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पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएं लिखिए।

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बालगोबिन भगत के संगीत में एक अद्भुत जादू था। वे सदैव कबीर ‘साहब’ के सीधे-सादे पद गाया करते थे। वे पद उनके कंठ से निकल कर सजीव हो उठते थे। स्वयं लेखक भी उनके संगीत पर मुग्ध थे। उनके गीतों को सुनकर बच्चे झूम उठते थे, औरतों के होंठ काँप उठते थे और वे भी गीत गुनगुनाने लगती थौं । हल चलाते हलवाहों के पैर विशेष क्रम ताल से उठने लगते थे, उनके संगीत की ध्वनि तरंगें लोगों को झंकृत कर देती थी।

उनके संगीत से ऐसा लगता था कि स्वर की एक तरंग स्वर्ग की ओर जा रही है, तो दूसरी तरंग लोगों के कानों की ओर । भयंकर सर्दी या उमसभरी गर्मी उनके स्वर को डिगा नहीं सकती। वे पूर्ण तल्लीनता के साथ गाते थे। झिाली की झंकार या दादुरों की टर्र-टर उनके संगीत को अपने कोलाहल में डुबो नहीं सकती।

उनकी खंजड़ी डिमग-डिमग बजती रहती और वे गा रहे होते – गोदी में पियवा, चमक उठे सखिया । भादों की आधी रात को भी वे गाने लगते तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा तो उस समय अंधेरे में अकस्मात कौंध उठनेवाली बिजली की तरह सभी को चौंका देती थी। यों बालगोबिन भगत का संगीत अद्भुत था।



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