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'बाजार दर्शन’ जैनेन्द्र जी का कैसा निबन्ध है?

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बाजार दर्शन’ जैनेन्द्र का विचारप्रधान निबन्ध है। विचार प्रधान होने के साथ ही व्यंग्य का भी पुट है। उसमें बाजार की उपयोगिता बताई गई है। उपभोक्तावादी युग में बाजार का रूप बदल चुका है। वह प्रदर्शन और ठगी का जाल बन चुका है। वह उपभोक्ता के शोषण का माध्यम बन गया है।



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