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भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याएँ क्या हैं? उन्हें कम करने में हरित एवं श्वेत क्रान्तियों के योगदान का मूल्यांकन कीजिए।याभारतीय कृषि की चार प्रमुख समस्याएँ लिखिए। 

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भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याएँ
Major Problems of Indian Agriculture

भारत के 70% लोगों का प्रधान व्यवसाय कृषि है; परन्तु दुर्भाग्यवश यह उद्योग पिछड़ा हुआ है। भारत में कृषि के पिछड़ेपन की प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं –
⦁    खेतों का छोटा और छिटका होना।
⦁    कृषि का मानसूनी वर्षा पर निर्भर होना।
⦁    उर्वरकों एवं खादों का प्रयोग बहुत कम होना।
⦁    उत्तम तथा उन्नत बीजों का अभाव।
⦁    कृषि की परम्परागत दोषपूर्ण विधियाँ।
⦁    कृषि-भूमि पर जनसंख्या का अधिक भार होना।
⦁    किसानों की अज्ञानता, निर्धनता एवं ऋणग्रस्तता।
⦁    कृषि उपजों के विपणन की अनुचित व्यवस्था।
⦁    सिंचाई के साधनों का अभाव।
⦁    कृषि सम्बन्धित उद्योगों का अल्प विकास।

कृषि समस्या को दूर करने में हरित क्रान्ति का योगदान
Contribution of Green Revolution in Solving the Agricultural Problems

हरित क्रान्ति से देश के कृषि-क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है। खाद्यान्नों के मामले में देश आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हुआ है। देश के कृषकों के दृष्टिकोण में परिवर्तन हुआ है तथा कृषि बचतों में वृद्धि हुई है। हरित क्रान्ति के अन्य लाभ या आर्थिक परिणाम निम्नलिखित हैं –

⦁    अधिक उत्पादन – हरित क्रान्ति या नवीन कृषि-नीति से सबसे बड़ा लाभ यह हुआ है कि कृषि उत्पादन बढ़ा है। गेहूँ, बाजरा, चावल, मक्का व ज्वार की उपज में आशातीत वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप खाद्यान्नों के मामले में भारत आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हो गया है।

⦁    परम्परामत स्वरूप में परिवर्तन – नवीन कृषि-नीति से खेती के परम्परागत स्वरूप में परिवर्तन हुआ है और खेती व्यावसायिक दृष्टि से की जाने लगी है।

⦁    कृषि बचतों में वृद्धि – उन्नत बीज, रासायनिक खादें, उत्तम सिंचाई के साधन व मशीनों के प्रयोग से उत्पादन बढ़ा है जिससे कृषक की बचतों की मात्रा में उल्लेखनीय प्रगति हुई है, जिसको देश के विकास के काम में लाया जा सका है। इससे औद्योगिक क्षेत्र में भी प्रगति हुई है और राष्ट्रीय उत्पादन भी बढ़ा है।

⦁    कृषि निर्यात – भारतीय कृषि की अभिनव प्रवृत्ति यह दर्शाती है कि आज भारत खाद्यान्न एवं अन्य कृषिगत वस्तुओं के निर्यात की क्षमता भी प्राप्त कर चुका है। वर्ष 2011-12 के दौरान देश से 93.9 मिलियन टन का गेहूँ एवं चावल निर्यात किया गया, जिसका मूल्य लगभग ३ 6,000 करोड़ है

⦁    खाद्यान्न आयात नगण्य – हरित क्रान्ति से देश खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर हुआ है। खाद्यान्नों के आयात नगण्य रह गये हैं, जिससे विदेशी मुद्रा की बचत हुई है।

⦁    रोजगार के अवसरों में वृद्धि – हरित क्रान्ति से देश में रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई है। खाद, पानी, यन्त्रों आदि के सम्बन्ध में लोगों को रोजगार मिले हैं।

कृषि समस्या को दूर करने में श्वेत क्रान्ति का योगदान
Contribution of White Revolution in Solving the Agricultural Problems

स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् भारत में ग्रामीण विकास की समस्याओं को दूर करने के अनेक प्रयास किये गये हैं। श्वेत क्रान्ति (ऑपरेशन फ्लड) भी इन्हीं प्रयासों में एक है। इसके अन्तर्गत भारत के पशुधन का उचित नियोजन करके दुग्ध उत्पादन में वृद्धि का प्रयास किया जाता है।
कृषि के साथ-साथ पशुपालन भारतीय कृषकों को अतिरिक्त आय सुलभ कराता है। ये पशु विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति करने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इससे न केवल कृषि अपितु सीमान्त एवं लघु कृषकों तथा भूमिहीन श्रमिकों को आजीविका के साधन उपलब्ध हुए हैं। इस प्रकार श्वेत क्रान्ति का भारत के समन्वित ग्रामीण विकास में प्रमुख योगदान निम्नलिखित है –

⦁    ऑपरेशन फ्लड’ द्वारा लघु एवं सीमान्त कृषकों तथा भूमिहीन श्रमिकों को अतिरिक्त आय प्राप्त हुई है।
⦁    इस व्यवसाय द्वारा खेतों के लिए जैविक खाद एवं बायो गैस उपलब्ध हुई है।
⦁    इस व्यवसाय के विकास से बहुत-से परिवार निर्धनता की रेखा से ऊपर उठ गये हैं।
⦁    सहकारी समितियाँ दुग्ध का संग्रहण तथा विपणन करती हैं, जिससे लोगों में सहकारिता की भावना बलवती हुई है।
⦁    दुग्ध व्यवसाय के विकास से ग्राम-नगर सम्बन्ध प्रगाढ़ हुए हैं तथा एक-दूसरे को समझने में पर्याप्त सहायता मिली है।



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