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| 1. | भारत में तिलहनों की खेती का भौगोलिक विवरण दीजिए तथा उनकी वर्तमान कमी के कारण बताइए। | 
| Answer» भारत का विश्व में तिलहन उत्पादन में प्रमुख स्थान है। यहाँ विश्व की प्रमुख तिलहन (Oil seeds) फसलें; जैसे- मूंगफली (3/4), तिल (1/4) वे सरसों (176) उत्पन्न की जाती हैं। तिलहन फसलें भारत में दो प्रकार की हैं—एक छोटे दाने वाली एवं दूसरी बड़े दाने वाली। उत्तरी भारत में छोटे दाने वाली सरसों प्रमुख फसल है, जबकि दक्षिण भारत में नारियल प्रमुख फसल है। भारत में सभी राज्यों में कोई-न-कोई तिलहन फसल न्यूनाधिक मात्रा में पैदा की जाती है। विभिन्न तिलहनों के लिए भौगोलिक दशाएँ एवं उत्पादक क्षेत्र (1) सरसों (Mustard); (2) मूंगफली (Peanut); (3) तिल (Sesamum) तथा (4) नारियल (Coconut)। (1) सरसों – भारत में सरसों की फसल रबी के मौसम में गेहूँ एवं जौ के साथ उगायी जाती है। सरसों की खेती के लिए यहाँ उपयुक्त तापमान 20°C से 25°C एवं वर्षा 75 सेमी से 150 सेमी पायी जाती है। उत्तरी भारत में जहाँ वर्षा की कमी होती है वह सिंचाई के साधनों द्वारा पूरी कर ली जाती है। सरसों की खेती के लिए उपजाऊ दोमट मिट्टी एवं सस्ते श्रम की आवश्यकता पड़ती है। भारत में सरसों की खेती प्राय: गेहूँ, जौ, चना एवं मटर के साथ मिलाकर की जाती है। जहाँ पानी की कमी है वहाँ अलग खेत में भी सरसों की फसल पैदा की जाती है। (2) मूंगफली – यह एक उष्ण कटिबन्धीय जलवायु की फसल है। भारत में इसकी फसल के लिए उपयुक्त तापमान बोते समय 15°C एवं पकते समय 25°C सेग्रे तक तथा वर्षा 75 से 150 सेमी के मध्य पायी जाती है। शीतल जलवायु वाले भागों में मूंगफली की खेती करना सम्भव नहीं है। उपजाऊ एवं जीवाश्म युक्त मिट्टी मूंगफली की फसल के लिए आवश्यक है। साथ ही सस्ता श्रम भी मूंगफली की खेती में आवश्यक भौगोलिक कारक है और उपर्युक्त सभी भौगोलिक दशाएँ भारत में पायी जाती हैं। उत्पादक क्षेत्र – भारत में मूंगफली की खेती गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु तथा उत्तर प्रदेश में की जाती है। कुल उत्पादन का 90% दक्षिण भारत में उत्पन्न किया जाता है। भारत मूंगफली के उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान रखता है। कुल मूंगफली उत्पादन का 15% भूनकर खाने के काम में, 50% तेल बनाने एवं शेष का निर्यात यूरोपीय देशों एवं कनाडा को किया जाता है। (3) तिल – तिल की फसल अर्द्ध-उष्ण भागों में पैदा की जाती है। तिल की खेती के लिए तापमान 20°C से 25°C एवं वर्षा 50-100 सेमी होनी चाहिए। तिल की फसल के लिए अधिक उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती। तिल की खेती भारत में ठण्डे भागों में खरीफ के मौसम में एवं गर्म भागों में रबी के मौसम में की जाती है। तिल के पौधे की जड़ों में पानी नहीं भरना चाहिए। अत: बलुई मिट्टी उपयुक्त होती है। उत्पादक क्षेत्र – भारत के कुल तिल उत्पादन का लगभग 90% उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र एवं आन्ध्र प्रदेश में उत्पन्न किया जाता है। तिल के उत्पादन में उत्तर भारत की ही प्रधानता है। तिल का व्यापार कच्चे माल के रूप में न होकर तेल के रूप में किया जाता है। (4) नारियल – नारियल का पौधा उष्णार्द्र जलवायु का पौधा है। इसकी उपज के लिए 20°C से 30°C तक तापमान एवं 150 सेमी से अधिक वर्षा होनी चाहिए। सामान्यतः नारियल की फसल समुद्रतटीय भागों, डेल्टाओं एवं टापुओं में पैदा की जाती है। उत्पादक क्षेत्र – भारत में नारियल की फसल मुख्यतः केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गोआ, आन्ध्र प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल आदि में पैदा की जाती है। पूर्वी गोदावरी एवं कावेरी डेल्टा में बहुतायत में नारियल उगाया जाता है। भारत में नारियल का क्षेत्र एवं उत्पादन निरन्तर बढ़ रहा है। भारत से नारियल एवं नारियल का तेल यूरोप वे संयुक्त राज्य अमेरिका को निर्यात किया जाता है। उपर्युक्त तिलहनों के अलावा अरण्डी, राई, अलसी, तिल्ली आदि भी उगाये जाते हैं। इनका उत्पादन मुख्यत: उत्तरी भारत में रबी के मौसम में किया जाता है। तिलहनों के उत्पादन में कमी के कारण भारत में जनसंख्या का दबाव निरन्तर बढ़ रहा है और तिलहनों की खपत बढ़ रही है। माँग के अनुपात में तिलहनों का उत्पादन नहीं बढ़ा है, क्योंकि तिलहनों की भारत में प्रति हेक्टेयर उपज कम है तथा उन्नत बीज एवं वैज्ञानिक तरीकों से तिलहनों को नहीं उगाया जाता है। भारत में तिलहन मुख्य फसल के रूप में बहुत कम क्षेत्रों में पैदा किये जाते हैं जिस कारण से वर्तमान में तिलहनों की उपज में निरन्तर गिरावट आ रही है। तिलहनों के बजाय कृषकों का ध्यान खाद्यान्नों एवं औद्योगिक फसलों की तरफ अधिक है। भारत सरकार ने भी तिलहनों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए कोई नियोजित योजना लागू नहीं की है। यही कारण है कि भारत में वर्तमान में तिलहन उत्पादन में कमी आयी है। | |