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आयात विधि (Import Procedure) संक्षेप में समझाइये ।

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आयात व्यापार अर्थात् जब दूसरे देश से माल मँगाया जाये अथवा खरीदा जाये तो उन्हें आयात व्यापार कहते हैं ।

इसकी विधि निम्नानुसार है :

(1) आयात लाइसन्स प्राप्त करना : हमारे देश में विदेशों से आयात करने के लिए लाइसन्स प्राप्त करना आवश्यक है । इसके लिए सामान्य अथवा विशिष्ट लाइसन्स प्राप्त करना होता है । सामान्य लाइसन्स द्वारा किसी भी देश से माल आयात किया जा सकता है । जबकि विशिष्ट लाइसन्स द्वारा मात्र उसमें दर्शाये गये देशों से ही आयात किया जा सकता है । हालांकि सरकार के उदारीकरण की नीति से अब . धीरे-धीरे इस लाइसन्स का महत्त्व कम होने लगा है ।

लाइसन्स प्राप्त करने के लिए सरकार द्वारा निर्धारित की गई फीस सरकारी ट्रेजरी, रिझर्व बैंक या स्टेट बैंक में जमा करानी पड़ती है । इस रसीद के आधार से उसमें निर्दिष्ट कीमत पर आयात किया जा सकता है । यदि आयात-कर्ता ने पिछले वर्ष आयात की हो तो उसे चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट से सर्टिफिकेट प्राप्त करना पड़ता है जिसमें उसने कितना आयात किया गया है उस सम्बन्ध में चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट प्रमाणपत्र देता है । इसी प्रकार आयात-कर्ता की आय के बारे में भी आयकर-अधिकारी से प्रमाणपत्र प्राप्त करना होता है । वैसे OGL – (Open General Licence) की सूची में सामिल वस्तु के अलावा की वस्तु आयात करनी हो तो आयात लाइसन्स प्राप्त करना होता है ।

उपरोक्त दस्तावेज प्राप्त करने के बाद आयात-कर्ता का संलग्न अधिकारियों को निवेदन भेजना पड़ता है जिसके आधार पर उसे आयात- . लाइसन्स प्राप्त होता है । आयात-लाइसन्स की दो प्रतिलिपियाँ होती हैं । एक नकल आयातकार के लिए होती है तथा दूसरी प्रतिलिपि विदेशी मुद्रा के लिए होती है । आयातकार की प्रतिलिपि के आधार पर माल लाया जा सकता है, और दूसरी प्रतिलिपि के आधार पर अन्य देश में कीमत का भुगतान किया जा सकता है ।

यदि सरकार ने स्वयं माल के संबंध में विशिष्ट प्रमाण निश्चित किया हो तो संलग्न अधिकारी प्रमाण (क्वोटा) का सर्टीफिकेट भी देता है । आयात-कर्ता किस कीमत का माल कितनी मात्रा में मँगा सकता है वह उसमें दर्शाया जाता है ।

(2) विदेशी मुद्रा प्राप्त करना : विदेश से माल मँगाना हो तो धन का भुगतान विदेशी मुद्रा में ही करना होगा । हमारे देश में अब तक विदेशी मुद्रा-प्राप्ति पर नियंत्रण लगा हुआ है और किसे कितनी विदेशी मुद्रा देनी है इसका निर्णय भी RBI करती है । अर्थात् विदेशी मुद्रा प्राप्त करने के लिए निर्धारित तरीके से RBI को निवेदन भेजना होता है । परन्तु उसके पहले जिस बैंक को सरकार ने विदेशी मुद्रा का व्यापार करने का अधिकार दिया हो वह बैंक यह कर सकती है । बैंक में आवेदन-पत्र पर शेयर प्राप्त करने होते हैं । आयात-लाइसन्स के आधार पर बैंक पृष्ठांकन कर देती है । शेयरों के साथ अरजी बैंक में भेजी जाती है जिसके आधार पर रिजर्व बैंक आवश्यक मुद्रा देती है । अब सरकार की नई नीति के कारण निर्यातकारों को निर्यात किए गये माल या सेवा की कीमत में निश्चित प्रतिशत से मुद्रा अपने नाम से अलग रख सकती है । इस मुद्रा की सहायता से वह सीधे आयात कर सकता है ।

(3) ऑर्डर देना : आयात लाइसन्स और विदेशी मुद्रा की कार्यवाही पूर्ण होने के बाद आयातकर्ता, निर्यातकर्ता देश के विविध उत्पादकों व निर्यातकों के पास से माल का विवरण, मूल्य तथा अन्य शर्तों की जानकारी प्राप्त करते है । जिस उत्पादक अथवा निर्यातकर्ता की शर्ते अनुकूल लगे उनको ऑर्डर देते हैं । आयातकर्ता माल के आयात के बारे में जो ऑर्डर दिया जाता है, उन्हें ‘Indent’ ‘इन्डेन्ट’ कहते हैं । इन्डेन्ट में माल का विवरण, मूल्य, पैकिंग, बीमा, ट्रान्सपोर्ट कम्पनी का नाम आदि बातों की स्पष्टता की जाती है ।

