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बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरच का कारण क्यों थी ?

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बालगोबिन भगत की दिनचर्या सब लोगों से अलग थी। जब सारा गाँव सोता था तब वे जागते थे और कबीर के पद गाते रहते थे। कबीरपंथी होने के कारण उनके नियमों का चुस्तता से पालन करते थे। भोर से पहले न जाने कब उठकर दो मील दूर नदी में स्नान करते । गाँव के पोखर के पास भिडे पर खंजड़ी बजाकर गीत गाते ।

आषाढ़ के दिनों में कीचड़ से लथपथ धान की रोपाई करते समय जब गीत गाते थे बच्चे उछल पड़ते, औरतों के ओंठ कांप उठते। उनके संगीत में एक प्रकार का जादू था। वे उपवास रखकर गंगा स्नान करने जाते तो घर आकर ही कुछ खाते-पीते थे। कभी झूठ नहीं बोलते थे, खरा व्यवहार रखते थे।

किसी की चीज़ छूते नहीं थे, न बिना पूछे व्यवहार में लाते थे। यहाँ तक कि वे कभी दूसरे के खेत में शौच के लिए भी नहीं बैठते थे। मरणासन्न स्थिति में भी वही जवानीवाली आवाज, वही नियम, संगीत के प्रति वही तन्मयता सबको अचरज में डाल देती थी।



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