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अर्थ दीजिए :(1) महसूली घाटा (2) अंदाजपत्रीय घाटा  (3) राजकोषीय घाटा (4) प्राथमिक घाटा 

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(1) महसूली घाटा : महसूली घाटा अर्थात् महसूली आय की अपेक्षा महसूली खर्च अधिक हो । दूसरे शब्दों में कहें तो महसूली आय और महसूली खर्च के बीच का अंतर ही महसूली घाटा कहलाता है ।

(2) अंदाजपत्रीय घाटा : कुल आय और कुल खर्च के अंतर को अंदाजपत्रीय घाटा कहते हैं । इसमें महसूली आय और पूँजीगत आय तथा दोनों खर्चों का समावेश किया जाता है ।

(3) राजकोषीय घाटा : राज्य (सरकार) बाजार में से जो मुद्रा ऋण के रूप में प्राप्त करता है उसे पूँजी खाते की आय कहते हैं । परंतु वास्तव में व्यवहार में वह कर्जा है । सरकार का अंदाजपत्रीय घाटा और सरकार के बाजार में से प्राप्त ऋण इन दोनों के योग को राजकोषीय घाटा कहते हैं ।

(4) प्राथमिक घाटा : राजकोषीय घाटे में से ब्याज के भुगतान के बीच के अंतर को प्राथमिक घाटा कहते हैं । राज्य को कर्ज के ब्याज का भुगतान बोझ सर्जित करता है । परंतु यह बोझ वर्तमान कार्य के कारण नहीं । कर्ज भूतकाल में हुआ है और उसका ब्याज वर्तमान में है इसलिए ब्याज को घटाकर प्राथमिक घाटा ज्ञात किया जाता है, जो चालू वर्ष के आय और खर्च का अंदाज देते हैं । ऐसा ख्याल इस प्रकार का घाटा व्यक्त करता है । परंतु भारत में इस प्रकार के घाटे के नीतिविषयक महत्त्व गिना नहीं जाता है ।



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