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गांव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है?

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ज्येष्ठ की भयंकर गर्मी से त्रस्त गांवों के लोग आषाढ़ मास का बेसब्री से इंतजार करते हैं। किसानों को खेतों में बुआई करने के लिए वर्षा के आगमन की प्रतीक्षा रहती है। आषाढ़ लगते ही बादल छा जाते हैं, रिमझिम-रिमझिम बारीस से पूरा वातावरण शीतलता से भर उठता है। वातावरण में ठंडक आने से उदासीन मन प्रफुल्लित हो उठता है।

बारीस होने पर किसान, बच्चे, महिलाएं सभी खुश हो उठते हैं। खेतों में धान की रोपाई करने के लिए सारा गाँव खेतों में उमड़ पड़ता है। बच्चे धान की रोपाई करते समय कीचड़ में खेलते हैं, हलवाहे हल चलाते हैं, महिलाएं कलेवा लेकर मेड़ों पर इंतजार करती हैं। इस तरह आषाढ़ लगते ही गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश उल्लास से भर उठता है।



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