सीखा है?

Answer»

शिशु ने गिर-गिरकर चलना सीखा है।

95.

नदी और कोयल से क्या सीख सकते हैं ?

Answer»

नदी से जीवन में बहने सीखा और कोयल से मधुर गीत हरदम गाना सीखा है।

96.

फूल और कलि से हमने क्या सीखा है?

Answer»

फूल से हँसना सीखा और कली से मुसकाना सीखा है।

97.

“स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का विकास ही शिक्षा है।” यह कथन है(क) प्लेटो का(ख) अरस्तू का(ग) गांधी जी का(घ) अरविन्द का

Answer»

सही विकल्प है  (ख) अरस्तू का