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‘बाज़ लोग कहीं के नहीं होते’ यह कहने के पीछे कवयित्री का आशय क्या है?

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गरीब, लाचार और कड़ी मेहनत करनेवाले बाज़ लोगों का अपना कोई नहीं होता। वे महत्त्वपूर्ण चीजों का निर्माण करते हैं, पर उनके कार्यों की सराहना कोई नहीं करता। उन्हें ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिलता जिसे वे अपना कह सकें। लोगों को केवल उनकी मेहनत से वास्ता होता है। काम पूरा होने के बाद लोगों के लिए उनका कोई उपयोग नहीं रह जाता। जिनके लिए उन्होंने खून-पसीना एक किया, उनके लिए वे अस्तित्व रहित हो जाते हैं। इसीलिए कवयित्री कहती है कि बाज़ लोग कहीं के नहीं होते।



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