(4) शाखपत्रक भेजना (L/C – Letter of Credit): माल का ऑर्डर देने के बाद धन के भुगतान की व्यवस्था करनी होती है । विदेशी व्यापार में लेटर ऑफ क्रेडिट द्वारा धन का भुगतान होता है । आयात-कर्ता अपने बैंक द्वारा लेटर ऑफ क्रेडिट प्राप्त करता है तथा विदेशी व्यापारियों को भेज देता है । यह लेटर ऑफ क्रेडिट बैंक द्वारा धन भुगतान की गारंटी देता है । जिससे विदेशी व्यापारी निश्चित रहते हैं कि धन का भुगतान अवश्य होगा ।

(5) योग्य दस्तावेज प्राप्त करना : निर्यात-कर्ता आवश्यक सभी दस्तावेज अपने बैंक के माध्यम से भेज देता है । विदेशी बैंक ये दस्तावेज आयात-कर्ता के देश में अपनी शाखा अथवा प्रतिनिधि बैंक को भेज देता है । आयातकर्ता योग्य भुगतान कर बैंक से ये दस्तावेज प्राप्त कर लेता है । सामान्यतः बैंक के माध्यम से हुण्डी के स्वीकार के सामने का दस्तावेज (DA – Document Against Acceptance) अथवा भुगतान के सामने दस्तावेज DP – Document Against Payment भेजता है ।

(6) माल प्राप्ति का ऑर्डर प्राप्त करना : बिल ऑफ लेडिंग माल की मालिकी दर्शानेवाला दस्तावेज है । इस दस्तावेज पर निर्यातक हस्तांतरण करके आयातक को माल की मालिकी सौंप देता है ।

यह दस्तावेज जहाजी कम्पनी के कार्यालय में प्रस्तुत करना पड़ता है । जहाज के माध्यम से आनेवाले माल का कब्जा जहाजी कम्पनी के पास में होता है । यदि आयातक को नूर भरना हो तो वह भर देने से बिल ऑफ लेडिंग पर जहाजी कम्पनी हस्तांतरण (शेरो) करके जहाज के कप्तान को आयातक के पक्ष में माल देने का आदेश देते हैं । जिसके आधार पर आयातक माल छुड़ा सकता है ।

(7) आयात चुंगी की अदायगी : आयात चुंगी भरने के लिए कस्टम हाउस में से बिल ऑफ एन्ट्री नामक दस्तावेज की तीन प्रतिलिपियाँ प्राप्त की जाती है । जिस माल पर आयात चुंगी लागू न पड़ती हो उसके लिए दूसरा पत्रक तथा जिस माल का पुनः निर्यात करना हो उसके लिए तीसरा पत्रक होता है । तीनों ही पत्रक अलग-अलग रंग के होते हैं ।

इस बिल ऑफ एन्ट्री के पत्रक में जहाज में माल विदेश के जिस बंदरगाह से चढ़ाया गया हो उस बंदरगाह का नाम, आयातकार का नाम, पता और माल की पूर्ण जानकारी भरी जाती है । इसमें दर्शाई गई जानकारी के बारे में शंका हो तो माल की जाँच की जाती है । बिल ऑफ एन्ट्री की तीन प्रतिलिपियाँ होती हैं । एक चंगी जकात अधिकारी रखता है तथा शेष दो चंगी दलाल को देता है ।

(8) डाक-चार्ज की अदायगी : माल उतारने के लिए निश्चित रकम चुकानी पड़ती है जिसे डाक-चार्ज कहा जाता है । क्लियरिंग एजन्ट डाक-चार्ज भरे तब उसे जो रसीद दी जाती है उसे डाक रसीद कहा जाता है । इस रसीद के द्वारा माल का कब्जा प्राप्त किया जा सकता है ।

(9) माल का कब्जा प्राप्त करना : उपर्युक्त सभी विधि पूरी होने के बाद क्लियरिंग एजेन्ट माल का तुरन्त कब्जा प्राप्त करता है । यदि वह ऐसा न करे तो उसे डेमरेज भरना होता है । यदि माल को नुकसान हुआ हो तो जहाज के कप्तान को तुरन्त सूचित किया जाता है और दलाल जहाजी कंपनी अथवा बीमा-कंपनी से नुकसानी का मुआवजा लेने का अधिकारी बनता है ।



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